सोन चिरैय्या / रश्मि
यह कहानी एक चिड़िया की है। बड़ी प्यारी चिड़िया है - सोन चिरैय्या। कभी उसका संसार भी सोने का था। उसके बड़े प्यारे-प्यारे बच्चे थे। बच्चे खूब संस्कारी व तेजस्वी थे। पर अचानक एक रोज़ कुछ परायों की नज़र उसके घर-संसार पर पड़ी; वे लुटेरे बनकर आये और उसके घर पर खूब लूटपाट करके चले गए। चिड़िया और उसके बच्चे अपने घर के बिखरे तिनको को देख कर व्यथित हो उठे। वे इस सदमे से उबर भी न पाए थे की कुछ पडोसी परिंदे उसके घर पर कब्ज़ा करके बैठ गए। वे परिदे उसके परिवार के संस्कार और अपनी तहजीब के मेल मिलाप से उसके घर संसार का स्वरुप बदलने लगे चिड़िया के बच्चो ने अपने संस्कारों को संभाले रखा और उन परिंदों की तहजीब को भी बखूबी अपना लिया। वे न चाहते हुए भी उन के साथ मिलकर रहने लगे। पर हाय री किस्मत! कुछ परदेसी बाज़ चिड़िया के इस संसार पर नज़रे गडाए बैठे थे वे उसके घर आ धमके और उसका वैभव देख ऐसे ललचाए की सालों साल उसके घर परिवार को तितर बितर करते रहे। और जाने का नाम ही न लेते थे। जब चिड़िया के बच्चों की हिम्मत ने जवाब देना शुरू कर दिया तो उन्होंने एकजुट हो कर उन बाजों को खदेड़ने की योजना बनाई। आखिरकार उन होनहारों ने कड़े संघर्षों, शहादतों और अपने मज़बूत इरादों के बल उन बाजों को अपने घर से निकल बाहर किया। उन बच्चो ने अपनी घायल माँ के सारे ज़ख्मों को भर देने का बीड़ा उठाया।
आज भी सोन चिरैय्या के होनहार बच्चे उसके रुप को सँवारने में जुटे है। पर उन्ही में से कुछ बच्चे न जाने क्यों अपने कर्तव्यों से भटक गए है। उन्हें अपनी माँ के ज़ख्म नहीं दिख रहे। बल्कि उसकी चोंच के दाने नज़र आ रहे है। वह घायल सोन चिरैय्या आज भी हौसलामंद है। उसे आज भी अपने बच्चों की काबिलियत पर पूरा भरोसा है। वह अपनी बच्चों की और इस आशा से निहार रही है कि वे फिर एकजुट हो कर अपना सुनहरा संसार सजा लेंगे।