सौगात / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
1872 के लगभग रो बात छेकै। दू एैन्होॅ घटना होलै जेकरा गाँव मिर्जापुरें भुलावै नै पारै। पैल्होॅ जमींदार बाबू सितावी सिंह मालिक मौजेॅ मिर्जापुर चंगेरी ने सूर्यमोहन सिन्हा जेकरोॅ कोर्ट कलकत्ता में लागै छेलै केॅ सात लाखोॅ में सौसे जमींदारी बेची देलकै। यै में सोलह गाँव के तहसील छेेलै। वनगाँव, चोरवैय सें लखन पहाड़ी गोड्डा तांय साढ़े तीन लाख सलाना अंग्रेज सरकार बनाम इस्ट इंडिया कम्पनी केॅ दै लेॅ पड़ै छेलै। ओकरा सात लाखोॅ में सिन्हा के द्वारा खरीदी लेवोॅ किसानोॅ लेली वज्रपात के समान छेलै। किसानोॅ पर लगान के बोझ दोगुना बढ़ी गेलै। कुहरेॅ-कोथ्थेॅ लागलेॅ बेचारा किसान।
दोसरोॅ में सीता आरो बिहारी मिर्जापुरोॅ में बसला के बाद बेटा जनम लैकेॅ खुशी में डुबलोॅ छेलै। सौनोॅ के महिना छेलै। सतहा लागलोॅ छेलै। चौबीसोॅ घंटा आठोॅ पहर मेघोॅ सें आकाश भरलोॅ रहै छेलै। महिना भर पैन्हेॅ लोगें जोॅर-जलावन के इंतजाम करी केॅ राखै छेलै। गोइठोॅ, लकड़ी, लरेठोॅ जेकरा सें जे बनैेॅ पारै। यही सौेॅन-सतहा में सीता ने एक बेटा केॅ जनम देलकै। सौेॅनोॅ के मेघ नांकी सॉरौेॅ। कारोॅ नै साँवला। सौसे परिवार खुशी सें झूमी गेलै। लगभग समूचेॅ गाँव जें सुनलकै, जें जानलकै ओकरा गुणोेॅ सें भरलोॅ व्यवहार मीठ्ठोॅ बोली के कारण खुश होलै। सौसे गाँवोॅ के उ$ सवासीन छेलै। सौसेॅ गाँमें जात-परमिन, छोटोॅ-बड़ोॅ सभ्भेॅ के सीता दीदी छेलै। जे ओकरा सें बोलै, जें ओकरा टोकै उ$ ओकरोॅ होय जाय छेलै। हँसमुख तेॅ छेवेॅ करलै, सबकेॅ बाबू, भैया, मैय्योॅ, बहिन, छोटोॅ बच्चा केॅ नूनू राजा कहि केॅ जीती लैेॅ। सीता के ई व्यवहार बनावटी नै छेलै, ऐन्होॅ हुनकोॅ स्वभावेॅ छेलै। हुनकोॅ दुखोॅ सें भरलोॅ जिनगी के कहानी सें सभ्भेॅ वॉकिफ छेलै। शायद यहेॅ सौसे गाँव खुश होय जाय केॅ कारण छेलै।
सतहा में ही सौरी पूजलोॅ गेलै आरो छठी में ही बच्चा के नाम सीता खुदेॅ राखलकै-सोनमनी। कै बरसोॅ के बाद आभरी रोहिणी नक्षत्रा सें ही समय-समय पर वर्षा पुरवतन होय रेल्होॅ छेलै। सुखलोॅ नद्दी, नाला, डाड़, बाँध, पोखर सब टापेटुप भरलोॅ छेलै। छातोॅ पर बान्ही केॅ राखलोॅ होॅर रोपा खेतोॅ में चली रेल्होॅ छेलै। धानों के उपजा मुन्होॅ फाड़ी केॅ होतै ई आसा आरो विश्वासोॅ सें भरलोॅ छेलै किसान। जत्तेॅ वरसा वत्तेॅ बढ़िया उपज।
सीता के एैवोॅ सें आरो साथें ई बच्चा केॅ जनम सें, जखनी पेटोॅ में छेलै तखनिये सें, प्रकृति के रंग-ढंग ने, ओकरोॅ बदली गेलोॅ मिजाज नें सीता के नान्होॅ चिलका केॅ सगुनिया बुतरू बनाय देनें छेलै। बिचड़ोॅ उखाड़तें बिचड़वाहा हुअेॅ कि धान रोपतें रोपनिया सबके जीहोॅ पर सीता के चर्चा छेलै।
सोनमनी नाम धरतैं माय हुलासोॅ सें पूछलकै-"सोनमनी नाम तेॅ छौेॅ बड्डी बढ़िया। सुनै आरो पुकारै में पियारोॅ मतुर ऐकरोॅ मतलब तोहीं बताबेॅ पारै छें बेटी."
