सौदा / डॉ. रंजना जायसवाल

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“अजी सुनती हो अपनी बेटी के लिए बड़े भैया ने बहुत अच्छा रिश्ता बताया है। इकलौता लड़का है।”

“अरे वाह बड़ी अच्छी खबर सुनाई। न जेठ-जेठानी की कीच-कीच न ननद की चोंचले बाजी बर्दाश्त करनी पड़ेगी।”

“बड़े भैया ने कोई फोन नंबर वगैरह दिया है?”

“हाँ बड़े भैया ने उनसे बात की थी। अपनी बिटिया की फोटो भी उन्हें भेजी है। आगे की बात करके देखते हैं।”

शर्मा जी ने मोबाइल से नंबर मिलना शुरू किया- “नमस्कार! मैं अनिल शुक्ला का छोटा भाई हूँ।”

“नमस्कार शुक्ला जी, कैसे है आप…?"

“जी मैं ठीक हूँ, वो आपको भैया ने बेटी को फोटो भेजी होगी।”

“जी-जी…”

“कैसी लगी आपको…?”

“वो सब तो ठीक है शुक्ला जी, पहले हम लोग तो एक -दूसरे को जान ले।”

“शर्मा जी जानना क्या है? मैं प्राइवेट कंपनी में काम करता हूँ। भगवान की दया से किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। मेघा हमारी इकलौती बेटी है सब कुछ उसी का है।”

“इकलौती?”- शर्मा जी की आवाज़ अचानक से तल्ख़ हो गई।

“जी कोई बात है।”

“माफ कीजिएगा शुक्ला जी मुझे घुमा-फिराकर बात करने की आदत नहीं है। आपकी बेटी से ये रिश्ता नहीं हो सकता।”

“क्या हुआ भाई साहब?”

“बेटे को इस शादी से रिश्ते के नाम पर क्या मिलेगा। कल जब आप दोनों मियाँ-बीबी इस दुनिया में नहीं होएँगे, बहू का तो मायका ही खत्म हो जाएगा।”

“शर्मा जीsss…वो!”- पीछे से किसी महिला की आवाज़ आई।

“मेरा लड़का तो सास-ससुर की सेवा करते-करते मर जाएगा। हमें ऐसा रिश्ता नहीं करना है।”

शुक्ला जी शुक्लाइन की तरफ ठगे से देख रहे थे।

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