सौदागर / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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जब वो दोनों पहली बार मिले तो एक-दूजे के लिए अजनबी थे। न नाम जानते थे न शक्ल। दोनों अचानक रास्ते में मिले और किसी बात पे हँस पड़े और बड़ी देर तक हँसते रहे जैसे जन्मों के बिछड़े कोई मित्र हो।

हंसते-हंसते जब थक गए तो बातें करने लगे। बातचीत के दौरान पता लगा उनमें से एक हँसी का सौदागर था, जो समन्दर किनारे से आया था। हँसी का सौदा करने में उसे बड़ा घाटा उठाना पड़ा था। इसलिए अबकी बार उसने रेगिस्तान की तरफ रुख किया था।

रेगिस्तान में कदम रखते ही उसकी मुलाकात एक अंधी लड़की से हो गयी। उस लड़की ने बताया वो पास में ही रहती है और अक्सर रेगिस्तान की हरियाली देखने चली आती है। “रेगिस्तान में हरियाली? वो भी अंधी होकर?” (सौदागर चौंक पड़ा)

“क्या तुम पागल हो”?

“हाँ जैसे तुम पागल हो, तुम भी तो समन्दर छोड़ कर रेगिस्तान में प्यास लेके आ गए।“ (लड़की मुस्काई)

इस बात पे दोनों सदियों तक हंसते रहे उनके हंसने से रेगिस्तान में कई मरुद्यान बन गए।

सौदागर ने बताया वो बरसों से हँसी का व्यापार कर रहा था। दुकान लगाता था उसके कहकहे ज़माने भर में मशहूर थे। उसका बड़ा नाम था लोग आज भी उसके बनाए लतीफे सुनते-सुनाते हैं। लेकिन हँसी-ख़ुशी का व्यापार उसे रास नहीं आया। लोग अब हँसना भूल चुके थे उन्हें अब किसी बात पे हँसी नहीं आती थी। लोग उसकी दी हुई हँसी की पुड़िया ले ज़रूर जाते थे और होठों से चिपका कर हँसने का स्वांग करते थे; खुश होने का ढोंग भी। हँसी बेचते-बेचते वह खुद दिल से हँसना भूल चुका था। अब उसके भीतर कोई हँसी, ख़ुशी या मुस्कान नहीं बची है। पहले जब वो हंसता था तो लोग कमरों से बाहर निकल आते थे (सौदागर अतीत में खोने लगा)

"तुम इतना सुन्दर हँसते हो कि लोग कमरे क्या कब्रों से बाहर निकल आते होंगे। "

“जो लोग हँसते नहीं वो मुर्दा होते हैं, और ताउम्र उदासी की कब्र में दफ़न रहते हैं”। (लड़की ने उसकी बात बीच में ही काटी)

इस बात पर दोनो देर तक हँसते रहे। सौदागर ने ध्यान से देखा लड़की की हँसी और उसकी हँसी में बड़ा फर्क था। उस अंधी लड़की के हँसने से आस-पास फूल खिलते थे। लेकिन वह इस बात से अनजान थी। सौदागर ने चुपके से कई फूल उठाकर अपने पास रख लिए।

एक दिन उसने लड़की से पूछा "तुम बहुत सुन्दर हंसती हो कहाँ से लाती हो ऐसी हँसी?”

"ये हँसी मेरे भीतर कब से है मैं नहीं जानती। मैं ये भी नहीं जानती कि मैं मुस्काते हुए कैसी दिखती हूँ या मेरे होंठ कैसी आकृति बनाते है। लेकिन मुझे ये पता है कि मेरे मन में जब अच्छे भाव उठते है या मैं किसी के लिए अच्छा सोचती हूँ तो मेरे होठों पर कोई हरकत होती है। भीतर कुछ जन्म लेता है और कुछ होठों पे सज जाता है।“ (लड़की मुस्काई) सौदागर ने ध्यान से देखा उसके होठों पर एक सच्ची मुस्कान खिल गयी थी। वह उसे घंटों देखता रहा।

लड़की ने आगे बोलना शुरू किया, "मुझे लगता है हँसी या मुस्कान पहले मन की मीठी नदी की गहराइयों में जन्म लेती है फिर होठों तक आती है। ठीक वैसे ही जैसे आंसू मन के दर्दीले समन्दर में बनते है फिर आखों तक आते है।"

इस पर सौदागर बोला "मैंने तो जिन्दगी में ये जाना है कि जो जितना दर्द से भरा होता है वह उतना ज्यादा हँसता है और एक दिन उसकी सच्ची हँसी मर जाती है जैसे मेरी मर गयी। तुम तो बहुत हंसती हो, मुझे डर लगता है तुम्हे देख कर, तुम पाखंड करती हो न? हंसने का, खुश होने का, तुम्हारे भीतर गहरा दर्द भरा है, है न?"