हाँसतेॅ हुअेॅ सीता बोललै-"आय चार-पाँच वरसोॅ सें पानी रो एक बून नै बरसलोॅ छेलै। ऐकरा पेटोॅ में ऐतैं आभरी साल जेठेॅ सें कत्तेॅ पानी पड़लै। सुखलोॅ धरती माय के प्यास बुझलै। सौनोॅ के ई सतहा में मणि नांकी चमचम चमकै छै हमरोॅ बेटा। सबके हिरदय में हुलास के इंजोर नांकी बरी गेलै हमरोॅ बेटा। सौनोॅ में यें सबकेॅ अरमानोॅ के जोत बारलकै। रौतोॅ खानदान के यै मणि रोॅ नाम सोनमनी, यहेॅ सोची केॅ राखलियै।" सीता केॅ ई बोलला पर सब चुप होय गेलोॅ रहै आरो सच्चेॅ में सीता खुली केॅ ठठाय केॅ हाँसलै।
सीतावी सिंह के बाद सूर्यमोहन सिन्हा जमींदार ऐलै। धरती रो कोख चाहे जेकरा भागें जुड़ैलेॅ मतुर सीधा-सादा, छोॅ-पाँचोॅ से दूर गाँव के किसान-मजुरें अनपट वरसा होवोॅ केॅ नया जमींदार सिन्हा के पैरा सें भी जोड़ी देलकै। किसानेॅ कहलकै-"ई जे नया जमींदार ऐलोॅ छै, ऐकरोॅ पैरा ठीक छै। वरसा-पानी यहेॅ रंग पड़तें रहै, हम्में सीनी यही में मस्त।" ... आरो जमींदारी के प्रजा सीनी लपका राजा के पुरकस स्वागत-सम्मान करलकै। छल-प्रपंचोॅ से दूर अबोध मूर्ख प्रजा केॅ ई बातोॅ के पता कहाँ छेलै कि कोय भी जमींदार अंग्रेज़ी राज के शोषण, दमन के दलाल, बिचौलिया या शासन तंत्रा के ही मोहरा छेकै जें ओकरैह रूप-भेषोॅ में ओकरेॅ खून चूसी केॅ खुद तेॅ मौज-मस्ती करतैं छै; उपरोॅ सें बेशिया में ब्रिटिश राज के खजाना भरै छै। अपनोॅ मांटी, आपनोॅ देशोॅ केॅ बदहाल करी केॅ देशोॅ रो पैसा इंगलेंड भेजै में ऐकरोॅ कत्तेॅ बड़ोॅ हाथ छै, यै बातोॅ के पता लोगोॅ केॅ नै छेलै।
गाँव भरी केॅ आनन्दोॅ में मगन देखी केॅ जमींदारोॅ के गुमस्ता सोनमनी के छठी में ऐलै। दुपहर होतैं तसीलदार कांति दासोॅ ऐलै। ई पैल्होॅ अवसर छेलै कि केकरोह छठी में जमींदारोॅ के खास आदमी बधाय-सनेश लैकेॅ एैलोॅ रहै। यै सें दुनूं के पलड़ा भारी होलै। एक तरफ जमींदार केॅ उदार, प्रजा वत्सल होय के फायदा मिललै तेॅ सोनमनी के पैरा गाँव वास्तें शुभ छै, ई बातोॅ केॅ ताकत मिललै। सबसें बड़ोॅ बात होलेॅ कि ई दूनोॅ हाकिम नें बच्चा सोनमनी केॅ आशीर्वाद में कपड़ा-लत्ता के साथें एकेस-एकेस टाका भी देलकै। एकेस दूना बियालीस टाका। गाँमोॅ के जोॅर जनानी सें घिरली सीता के गोदी में सोनमनी आरो बाहर द्वारी पर मरदाना सीनी के गिलफिल। जमींदारोॅ तरफोॅ सें आदमी एैलोॅ छै, ई साधारण बात नै छेलै।
