सौंदर्य बोध / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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सौंदर्य बोध का आशय कविता के सूक्ष्म सौंदर्य के ज्ञान से है, जो इन्द्रिय बोध और अनुभव की गतिशीलता से तय वस्तुओं के ज्ञान से उत्पन्न होता है। समकालीन हिन्दी कविता में सौंदर्य बोध को द्वंदात्मक भौतिकवादी विश्लेषण के आधार से देखा जाए तो वह विकसित ज्ञान की सीमा पर स्थित होकर सर्वोच्च उत्स को परिभाषित करता है। कविता में सौंदर्य बोध के उपयोग में कवि अपनी अर्जित बुद्धि व विवेक का इस्तेमाल करता है, उसके द्वारा प्राप्त ज्ञान, अनुभव, संवेदना, यथार्थ छनकर कविता लेखन में वस्तु, दृश्य, पंक्ति और ध्वनि का शब्दांकन करते हैं। वह अपने लेखन से अपनी सर्वश्रेष्ठता को जनसामान्य को अर्पित करना चाहता है। वह प्रकृति के उपादानों से, अपने आसपास की गतिविधियों से, समुदाय से, अपने परिवार से प्राप्त अनुभव जन्य उच्चता को समाज में पसर रहे अंधेरेपन के विरुद्ध खड़ा करता है। वह निष्काम भाव से रचनारत होकर पूरी लगन और निष्ठा के साथ अपनी स्वच्छता, उत्कृष्टता व मानसिक पवित्रता को बाज़ार तंत्र की विरुद्ध लामबंद करता है। शहंशाह आलम की कविताओं में सौंदर्य बोध जीवन द्रव्य की तरह सर्वत्र पसरा है और अपने गुणानुवाद के कारण पाठकों को सर्वथा आकर्षित करता है। इनकी कविताओं में हम सहजता और सरलता से सौंदर्य बोध के विविध आयामों के निहित संदर्भों का अवलोकन कर सकते हैं।

भाषागत सौंदर्य किसी भी कविता का पहला खासियत होता है। शहंशाह आलम की भाषा उर्दूनुमा हिन्दी है, जो अपनी मिठास, लचकदार और संप्रेषण के लिहाज से प्रभावोत्पादक है। इनकी काव्य भाषा कि शक्ति क्रिया पदों के प्रयोग में सावधानी, बोलचाल की शब्दावली का चयन, संज्ञा-शब्दों-विश्लेषण और ध्वन्यात्मक शब्दों का सतर्क एवं जागरूक प्रयोग करने से उत्पन्न हुई है। इनके शब्द चयन से कविताओं में वातावरण एवं स्थिति के चित्र सशक्त एवं प्रभावी बनकर उभरे हैं। इन्होंने अपनी कविता कि भाषा को ज़िन्दगी के सन्निकट लाने का प्रयास किया है। इनकी काव्य भाषा शैली अभिजात्य संस्कारी भाषा के तिलस्मी घेरे को लगातार तोड़ती है और मनुष्यता के यथार्थ तथ्य वर्णन पर बल देती है। शहंशाह जी की काव्य भाषा नई संवेदनाओं के अनुरूप पैनी और धारदार है, संवेदना और भाषा का अद्भुत समुच्चय है। यथा _

बचा रहे मेरा दुख

ऐसे ही करामाती

ऐसे ही जादुई

बचा रहे उसका हंसना भी

छंदों से गीतों से भरा

पेड़ों से घासों से हरा

शहंशाह आलम की कविताओं में वैचारिक सौंदर्यबोध अपने अनूठेपन के साथ उपस्थित है। वे अंतर्मुखी स्वभाव के कवि हैं, इसलिए वैचारिक धरातल पर 'लाउड' वक्तव्य न देकर कविता के कोणों से वैचारिक द्वंदात्मक भावनाओं को वे व्यक्त करते हैं। वे राजनीतिक विषमताओं और सामाजिक सरोकारों, आमफहम के उत्पीड़नों को देखकर हृदय में पीड़ा और क्षोभ उत्पन्न कर प्रगतिशील काव्य रूपकों द्वारा शोषकों के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हैं। उनके दिल में शोषितों के प्रति असीम करुणा और सहानुभूति होती है। इसीलिए वे अंतर्मुखी होते हुए भी समाज की समस्याओं के प्रति उदासीन नहीं, अपितु सजग होते हैं। वे सूक्ष्म अनुभव जन्य संदर्भों द्वारा राजनीतिक परिवेश, समाज में प्राप्त विसंगतियाँ, विद्रूप ताएँ, विडंबनाओं का सच्चा एवं बेवाक चित्र अपनी कविताओं में प्रस्तुत करते हैं। वे अपनी कविता में चारों ओर फैले राजनीति-सामाजिक परिवेश और पसरे तनाव को निश्छलता से व्यक्त करते हैं_

