सोने की कढ़ी / सुधा भार्गव
एक लोहार था। वह घर जा -जा कर चाकू –छुरी और दराँती पर धार रखा करता। जिस चाकू की धार पैनी करता वह बड़ी कुशलता से महीनों सब्जी -फल काटा करता। एक दिन वह भरी दोपहरी में आवाज लगा रहा था –धार रखवा लो धार ---तलवार से भी तगड़ी धार।
एक युवती ने उसे पुकारा। छुरी वाला बोला –मजदूरी के अलावा जितनी छुरी –चाकू पर धार रखवाओगी उस हिसाब से उतनी ज्यादा रोटियाँ मुझे खिलानी पड़ेंगी। रोटी छोटी –बड़ी हो सकती हैं पर सब्जी कटोरा भरकर होनी चाहिए। युवती ने हँसकर अपनी गर्दन हिला दी। युवती ने चार चाकुओं पर धार रखवाई और उसके अनुसार मजदूरी उसकी हथेली पर रख दी। इसके साथ ही एक थाली में चार रोटियाँ और कटोरे में कढ़ी रखकर उसके आगे खिसकाई।
खाते समय उसने पूछा –यह पीली -पीली सब्जी क्या है? बड़ी जायकेदार है।
-इसका नाम कढ़ी है।
-इसमें गोल –गोल गोले कैसे हैं?
-ये सोने की पकौड़ियाँ हैं।
-तब तो कल आकर भी खाऊँगा। घर के और सारे चाकू –छुरियाँ निकाल कर रखना।
-घर में तो नहीं हैं।
-तो क्या हुआ!पड़ोस की ले लेना। कुछ सस्ते में धार रख दूंगा।
दूसरे दिन लोहार ठीक खाने के समय युवती के घर आन धमका। 2-3 छुरियों पर धार रखने के बाद मजदूरी तो मिल गई मगर थाली में केवल रोटियाँ देख बिदक पड़ा –कढ़ी तो है ही नहीं ---रोटी कैसे खाऊँ?
-सोना खतम हो गया ,कढ़ी की पकौड़ियाँ कैसे बनाती?
-ओह!सोना बहुत लगता है क्या?
-लगता तो थोड़ा ही है। युवती ने सिर खुजलाते हुए कहा।
-अच्छा ,मैं घर में खोजूंगा। शायद कुछ हाथ लग जाये।
अगले दिन वह बहुत खुश था। उसके हाथ में सोने की एक बाली थी। जब वह चाकुओं पर धार देने गया तो रास्ते में युवती का घर पड़ा।
एक मिनट वहाँ रुका और बोला –लो यह बाली। इससे जल्दी से कढ़ी बना दो और हाँ!2-3 दिनों तक इससे काम चलाना। बस मैं अभी आया।
उस रोज युवती ने खूब सारी कढ़ी बनाई। लोहार ने जी भर कर खाई।
चलते –चलते बोला –मेरी बीबी को भी दो रोटियों के साथ कढ़ी दे दे। वह भी खाकर खुश हो जायेगी।
कढ़ी खाने वाले भी खुश और कढ़ी बनाने वाली भी। अब तो हर तीसरे –चौथे दिन चोरी –छुपे लोहार पत्नी का गहना उठाकर युवती को सौंप देता और वह उसे लेकर तिजौरी में रख देती।
एक दिन युवती ने फिर कढ़ी नहीं बनाई और बिगड़ते हुए बोली -सोना तो खतम हो गया फिर कैसे बनाती?
लोहार इस बार नीला –पीला हो उठा और चिल्लाकर बोला –मेरे लाए सोने से तुमने कढ़ी बनाई। तुमने खाई ,तुम्हारे घर वाले और बच्चों ने भी खाई होगी। एक दिन तुम अपने सोने से कढ़ी नहीं बना सकती थी?
उसकी चिल्लाहट सुनकर पास –पड़ोस के लोग वहाँ आकर जमा हो गए और लोहार की बात सुनकर हंस पड़े।
-तुम लोग खी –खी करके दाँत क्यों निकाल रहे हो? लोहार और भी झल्ला उठा।
एक देहाती मसखरी करता हुआ बोला –अभी तक तूने सोने की कढ़ी खाई है मैं तुझे लोहे की खीर खिलाऊंगा। कढ़ी से भी ज्यादा जायकेदार।
-लोहे की खीर! क्यों मुझे उल्लू बनाता है। लोहे से बर्तन –औज़ार तो मैंने बनाए हैं पर खीर! कभी नहीं!अगर तूने खीर बना भी दी तो लोहे को चबाएगा कौन?
-तूने जब सोने की पकौड़ियाँ चबा ली तो लोहे के दाने भी चबा सकता है।
लोहार को झटका सा लगा और सिर पकड़कर बैठ गया और बड़बड़ाया --
-मुझ सा मूर्ख भी भला होगा कोई दुनिया में। सोना और लोहा तो मौसेरे भाई हैं। दोनों ही दांतों से नहीं चबाए जा सकते। यह छोटी सी बात मेरी समझ में न आई।
लेकिन कुछ ही देर में हिम्मत जुटाकर उठ खड़ा हुआ और सीना तान कर बोला -
-अब मेरी बारी है। देखना –लोहे की तरह पीट –पीटकर इस चालबाज औरत से अपना सोना न निकलवा लिया तो मैं लोहार नहीं।
इतने में उसका पति आ गया। भेद खुल जाने के डर से युवती काँपने लगी। उसे देखते ही लोहार बोला –साहब आपकी पत्नी ने मुझे लूट लिया और मैं मूर्ख ,जीभ का गुलाम इसकी बातों में आ गया। इससे कहिए –मेरे सोने के जेवर वापस कर दे।
सारी बात जानने के बाद वह अपनी पत्नी की करतूत पर शर्मिंदा हो उठा। युवती समझ गई कि उसका पति ज्वालामुखी की तरह किसी भी समय फट सकता है। उससे अपना बचाब करने के लिए वह भागी हुई कमरे में गई और आकर पति के हाथों में सोने की चैन ,बालियाँ और अंगूठी थमा दीं।
पति लोहार को गहने लौटाते हुए बोला -भाई ,आगे से जरा सावधान रहना। इस दुनिया में तो उल्लू बनाने वाले बहुत से मिल जाएँगे।