जमींदारोॅ के आदमी गेलै आरो हिन्नें दोसरे पूड़ी पाकेॅ लागलै। मामा शिंभू रौतें शगुन के एगारह टाका देतें हुअें कहलकै बहिन सीता सें-"दीदी, भैगना होय के खुशी में हमरोॅ मोॅन छै कि ई नया वसोवासी डीहोॅ पर दस आदमी के हाथ धुलना चाहियोॅ। हाथ खाली रहला के कारण सालभर सें बेशी डीहवास लेनें होय गेलै, पूजा-पाठ तांय नै हुअेॅ पारलै। यै शुभ अवसरोॅ पर सतनरैन भगवानोॅ के पूजा भी करी लेॅ आरो गाँव-टोला केॅ भोज भी खिलाय दहोॅ। गाँमोॅ में छठी के ई पैल्होॅ भोज होतै।"
"बात तेॅ भाय तोंय गुड़ोॅ से मिठ्ठोॅ बोलल्होॅ मतुर घरोॅ के हालत तोरा सें छिपलोॅ नै छौं। साँझकोॅ ठहार नै, मूढ़ा रो इंजोर।" सीता हाँसतेॅ हुऐं सच बोली गेलै।
सच्चेॅ तेॅ बोललोॅ छेलै सीता। दूध बेची केॅ खैवोॅ चलै छेलै। वहोॅ दूध बेचै में द्वार-द्वार बौखेॅ-टौआबेॅ लेॅ लागै छेलै। पैसा सेर दूध कोय पूछै ने छेलै। तहियो
दूध खरीदी केॅ खाय रो औकात गिनलोॅ-चुनलोॅ लोगोेॅ केॅ ही छेलै। यै पर गाँव भरी केॅ खिलाना।
सीता केॅ सोच-विचार में पड़लोॅ देखी केॅ शिंभू बोललै-"ई साहस आरो बल-बूता रो बात सोनमनी के मामुओॅ केॅ नै छै लेकिन ऐकरोॅ इन्तजाम तेॅ जनम लैके साथें खुद हमरोॅ भैगनेॅ करी लेनें छै। ई सौगातोॅ में पड़लोॅ टाका ही अतनैं छै कि सब होयकेॅ कुछ बचिये जैतेॅ। कत्तेॅ दिनोॅ सें गाँव वाला केॅ बढ़ियां सुदाना खाना भी नसीब नै होलोॅ छै।" लगभग गाँव वाला के तरफोॅ सें शिंभू रौतें सीता दीदी के निहोरा ही करलकै।
"ई भैगना केॅ देलोॅ नजरोॅ के टाका छेकौं। ऐकरा खर्च करना उचित होतौं।"
"जे हम्में-तोंय करभोॅ, वहेॅ उचित होतै। नुनु केॅ पड़लोॅ टाका रो उपयोग नुनुअें के छठी भोजोॅ में होतै। गाँव के आपनोॅ-परमिनें भरपेट खैतेॅ आरो नुनु केॅ आशीर्वाद देतै। युग-युग जियोॅ आरो राज करोॅ के कामना करतै, ऐकरा की तोंय कम समझै छोॅ दीदी। दस मिली केॅ भगवान होय छै। पंच ही परमेसर, देर नै करोॅ, हों कहोॅ।" बगलैह में खाड़ोॅ छेलै बिहारियो। ओकरा झकझोरी केॅ शिंभू कहलकै-"मुममुक खाड़ोॅ होयकेॅ ताकै की छै बे सारोॅ। हों, बोलैं न?"
बिहारी ठठाय केॅ हाँसतैं हुअें बोललै-जोॅ न बे सारोॅ, होय गेलै। ग़लत कहाँ कहै छैं तोय। जे कहै छैं, हमरा बेटा के हक्कोॅ में अच्छेॅ लेली कहै छैं। "
"दीदी नै बोलै छै?"
