सौन्दर्य प्रतियोगिता / शिव नायपॉल
शिव नायपॉल का जन्म 1945 में ट्रिनिडाड में हुआ था। आप प्रसिद्ध कथाकार वी.एस. नायपॉल के छोटे भाई हैं। ‘सौन्दर्य प्रतियोगिता’ (दि ब्यूटी काण्टेस्ट) आपकी पहली प्रकाशित रचना है। आपका पहला उपन्यास ‘फायरफ्लाईज’ शीघ्र प्रकाशित। आपको भारतीय मानसिकता में कितनी आस्था है, इसका प्रमाण यह कहानी है।
दून टाउन में भारी माल की छोटी दुकानें थीं और ‘ओरिएण्टल एम्पोरियम, मालिक आर. प्रसाद’ उनमें से एक थी। दुकान में ओरिएण्टल (पूरबी) जैसा तो दूर तक भी कुछ नहीं था। लेकिन चूँकि उसका नाम आर. प्रसाद के पिता ने रखा था। इसलिए किसी ने उस नाम को बदलने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया था। दूसरी दुकान, जो कुछ ही दूरी पर थी, उसका नाम कुछ सही किस्म का था - ‘जनरल स्टोर’, मालिक ए. एलियांग। हालाँकि वे दोनों एक ही तरह का माल बेचते थे, फिर भी कई बरसों से वे बड़े अच्छे तरीके से निभाये चले आ रहे थे और मिस्टर प्रसाद जब अपने ग्राहकों को यह बताते कि मैं और मिस्टर एलियांग घनिष्ठतम मित्र हैं, तो लगता जैसे उन्हें इस बात में आनन्द मिलता है। पर इधर सम्बन्ध कुछ ठण्डे पड़ गये थे। दिक्कत की जड़ थी स्टीफन एलियांग जिसे उसके पिता ने बिजनेस मैनेजमेण्ट का अध्ययन करने के लिए संयुक्त राज्य भेजा था और वह लौटकर आया तो अपने साथ पेस्टल रंगों की कमीजें ही नहीं लाया, नये खयालात भी ले आया। पहली चोट तब पड़ी जब जनरल स्टोर ने चमचमती रोशनी वाला नीयोन साइन लगवा लिया, साथ ही काड-ब्वॉय-पोशाक में एक आदमी की तस्वीर थी, जो कहता था-अगर यह स्टोर शहर का श्रेष्ठतम स्टोर न हो तो मुझे गोली मार दीजिए। श्रीमती प्रसाद ने उसी तरह के साइन के लिए आन्दोलन ही खड़ा कर दिया। उनके पति नये खयालों का स्वागत तो करते थे पर अपनी कल्पना की गहराइयों को छान मारने के बाद भी कोई विचार सतह पर न पाया। मिस्टर प्रसाद के साथ ऐसा ही होता था। उन्हें ऐसा लगता था जैसे जाने कैसे मिस्टर एलियांग के साइन ने सभी सम्भावनाओं को अपने आप में समेट लिया है। सफलता का निकटतम बिन्दु उनके लिए यही रहा कि एक चित्र तीन दरवेशों को रेगिस्तान में सवारी करते दिखाया जाए और वे ओरिएण्टल एम्पोरियम की ओर जा रहे हों-इस चित्र के चारों ओर एक अलौकिक किस्म की रोशनी रहे। बहरहाल, उन्हें शक था कि यह चीज नकल तो थी ही, शायद नीति-विरुद्ध भी थी। इसीलिए उन्होंने बिलकुल दूसरा ही रुख अपनाया।
“मेरी सेवा का मूल्य उन चीजों के गुणों में है जिन्हें मैं बेचता हूँ,” उन्होंने अपनी पत्नी से कहा।
“मूर्खता की बातें मत करो। तुम दोनों एक ही तरह का सामान बेचते हो।”
“मैं सीधा-सादा आदमी हूँ, तारा, और सीधे-सादे लोगों को सामान बेचता हूँ। तुम्हारा खयाल है कि वे इन नीयोन साइनों की परवाह करेंगे?”