विकल्प जो बचा है यही बचा है

कि हमारे हिस्से का बहुत सारा

सरकारें जो हड़प जा रही हैं

हम अपने हिस्से का कुछ भी मांगे नहीं

छीन लें देश की सरकारों से

भावगत सौंदर्य बोध शहंशाह आलम की कविताओं में अनिवार्यत: दृष्टिगोचर होता है। इनकी कविताएँ गहरे दुख, पसरे सन्नाटे और अकेलापन को चीरती हुई तीखी अवसाद के बीच सुख की सिहरन का आभास देती है और नितांत अकेलेपन से निजात पाने की प्रेरणा भी देती हैं। इनकी कविताओं में मानव-ऊष्मा का वह दुर्लभ सुख प्राप्त होता है, जो मानव मूल्य को बचाने की अनिवार्यता पर बल देता है। इसी कारण वे हिन्दी कविता कि हलचल और भीड़ में भी नितांत अकेले खड़े दिखाई देते हैं। इनकी कविता, -रूपकों में भवागत सौंदर्य बोधगम्यता सिर्फ़ गुनगुनाहट नहीं है, बल्कि ठंडेपन के विरुद्ध उनकी दृढ़ता का नायाब आधार भी है। शहंशाह आलम की कविताओं ने संवेदना के स्तर पर सौंदर्य के व्यापक, गहन

मानवीय और सामाजिक अर्थों को धारण कर मनुष्यता के पक्ष में अपनी सार्थक अभिव्यक्ति प्रकट की है _

मेरे भीतर जल है लगातार बहता हुआ

पूरी तरह लयात्मक किसी झरने-सा

पूरी तरह सोए हुए पाषणों को

सोते हुए मनुष्यों को

उठाता-जगाता हुआ

शिल्प गत सौंदर्य बोध को शहंशाह आलम ने अपनी कविताओं में लगभग तीन दशकों से निरंतर काव्य साधना द्वारा प्राप्त किया है। इनकी कविताओं की शैली में नाटकीय, वक्रता और लोच का अद्भुत समागम मिलता है। प्रकृति, आधुनिकता और इतिहास बोध को कल्पना और शिल्प प्रयोगों द्वारा वर्तमान के बीच उभरे द्वंद को सहजता से कवि उद्घाटित करता है। कवि अपनी कविता कि पंक्तियों में परिस्थिति के विडंबना के दृश्य नाट्य मंच पर अभिनीत नाटक दृश्यों की तरह उभरता है, तो कहीं सम्बोधन के कथनों की तरह व्यक्त करता है। कम शब्दों के प्रयोग की सांकेतिक शैली को अपनाकर अर्थों में व्यक्त करता है, तो कहीं शब्दों और वाक्यांशों की आवृत्ति करके अपने कथनों को प्रभावोत्पादक बताता है। कवि अपनी कविता में जहाँ कहीं भी व्यंग की तीक्ष्ण धार का प्रयोग कर चिंता और संवेदनाओं को प्रकट करता है, वहाँ कविता और ज़्यादा मुखर हो जाती है_

यह कोई महान आश्चर्य नहीं होगा

कि वह लड़की मुझसे जिद करेगी

महान आश्चर्य तो यह है

मनुष्य अब ठग जा रहे हैं जस का तस

कल्पनात्मक सौंदर्य बोध शहंशाह आलम की

कविताओं का प्राण तत्व है। यह सच है कि एक कवि किसी घटना या दृश्य के जाहिरी रूप को व्यक्त नहीं करता, वरन् वह उसके कलात्मक स्वरूप ही व्यक्त करना चाहता है। यथार्थ रूप को कलात्मक रूप के रूपांतरण में उसे कल्पना का सहारा लेना पड़ता है। , अतएव, कल्पनात्मक सौंदर्य बोध कवि की इस क्रियाशीलता में "मेडिएटर" की भूमिका निभाता है। शहंशाह आलम की काव्य पंक्तियों में जीवन की हर एक हलचल, हरकत, गतिविधि में एक नये कला-रूप की उपस्थिति का एहसास होता है।

इनकी कविताओं में वर्तमान मनुष्य की जीवन गाथा कि अनेक कल्पना युक्त सृजित सौंदर्यधर्मित रूपक अनायास ही मिल जाते हैं। कवि स्पष्ट विचारों, सार्थक काव्यांकन और युगानुकूल भावों को व्यक्त करने के लिए हर पल कल्पना कि उड़ान को ऊंचा करता है, परंतु उसका एक सिरा धरती की छोर से जुड़ा होता है _

कोई नहीं जानता बस मैं ही जानता हूँ

कि अगले करोड़ वर्षों के इतिहास में

बचा होगा उस जैसी स्त्री का जल कुंड पानी से भरा मुझ जैसे पुरुष के पेड़ बचे होंगे फलों से लदे।

शहंशाह आलम की कविताओं में नादात्मक सौंदर्य एक विशेषता के रूप में पाया जाता है। कवि अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने में उपलब्ध एवं अर्जित भाषाई संसाधनों का सार्थक इस्तेमाल करता हुआ नजर आता है। लय, गति, कंपोजीशन, संतुलन इनकी कविताओं में सर्वत्र मौजूद है, तो उसमें नजुकता, लचीलापन और मार्मिकता भी मौजूद है।