"हिनकोॅ हों पर हम्में कभी नै कहेॅ पारै छी। सब इन्तजाम तोंय करभोॅ। जतना अच्छा करै पारोॅ, करौेॅ। परमिन में जत्तेॅ दोस्त-मोहिम छौं, कोय छूटौं नै। ई दूनोॅ टोला समगरदेॅ नेती दहोॅ। जनानी, मरदाना सभ्भेॅ। सात-आठ मोॅन चौरोॅ में तेॅ भांसी जैतेॅ।" सीतां हामी भरतें हुअें मनोॅ के बात कहलकै।
समय कम छेलै। दोपहर के बाद सात दिनोॅ तांय लगातार झोॅर पड़ी केॅ बदरकुटुवोॅ रौद उगलोॅ छेलै।
रौद की छटपटवाय देॅ। मतुर काम तेॅ करनैं छेलै। छठी आय छेकै आरो भोज होतै कल, ई तेॅ अच्छा नै लागतै। शिंभू सोचलकै, सब होय जैतेॅ, खाली बिजली गति सें काम करै के ज़रूरत छै। चार-पाँच घंटा समै आभी साँझ होय में छै। गाँमोॅ में आदमी के कमी रो सवाले नै छै। खाली भोजोॅ रो घोषणा करी केॅ काम बेतै के छै। लौआ, बाभनोॅ केॅ त्तेॅ साँझ केॅ जनम संस्कार लेली कहलेॅ छै। सतलरैन भगवानोॅ के पूजा वही सीनी करवेॅ करतै। रहलै बात गाँमोॅ में नेतोॅ पठाय केॅ तेॅ ई काम सब दिनां लौआ करतैं छै।
दिन झाड़ी देलेॅ छेलै। झोॅर पड़ै के कोनों लक्षण आकाशोॅ में नै छेलै। शिंभू रौंतें दुआरी पर आबी केॅ कहलकै-"छठी के भोज होतै। धुरछक धरपट भोज। लहारी के दाल, केशौर चौेॅरोॅ के भात, आलू-परबल के तरकारी, बैंगनी के भाजा, पापड़, दही आरो चीनी। सौसे गाँमोॅ केॅ खिलावै के मोॅन छै। जत्तेॅ छौड़ा सीनी छें, सब भिड़ी जोॅ। कपूरी भैया ठियां सब सामान हम्में लानी केॅ जमा करलेॅ जाय छिहों। तोंय सीनी चूल्होॅ खानोॅ।"
गेना ठाकुरोॅ केॅ सुपाड़ी दैकेॅ नेतोॅ दै लेॅ भेजी देलकै आरो आपनें खुद जमींदारोॅ यहाँ चली देलकै। पैसा रहला पर इंतजामोॅ में देरी नै होय छै। तैेॅ पर घटती-बढ़ती लेली तेॅ जमीन्दारोॅ के भरोसा छेवेॅ करलेॅ।
भोजोॅ के नाम सुनतैं गाँमोॅ में खुशी के लहर छाय गेलै। साग-सत्तू आरो माड़-भातोॅ पर केन्होॅ केॅ गुजर करै वाला गाँमोॅ के लोगोॅ रोॅ वहेॅ स्थिति छेलै जे सुखला मरोसी धरती पर पानी पड़ला सें होय छै।
कपूरी भाय आरो बिहारी मिली केॅ गाँमोॅ के बीस-पच्चीस चुनौटा रंगरूट जवानोॅ केॅ लैकेॅ खाना बनवाय लेली भिड़ी गेलोॅ रहै। खाना बनावै में अनुभवी चमकू काका आधोॅ कोरी आदमी लैकेॅ अलगे भिड़लोॅ छेलै। कद्दू के हरा-हरा एक तरकारी चमकू काका के फरमाइसोॅ सें अलगे आबी गेलोॅ छेलै। भोजे तेॅ ओज की? चलेॅ दहीं धरपट्टा। खबैया रो पड़पड़ी नै छूटी जाय तेॅ भोज की। राम साव के दुकान जिन्दाबाद। सभ्भे सामान तेल, मसाला, जीरोॅ मरीच जे सामान के मांग हुअेॅ शिंभू बाबू मंगवाय केॅ देलेॅ जाय छेलै। खाना बनाय के सामान जादा सें जादा एक दोसरा घरोॅ सें मांगी केॅ जुटाय लेलोॅ गेलोॅ छेलै। बरतन-बासन, लोहिया, बटलोही, तमिया, बाल्टी दसगरदा गामोॅ केॅ संस्था सें मिली गेलोॅ छेलै।
