सौतेलेपन के रिश्तों के विविध रूप / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2014
फिल्म उद्योग में कुछ लोगों ने दो विवाह किए हैं और उनकी दूसरी पत्नी के संबंध पहली पत्नी से भले ही मधुर ना हों तो परंतु अपनी सौतेली संतानों के साथ उनके संबंध बड़े अच्छे हैं ओर यह दिखावा नहीं है, मसलन शबाना आजमी फरहान और जोया अख्तर से स्नेह रखती हैं और उनके हर जन्मदिन और अन्य समारोह में मौजूद रहती हैं। करीना कपूर का भी सैफ-अमृता के पुत्र इब्राहिम और पुत्री सारा के साथ दोस्ताना है। इसी तरह आमिर-रीना के पुत्र जुनैद से उनकी दूसरी पत्नी किरण के संबंध बहुत अच्छे हैं और किरण खेर के पहले पति से जन्मे सिकंदर को अनुपम खेर पुत्रवत प्यार करते हैं। इसी तरह सोनी राजदान महेश भट्ट की पहली पत्नी की संतान पूजा से दोस्ताना निभाती हैं तथा आलिया और पूजा भट्ट में बड़ा बहनापा है। इसी तरह मान्यता भी त्रिशाला से संपर्क बनाए रखती हैं। रितिक रोशन भी सुजान के भाई से दोस्ताना निभाए हुए हैं और अपने श्वसुर से भी उनका दोस्ताना है।
इस मामले में मीडिया का ध्यान कभी पहली पत्नियों के सूनेपन, कड़वाहट और अकेलेपन की ओर नहीं गया। जावेद अख्तर की पहली पत्नी दक्षिण भारत के कुनूर में बस गई हैं और कभी-कभी ही मुुंबई आती हैं। उनके सुपुत्र फरहान और सुपुत्री जोया कामयाब हैं परंतु उनकी कामयाबी को अगर एक तस्वीर मान लें तो उसमें उनकी जगह शबाना खड़ी हैं। इसी तरह आमिर खान की पहली पत्नी रीना भी सारी चमक-दमक से दूर रहती हैं। अमृता सिंह ने सैफ अली खान से उस समय विवाह किया था जब सैफ संघर्षरत थे और असफल भी थे। आज अमृता अलग-थलग पड़ गई हैं। उनके बच्चे उनके साथ ही रहते हैं परंतु उनकी तस्वीरें करीना के साथ छपती हैं। ऐसा नहीं है कि तस्वीरें रिश्तों को पूरी तरह प्रगट कर रही हैं। इसी तरह आलिया आज शिखर पर हैं और उसने अपनी मां सोनी राजदान को नया रुतबा दिया है। भट्ट परिवार के फैमिली फोटोग्राफ में उनका स्थान बन गया है परंतु भट्ट साहब की पहली पत्नी जीवन के हाशिये में कहीं मौजूद हैं।
आम जीवन में सौतेलापन का भाव अपने पूरे विद्रूप के साथ मौजूद हैं जबकि फिल्मी परिवारों में तस्वीरें कुछ अलग बयां कर रही हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं, पहला तो यह कि सभी रिश्तों पर सफलता और आर्थिक स्थिति का असर होता है और इस भौतिक यथार्थ को जानकर अनदेखा करने पर भी वह मौजूद रहता है। विमाता का प्रसिद्ध और सफल होना उसके एक अलग ही सम्मान दिलाता है और उसके ताप से अपने को वंचित रखना भला किसे पसंद होगा? पिता का झुकाव भी अहमियत रखता है और पिता समृद्ध और सफल हो तो कौन उससे रिश्ता तोड़ेगा। कुछ यही बात इस रूप में भी उभरती है कि लंपटता के आरोपी सफल-समृद्ध व्यक्ति का बचाव करने उसकी पत्नी सामने आती है जबकि उसका आत्म स्वाभिमान आहत हुआ है, उसका प्रेम अधूरा है और ठुकरा दिया गया है।
दूसरी बात यह है कि फिल्मी परिवारों में बहुत खुलापन है। वे न केवल हॉलीवुड से प्रभावित व प्रेरित हैं वरन् उनके जीवन में हॉलीवुडी आधुनिकता है। मध्यम वर्ग टेक्नोलॉजी का भरपूर प्रयोग करता है परंतु वह अपनी संकीर्णता से मुक्त नहीं है और अजीबोगरीब बात यह है कि उसने अपने इस दोहरे मानदंड को बड़े गरिमामय नाम भी दिए हैं। दरअसल टेलीविजन पर प्रसारित सीरियल सौतेलेपन को मरने नहीं देंगे और कोई 'बिंदू का लल्ला' अब बनाई नहीं जा सकती जो ममता को इस तरह परिभाषित करती है कि दूसरे के बच्चे के प्रति प्यार ही ममता का श्रेष्ठतम है। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में सौतनें आपस में भिड़ भी जाती हैं और गालियां भी दाग देती हैं परंतु उनके पति की बुराई तीसरा व्यक्ति करे तो उस पर मिलकर आक्रमण कर देती हैं। सौतेलापन अलग-अलग आर्थिक वर्ग में अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्त होता है। यह एक ऐसा दंश है जो लाख परतों के बाद भी पूरी तरह छुप नहीं सकता। बडज़ात्या परिवार ने संभवत: किसी क्षेत्रीय भाषा की फिल्म का हिंदी संस्करण 'सौदागर' नूतन और अमिताभ बच्चन के साथ उस समय बनाया था, जब वे शहंशाह नहीं करता है और पत्नी का श्रेष्ठ गुड़ बनाती है परंतु पति अन्य पत्नी श्रेष्ठ गुड़ बनाती है परंतु पति अन्य स्त्री की ओर उसकी मादकता और कम उम्र के कारण आकर्षित हो जाता है। पत्नी को तलाक देकर दूसरी से विवार कर लेता है परंतु वह गुड़ को गोबर की तरह बनाती है और धंधा चौपट हो जाता है औ भुखमरी से बचने के लिए पहली गुणवान पत्नी से सहायता मांगता है। इस त्रिकोन में आर्थिक पक्ष ही सशक्त रूप से उभरता है।