सौतन / गोवर्धन यादव
मंजु अपने छोटे से मकान में बेहद खुश है, उसके दो सलोने बच्चे है, बडी बेटी चौथी कक्षा में और मोनू दूसरी में पढ रहा है, पति उसका पूरा ध्यान रखते हैं, कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वह परिवार एक सुखी परिवार है,
पर यह ख़ुशी ज़्यादा दिन तक क़ायम न रह सकी, अंजु को साईटिका ने आ घेरा, कमर से लेकर पैर के अंगूठे में भीषण दर्द होता, वह ढंग से खडी भी नहीं रह पाती थी, तरह-तरह का इलाज़ करवाया गया, कई नामी-गिरामी डाक्टरों के दिखाया गया लेकिन आराम उसे पूरी तरह से नहीं मिल पाया था, जिसकी वज़ह से घर-गिरस्थी के काम पर असर पडने लगा था, काफ़ी सोच विचार के बाद उसने अपनी छोटी बहन पूजा को बुला लिया, इस समय वह एम, ए फ़ाइनल का इम्तहान दे रही थी,
पूजा घर के सारे काम आदि निपटाकर अपनी पढाई के भी समय निकाल ही लेती थी और आवश्यकता पडने पर अपने जीजाजी के साथ किराना आदि की खरीद के लिए भी जाने लगी थी, इन सब के लिए उसकी अपनी सहमति भी होती थी,
पूजा निहायत ही खूबसूरती की मालकिन थी, स्थिति कुछ ऐसी बन पडी थी कि अब उसके जीजाजी भी उसमें रुचि लेने लगे थे, बच्चे भी उससे काफ़ी हिलमिल गए थे, कभी-कभी तो वे अपनी माँ से यह भी कह जाते कि तुमसे अच्छी तो उनकी मौसी है, जो उनका पूरा ध्यान रखती है, अपाहिज बनी मंजु सब देख-सुन रही थी लेकिन मजबूर थी, कभी उसे तो ऐसा भी लगने लगा था कि उसकी अपनी छॊटी बहन ही उसकी सौतन बनने जा रही है, उसने उसे रोकना-टोकना चाहा, पर वह ऐसा नहीं कर पायी थी, जानती थी कि बात अब बहुत आगे बढ चुकी है और ऐसे समय में कुछ भी बोलना उसके लिए मुसिबतें खडी कर सकता है, अतः चुप रहना ही श्रेयस्कर लगा था उसे, एक छोटे से सोच ने उसकी दिशा ही बदल दी थी, "यदि पूजा न होती तो उसकी जगह कोई और होती और यह ज़रूरी तो नहीं कि वह उसकी देखभाल अच्छी तरह करती, पूजा उसकी छॊटी बहन है, एक बहन होने का अहसास तो उसे है और वह पूरे प्राणपन से उसकी देखरेख तो कर रही है, बच्चे भी फिर उसे चाहने लगे है," पूजा अब सौत नहीं बल्कि उसे उसकी सहेली-सी लगने लगी थी,
केवल सोच का चश्मा बदलते ही सब कुछ अच्छा लगने लगा था