साँझ होयके पैन्हेॅ गैस मसाल जली गेलै। केन्होॅ केॅ जमींदारें दू-तीन ठो पंचलैट भेजी देलै छेलै। एक पहर रात बीतला पर विजय शुरू होलै। सतलरैन सामी के पूजा खतम होयकेॅ आरती होय रेल्होॅ छेलै। पैन्हेॅ सें गाँमोॅ के ढेर सीनी बच्चा-बुतरू, बड़ोॅ-छोटोॅ के हुजुम भगवानोॅ के प्रसाद लै वास्ते खाड़ोॅ धक्का-मुक्की करी रेल्होॅ छेलै। हल्ला-हल्ला मचलोॅ छेलै।
भोज शुरू होतै। प्रसाद वितरण के बाद बिहारी सीता सें भंडार पूजा करै लेॅ कहि रेल्होॅ छेलै। पंगत में लोग खाय वास्तें लोटा पानी लैकेॅ बैठी चुकलोॅ छेलै। सतहा रोॅ कादोॅ पूरे ठनकलोॅ नै छेलै, मतुर ऐकरा सें खबैया केॅ कोय अन्तर पड़ै वाला नै छेलै। सुखलोॅ खमारी पर खुल्ला आसमानोॅ के नीचूं मेघ आरो चनरमा के आँख-मिचौनी रोॅ खेल देखतें हुअें पत्तल बिछलै। हिन्नें भोज शुरू आरो हुन्ंनें दीना मांझी के किरतनिया पार्टी रोॅ कीर्त्तन शुरू होलै-"सिया मुख चन्द्र छवि देखूं चहुं ओर हे, प्रेम सिंधु ऐंगना में उठत हिलोर हे ..."।
आरो जनानी सब नान्होॅ चेंगना सोनमनी केॅ बीचोॅ में लैकेॅ चारोॅ बगलोॅ सें घेरी केॅ चिकनोॅ, चुलबुल मीट्ठोॅ आवाजोॅ में सोहर गीत गाबै में मस्त होय गेलै-
आधोॅ रात बीतै पर छेलै। मरदाना सीनी के खैबोॅ खतम होय पर छेलै। अंतिम मरदाना विजय लेली हँकारोॅ पड़ी रेल्होॅ छेलै। पाँच आदमी विजैया करै लेली बेतलोॅ गेलोॅ छेलै। ऐकरोॅ तुरत बाद जनानी विजय होतै। सभ्भेॅ जघ्घोॅ पर ज़रूरी आदमी बेतलोॅ छेलै। काहीं कोय दिक्कत नै हुअेॅ बिहारी आरो शिंभू रौत सगरोॅ घूमी रेल्होॅ छेलै।
जै ठियां खाना बनै छेलै, वै ठिंया गरमी आरोॅ चूलहा के आगिन रो तावोॅ में ठहरवोॅ मुश्किल होय छेलै मतुर गाँमोॅ के भोज-भात मिली-जुली केॅ गाँमेॅ वाला केॅ सलटै लेॅ पड़े छेलै। वै ठिंया जवेॅ आबी केॅ शिंभू खाड़ोॅ होलै तेॅ घामें-घमजोर रसोय रिन्हैेॅ वाला सीनी के बीचोॅ में जमींदारी ठाठ के प्रसंग बड़ी जोर-शोर सें उठलोॅ छेलै।
कुँइयां सें डोरी बाल्टी लैकेॅ पानी खींचै में आठ आदमी भिड़लोॅ छेलै। चार आदमी पानी खींचै में तेॅ चार आदमी बाल्टी सें पानी डरामों में भरै। वहेॅ में महेश तेज-तर्रार दिमाग वाला छेलै। उ$ जोरोॅ सें यही लेली बोली रेल्होॅ छेलै कि सभ्भेॅ सूनेॅ-"हम्में सीनी यहेॅ रंग उभैन-बालटी सें पानी खींची-खींची मरोॅ। गंदा-गंदा पानी पीयोॅ। जमींदार सीतावी सिंहेॅ चंगेरी मिर्जापुरोॅ के पानी नै पीयै छेलै, हुनका लेली बंघी सीका पर बढ़ौना सें पानी आबेॅ छेलै। चार-पाँच जोॅन पानी ढुवेॅ में दिन-रात लागलोॅ रहै छेलै आरो एक हम्में सीनी छी, पानी कुंइयां सें खींचतेॅ हाथोॅ में फोंका होय गेलोॅ।"
बिहारी जेॅ महेशोॅ केॅ फूफा लागतिहै, बातोॅ में बात जोड़लकै-"अरे बेटा, ई जमीन्दारोॅ के की बात करै छैं। पालकी बिना घरोॅ सें बाहर नै निकलै छैलै। तीन पालकी, छत्तीस कहार। दिन-रात खाय छै, दंड पेलै छै।"
