सोफिया लॉरेन और कश्मीर का मंदिर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :14 अप्रैल 2018
सोफिया लॉरेन को अपने पति फिल्म निर्माता कार्लो पोन्टी द्वारा निर्मित एवं विटोरिय डी'सिका द्वारा निर्देशित रॉबर्टो मोरिनिया के उपन्यास से प्रेरित फिल्म 'टू वीमैन' के लिए 1962 में ऑस्कर प्राप्त हुआ था। इस फिल्म से सोफिया लॉरेन ने यह सिद्ध किया कि वह मात्र सुंदरता के कारण सितारा नहीं बनी है। वरन् अभिनय कला में भी प्रवीण है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय अवाम ने बहुत कष्ट सहे और युद्ध के हवन-होम में वे भी झुलसे जो युद्ध क्षेत्र से हजारों मील दूर रहते थे। फिल्म में एक मां अपनी आठ वर्ष की पुत्री के साथ सुरक्षित जगह की तलाश में भाग रही है। विजेता सैनिक पराजित देश की ज़र, जोरु और जमीन पर कब्जा जमाते हैं। युद्ध के उन्माद में सैनिक अपनी विचार शक्ति खो देते हैं। लोभ, लालच और वासना की सारी हदें तोड़ दी जाती हैं।
नायिका अपनी पुत्री के साथ एक चर्च में प्रवेश करती है। उसे यकीन है कि इस पवित्र स्थान में उसकी अस्मिता सुरक्षित रहेगी परन्तु उन्मादी सैनिक चर्च में घुसकर दुष्कर्म करते हैं। नायिका का चेहरा दर्द से विदीर्ण हो जाता है। शारीरिक कष्ट से अधिक उसे यह बात सालती है कि चर्च में यह सब हुआ। उसका विश्वास ही टूट जाता है। उसकी आस्था भंग हो जाती है। सोफिया लॉरेन का बचपन बहुत अभावों में बीता। लंबे संघर्ष के बाद अभिनय के माध्यम से उसे सफलता मिली। किसी दौर में फुटपाथ पर सोने वाली सोफिया लॉरेन के लिए उसके पति कार्लो पोन्टी ने एक विशाल सामंतवादी हवेली खरीदी थी, जिसमें तीन दर्जन शयन कक्ष थे।
दूसरे विश्वयुद्ध पर इतनी अधिक फिल्में और वृत चित्र बने हैं कि भविष्य में इतिहास की किताबें नष्ट हो जाएं और कोई छात्र उस दौर पर शोध करना चाहे तो फिल्म माध्यम उसे विश्वसनीय ब्योरा प्रस्तुत करने में सहायता कर सकता है। इसीलिए ऐतिहासिक दस्तावेजों के साथ ही फिल्मों के आर्काइव भी आवश्यक हैं और शिवेन्द्र सिंह डूंगरपुर इस कार्य को कर रहे हैं। सोफिया लॉरेन और ब्रिजित बारडोट जैसी कलाकारों ने अपनी सुंदरता के परे जाकर बेहतर अभिनय के बहुत प्रयास किए हैं। उन्होंने पुरुष पाखंड और उसके महिला से अधिक बलशाली होने का भ्रम भी तोड़ा है। पुरुष के लिए यह चोट असहनीय है, क्योंकि उनकी सारी सोच उसी धुरी पर घूमती है। नारी एक नदी की तरह बहते हुए मरदानगी के कूड़ा करकट को किनारों पर फेंकते हुए सदैव प्रवाहमान रहती है।
विद्या बालन अभिनीत 'डर्टी पिक्चर' में भी एक सितारे की व्यथा-कथा कही गई थी। दक्षिण भारत की सिल्क स्मिता के जीवन से प्रेरणा लेकर यह फिल्म बनाई गई थी। पाकिस्तान के एक टेलीविजन सीरियल 'बागी' में भी इसी तरह की कथा प्रस्तुत की गई है और उसे भी सत्यकथा प्रेरित बताया गया है। उसमें नायिका अपने ट्विटर अकाउंट पर साहसी बातें करती है। वह फेसबुक सितारा बन जाती है। उसके ट्विटर और फेसबुक की लोकप्रियता के कारण वह खूब धन कमाती है और अपने परिवार के सदस्यों का जीवन सुविधाजनक बना देती है परंतु उसका भाई दूषित विचारधारा का व्यक्ति है और महिलाओं का सम्मान नहीं करता है। श्रेष्ठि वर्ग इस तरह का सत्य नापसंद करता है। वे अपनी प्रचार मशीनरी से इस अवाज को दबाना चाहते हैं। नायिका का भाई इस मशीन का हिस्सा बन जाता है और अपनी बहन की हत्या कर देता है। किसी भी क्षेत्र में महिला की प्रतिभा से डरा हुआ पुरुष नाना प्रकार के षड्यंत्र रचता है। जनवरी में कश्मीर में स्थित एक मंदिर में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ और यह घटना हाल ही में प्रकाश में आई है। एक सत्तासीन दल के चुने गए नुमाइन्दगे की दरिंदगी भी इस समय सुर्खियों में है। अपराध में दोषी पाने के बाद दंडित लोगों को भी जेल से रिहा किया जा रहा है।
सोफिया लॉरेन अभिनीत 'टू वुमैन' तो युद्ध के समय की घटना है परन्तु इस प्रायोजित शांति पर्व में मंदिर में जाने किस तरह के अनुष्ठान हो रहे हैं। 'उत्तम प्रदेश' बनने की होड़ में विज्ञापन पर खर्च किया जा रहा है। विज्ञापन तंत्र खूब विकास कर रहा है।