जिसमें हर पैराग्राफ अनुभूतियों की पूंजी के रूप में अपनी चमक का असर छोड़ते हैं। शहंशाह का कविता-संसार महज उसके अर्थ में ही नहीं, अपितु, ध्वनियाँ-अतंर्धवनियाँ, स्वरों-अंत: स्वरों को संयमित करता एक अनूठा इंद्रजाल है, जो संवेदनायुक्त एंद्रिक अनुभूतियों से पाठकों को एक अदृश्य सूत्र के द्वारा बाँधता है। इनकी कविताओं में सामाजिक यथार्थ इशारों, भंगिमाओं, गेय तत्वों और संकेतों में व्यक्त मिलते हैं_

मगर मेरे भीतर रोज एक घर बनता है

पूरी खामोशी से जैसे बनाती रही है

कोई चिड़िया अपने लिए एक घर।

परिवेशात्मक सौंदर्य बोध शहंशाह आलम की कविताओं में एक सिलसिला कि तरह मिलता है। छोटे, परंतु पुराने शहर मुंगेर से राजधानी पटना तक की उनकी जीवन यात्रा और उससे मिलते स्थलीय, स्थानीय और समृद्ध परिवेशगत झलकियाँ उनकी कविताओं में सहजता, सजगता और सूक्ष्मता के साथ मौजूद हैं। कवि अपने परिवार, पड़ोस रिश्तेदारी, दैनिक दिनचर्या कार्यस्थली और निवास क्षेत्र से अनुभव-ज्ञान, आशा-निराशा, सुख-दुख आदि पाता है और उस परिवेश की अनुभव को अनुभूतियों में ढालते हुए कविता के छोते-बड़े चित्रों का खाता खींचता है। वह परिवेश में प्राप्त जिंदगियों को बड़ी ही कुशलता के साथ काव्यात्मक संभावना में तब्दील करने का प्रयास करता है_

इस टूटी हुई नाव में रहता हूँ मैं इन दिनों

अकेला यहाँ कोई नहीं है पानी

और सिर्फ़ पानी के सिवा

न कोई मनुष्य न कोई खंडहर न मेरी कायरता

कविता में प्रतीक योजना का प्रयोग ही प्रतीकात्मक सौंदर्य बोध है। प्रगतिशील कवि परंपरागत प्रतीकों का प्रयोग नहीं करता। वह नित नए प्रतीकों की खोज कर अपने समय के सत्य को नवीनता के साथ दिखाने का प्रयास करता है। प्रतीकों में आंतरिक भाव का गहरी रंग समाहित होता है, जो पाठकों के मन की गहरी परतों को इशारेदार पद्धति से प्रतीकों के माध्यम से प्रकट करता है। शहंशाह आलम प्रकृति से, रंगों से, परिवेश से ऐसे प्रतीकों का चयन करते हैं, जिससे कविता बोध का संचार पाठकों के मन तक हो जाता है। कविता में प्रतीक जीवन-रस की सांद्रता को बढ़ाता है और संवेदना कि आद्रता को परिभाषित करता है। शहंशाह की कविताओं में प्रतीक जब दिल से छू कर आते हैं, तो वर्तमान में नए सिरे से अतीत को झांकने का अनोखा अवसर मिलता है_

कबीर बनते हैं झीनी-झीनी चादर

मैं धान रोपता हूँ अनाज बोने वाले मास में

जैसे काटता हूँ धान काटने वाले मास में

कबीर का ही आशीष पाते हुए

कविता में बिंब योजना भी सौंदर्य बोध उत्पादित करने का बेहद सरल उपक्रम है। चाक्षुस बिंब, दृष्टि बिंब, कल्पित बिंब या मिश्रित बिंब कविता कि आंतरिक व वाह्य वातावरण को सजीव और दृश्य को मूर्तिमान बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। काव्य बिंब का निर्माण और उसकी अनुभूति का आस्वादन और कविता प्रेमी की संवेदनशीलता

सौंदर्यानुभूति, ग्रहणशीलता और संस्कार जनित बोधगम्यता पर आधारित होती है। इंद्रिय बोध से निर्मित बिंब पाठकों व श्रोताओं को कविता के रसास्वादन के भाव को अनुभूति के रूप में परिवर्तित कर उसे सजीवता प्रदान करते हैं। शहंशाह आलम की कविताओं में ऐसे अनेक बिंब प्राप्त होते हैं, जिसे पाठक कवि के साथ तादात्म्य महसूस करता है_

आप सुन पाते हैं सूखे झर चुके पत्तों पर

किसी के चलने की आवाज जिस तरह

मैं सुनता रहता हूँ उसके लौट आने की भाषा को उसके अप्रकट प्रेम को सुनता रहा हूँ ठीक वैसे ही।

अतएव, शहंशाह आलम हमारी युग के एक महत्त्वपूर्ण युवा कवि हैं, जिनकी कविताओं में सौंदर्य बोध अपनी विशिष्टता सजीवता और अनूठेपन के कारण पाठकों का बरबस ही ध्यान खींचता है और उसका मुकम्मल रसास्वादन भी कराता है।