इस बात पे लड़की बड़ी देर तक हंसती रही उसके हंसने से कई फूल महक उठे।

लड़की ने बोलना शुरू किया "मुझे ज़िन्दगी ने कई लतीफे सुनाए हैं जिन्हें याद करके मैं हमेशा हंसती हूँ। हम सभी दर्द के समन्दर की मछलियाँ है, तो क्या मुस्काना छोड़ दे? हंसना भूल जाये? जैसे मछली अपने आसपास के पानी को हटाकर तैरती है वैसे ही हमें भी दर्द को परे हटाकर हंसना आना चाहिए।“

“देखो तुम्हारे चेहरे पे दर्द के कितने शिलालेख खुदे हैं। चलता फिरता मकबरा लगते हो”, इतना कहकर लड़की हंसती रही। इस बार सौदागर भी हंस पड़ा। उसके हँसते ही उसके चेहरे से दर्द का एक टुकड़ा जमीन पर आ गिरा।

“लो देखो एक बार हंसने से ही तुम्हारा दर्द पिघल गया। मेरे पास हँसी का इरेजर है रोज मिला करो। हंसा करो एक दिन तुम्हारे सारे दर्द मैं इस हँसी के इरेजर से मिटा दूंगी” (इस बात पे दोनों हंस पड़े)

सौदागर ने अपने चेहरे को छुआ तो हैरान हो गया वाकई उसके चेहरे से दर्द की लकीरे मिट रही थी। वक्त ने कब उसके चहरे पर दर्द का हिसाब लिख दिया था उसे पता ही नहीं चला था। लेकिन ये अंधी लड़की कैसे सब जानती है। और क्या सच में इसके पास कोई इरेजर है हँसी का? सौदागर को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

उस रात उसने महसूस किया उसका चेहरा पहले से भी खूबसूरत हो गया था और अब दर्द की लकीरें हल्की हो गई थी। सच में उस अंधी लड़की की हँसी से उसका दर्द कम होने लगा था। उसके भीतर बरसों पहले मरी हुई हँसी का अंकुर फूटने लगा था। लेकिन अभी वो उस लड़की की तरह हंस नहीं पाता था और न फूल खिला सकता था। अब वो जब भी उस हंसने वाली अंधी लड़की से मिलता उसका दर्द कम हो जाता दोनों घंटों हँसते थे।

रोज-रोज उसके पास जाकर अपना दर्द कम करने का ये रोजगार उसे परेशान करने लगा। एक दिन उसने मन ही मन सोचा "आखिर कब तक मैं उस के पास जाता रहूँगा? क्यों अहसान लेना किसी का? आज ये हँसी का इरेजर उधार दे रही है कल अगर इसने सूद समेत वापस मांग लिया तो? कैसे वापस करूँगा? आज मैं उसे साफ-साफ मना कर दूंगा कि कल से मिलने आने की ज़रूरत नहीं और न हँसी के इरेजर की मुझे जरुरत है”। (सौदागर मन ही मन बड़बड़ाया)

बहुत इंतजार करने पर भी उस शाम लड़की नहीं आई। शाम से रात हो गयी सौदागर का सब्र जवाब देने लगा। वह उस लड़की के घर की तरफ चल दिया।

अपनी झोपड़ी में वह अकेली सो रही थी उसके होठों पर अब भी हँसी चिपकी हुई थी। सौदागर ने मन ही मन सोचा “क्यों न ये हँसी ही चुरा ली जाए ताकि रोज-रोज इससे मिलने का झंझट खतम हो। मैं खुद ही अपना दर्द इस इरेजर से मिटा सकूँगा। रोज इसके आपस आकर समय कौन नष्ट करे? मुझे तो अनंत यात्रा पे निकलना है।“

सौदागर धीरे-धीरे उस लड़की की तरफ बढ़ा और चुपके से उसके होठों से हँसी चुरा ली और दबे पाँव से चुपके-चुपके निकल कर अंधेरों में गायब हो गया।

सुबह होने पर लड़की ने पाया कि उसके होठों से मुस्कान गायब है और हँसी भी। वह दुःख से भर गयी। बहुत खोजने पर भी उसे हँसी नहीं मिली। खुद से ज्यादा उसे उस सौदागर की चिंता थी कि अब वो कैसे उस सौदागर का दर्द मिटा सकेगी।

उधर, दूसरी तरफ सौदागर हँसी चुरा तो लाया लेकिन उस हँसी से उसका अपना दर्द मिट नहीं पा रहा था और न वो हंस पा रहा था। उसने फिर से एक बार हँसी के इरेजर को चेहरे पे लगाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। होठों पे चिपकाया फिर भी उसे हँसी नहीं आई। अचानक उसे उस अंधी लड़की की बात याद आई, “हँसी तो मन की मीठी नदी में जन्म लेती है फिर होठों तक आती है”

अब की बार उसने अपने सीने पे हाथ रखा और मन टटोला लेकिन... वहाँ उसे कुछ नहीं मिला।

“ओह... यह क्या हो गया उस रात हँसी चुराने के चक्कर में, मैं अपना मन उस लड़की के सिरहाने ही छोड़ आया”