"तीनूं पालकी पर जमींदार एक्के साथें केनां चढ़ै छौं फूफा।" महेशवा कहि केॅ हाँसलै।
"बोकराती रोॅ कोय सीमा छै रे बेटा। एक पालकी अपना लेली, दोसरोॅ जमेदारिन लेली आरोॅ तेसरोॅ बाल-बच्चा वास्तें अलग। अरे, रैयतोॅ केॅ मारी-डंगाय केॅ जे वसूली करे छै, ओकरा सें यहेॅ सब अत करै छै आरो की?" फूफा के बात गैढ़ोॅ काहीं धँसी गेलोॅ छेलै महेशवा केॅ। महेशवा कहलकै-"यहाँ तेॅ टोला पर एक ठो कुइयां नै छै। एक कुइयां पर टोला भरी के जनानी, मरदाना केॅ नहौन-सहौन सें लैकेॅ सभ्भेॅ काम करै के लाचारी। झौआ कोठी देखनेॅ छौ फूफा। खंजरपुर भागलपुरोॅ में छै। कहै छै झकास छै। आलीशान, बड़का मकान। कहै छै वहाँ इनरासन के जोत बरै छै।"
बिहारी 'नै' में मूड़ी हिलैलकै-"नै बेटा, हम्में अब तांय भागलपुर नै गेलोॅ छियौ।" "अत्तेॅ बड़ोॅ उमर होय गेल्हों फूफा आरो तोंय भागलपुर नै गेलोॅ छौ।" महेशवा अचरज सें बोललै।
बीचोॅ में कपूरी बोललै-" याहीं छै भागलपुर बे। यहाँ सें चौदह-पनरह कोस। पैदलेॅ जाय लेॅ पड़ै छै। रास्ता में जंगल-झाड़। चोर, उचक्का, लाकड़, बाघोॅ के डोॅर। केश, मुकदमा होलै पर रैयतोॅ के जाय लेॅ पड़ै छै। हेना केॅ भागलपुर कथी लेॅ जैतै। छोटोॅ-मोटोॅ मोॅर-मुकदमा के सुनवाय याहीं चंगेरी कचहरी पर होय जाय छै।
शिंभू यै चरचा केॅ विराम दै केॅ नीयत सें बोललै-"कथी लेॅ यै सीनी में माथोॅ खपाबै छैं बेटा। आपनोॅ काम करें। पानी खींचतें कुइयां में जौं गिरलें तेॅ बस भोज की होतोॅ, सभ्भेॅ के कन्ना रोहट सें हँसी-खुशी में टायठोॅ पड़ी जैतोॅ।"
"लूर-गियान तेॅ यहेॅ रंग दसोॅ के बीचोॅ में बात चीतेॅ सें होय छै बड़ोॅ बाबू।" महेशवा कहलकै।
शिंभू रौत बातचीतोॅ केॅ खतम करै लेॅ चाहै छेलै। यही लेॅ जोॅड़ बात बोललै-"तोरोॅ देश अंग्रेजोॅ के गुलाम छौ बेटा। गुलामोॅ केॅ ई सब सोचना-बोलना भी अपराध छै ओकरा नजरोॅ में। कानोॅ-कान जौं ई बात जमींदारोॅ तांय पहुँची गेलोॅ तेॅ बूझी जो मारी केॅ देहोॅ रोॅ खाल टानी लेतोॅ। देखैं नै छैं, रोग-बियाधोॅ में, गिरला-पड़ला पर, सरदी-खांसी बुखारोॅ में एक पुड़िया दवाय के अभावोॅ में गाँवोॅ के लोग कौलट करी केॅ मरी जाय छै। काहीं जाय-आबेॅ लेली सड़क तक नै छै आरो तोंय इनरासन झौआ कोठी के बात करै छैं। अरे, हमरा सीनी के उपर खाली एक भगवान सहाय रहौ, दोसरा केकरोॅ भरोसोॅ नै। जमींदारी ठाठोॅ के की बात करै छैं, वें सीनी उ$ सुख भोगै छै जे स्वर्गोॅ में देवतोॅ केॅ भी नसीब नै छै।"
शिंभू रौतोॅ के बातोॅ रो तोड़ महेशवा के पास सच्चेॅ में नै छेलै। सभ्भेॅ वहेॅ अंदाजोॅ में चुप होय गेलोॅ रहै जेनां यै बातोॅ केॅ उपर कोय बात हुअेॅ नै पारै।
जनानी सीनी खाय रेल्होॅ छेलै। ऐकरोॅ बाद बारीकें खैतेॅ। भीमोॅ के ई लड़ाय भोरम-भोर चलतै। यै बातोॅ सें सभ्भेॅ वाकिफ छेलै।