लेकिन मिस्टर प्रसाद का सीधे-सादे लोगों के बारे में खयाल गलत था। उन्हें मिस्टर एलियांग का नीयोन साइन पसन्द आया था और ओरिएण्टल एम्पोरियम से हटकर उनकी खरीददारी दूसरी ओर बढ़ने लगी थी। तब मिस्टर एलियांग ने एक और क्रान्तिकारी चीज कर डाली। दून टाउन में यह रिवाज था कि भारी किस्म का सामान बाहर फुटपाथ पर रख दिया जाता था ताकि लोगों की नजर उधर पड़ सके। मिस्टर एलियांग ने ऐसा करना बन्द कर दिया। इससे स्थान की इज्जत कम होती है, उन्होंने मिस्टर प्रसाद को बताया। उन्होंने जनरल स्टोर के आगे के भाग का पुनर्निर्माण करवाया और खिड़कियों में काँच लगवा लिये, जिनके पीछे चीजें करीने से लगी नजर आने लगीं। यह काम उनकी बहू का था। इस परिवर्तन से एक नये नारे का जन्म हुआ : ‘फुटपाथ चलने के लिए बनाये गये थे?’ इसने लोक-कल्पना को जकड़ लिया और मिस्टर प्रसाद के सीधे-सादे लोग अधिकाधिक संख्या में उन्हें छोड़ते चले गये।
“वह आदमी तो तुम्हारा उल्लू बनाये दे रहा है।” मिसेज प्रसाद ने अपने पति से कहा।
“तुम्हें मानना पड़ेगा, तारा, कि वह मौलिक है।” और साथ ही मिस्टर प्रसाद ने, जोकि इधर अपने आपको हेय स्वीकार करने पर जैसे तुले ही हुए थे, कहा, “मैं नहीं जानता, तारा, कि बात क्या है लेकिन मैं चाहे जितनी मर्जी कोशिश कर लूँ, मैं वैसी मौलिक बातें सोच ही नहीं पाता।”
फुटपाथ चलने के लिए बनाये गये थे। तुम इसे मौलिक कहते हो? बहरहाल उन्हें हैरानी थी तो इस बात पर कि आखिर मिस्टर एलियांग ही क्यों ऐसा सोच पाये, उनके पति क्यों नहीं सोच पाये।
“तुम करोगे क्या?” लहजा झिड़की वाला था। मिस्टर प्रसाद बेकार में ही अपनी कल्पना की धरती में फावड़े चलाते रहे।
“तुम काम फैला क्यों नहीं लेते?”
मिस्टर प्रसाद किसी और सोच में खोये लग रहे थे।
“तुम मिस्टर रामनाथ वाली दुकान खरीद लो।” उनके शब्दों में नरमी थी - “तुम्हारी दिक्कत यह है कि तुम अपने आपको हीन बनाये रहते हो। बड़े लोगों की तरह सोचो।”
काम बढ़ाने का खयाल मिस्टर प्रसाद को पसन्द आया। कुछ क्षणों के लिए वह महत्त्वाकांक्षी होकर सोचते रहे। तब उनके चेहरे पर घटा-सी छा गयी।
“कितने दुख की बात है कि एलियांग बदल गया। हम दोनों का काम तब तक कितना अच्छा चल रहा था, जब तक उस कुतिया के बच्चे उनके बेटे ने उनके दिमाग में अपने विचार घुसाने शुरू नहीं किये थे। न कोई झगड़ा था, न परेशानी, तुम्हारे खयाल में उसे हुआ क्या?”
“यह व्यापार है। एलियांग व्यापारी है। वह तुम्हारे लिए दान-खाता नहीं चला रहा और अब वक्त आ गया है कि तुम भी अपने को व्यापारी समझो, तो मिस्टर रामनाथ के बारे में क्या कहते हो?”
“मुझे नहीं लगता, तारा, कि मैं वहाँ कुछ कर पाऊँगा। रामनाथ अपने पैसे से प्यार करता है-अपने नाखूनों की तरह।”
“बड़े आदमियों की तरह सोचो! अपने आपको छोटा करके सोचना छोड़ो।” मिसेज़ प्रसाद जिद पकड़ रही थीं क्योंकि उन्हें अपनी कल्पना के तन्तु में भी छेद नजर आने लगे थे।
“तुम्हारा ख्याल ठीक हो सकता है। मुमकिन है मैं अपने आपको छोटा करके सोचता हूँ। घटा गायब हो गयी-मैं नहीं जानता तुम्हारे बगैर मेरा क्या होता, तारा।”
“छोड़ो भी। तुम्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।” और खुशी से वे एक-दूसरे की ओर देखने लगे।
मिस्टर रामनाथ, जो ओरिएण्टल एम्पोरियम के साथ वाली दुकान के मालिक थे, मुख्यतया साइकिलें ही बेचते थे। वह अपना व्यापार एक स्वार्थ भरी प्रसन्नता के तहत चलाते थे और अपनी इस भावना को मित्रों और ग्राहकों पर समान रूप से बरसाते रहते थे। मिस्टर प्रसाद इस बात से वाकिफ थे और उनसे मिलने में हिचकिचा रहे थे। उनकी पत्नी को कई दिन तक उनकी आकांक्षाओं की डूबती हुई लपटों को हवा देते रहना पड़ा।
मिस्टर रामनाथ अपनी दुकान के बाहर के फुटपाथ पर खड़े थे, जब मिस्टर प्रसाद उनकी ओर बढ़े।
“गुड आफ्टर नून मिस्टर रामनाथ! देखता हूँ आप ताजी हवा खा रहे हैं।”
मिस्टर रामनाथ ने फुटपाथ पर थूक दिया। फिर अपनी जेब से फ्लैनल का टुकड़ा निकालकर एक साइकिल के हैण्डलबार को चमकाने लगे।
मिस्टर प्रसाद सहानुभूतिपूर्ण लहजे में खाँसे - “देखिए, आपका क्या ख्याल है हम कहाँ जाकर बात कर सकते हैं?”
“क्यों, किसी कष्ट में पड़ गये हैं क्या?” मिस्टर रामनाथ अचानक खुश हो उठे लगते थे।
“नहीं-नहीं, वैसे कोई बात नहीं है।”
मिस्टर रामनाथ की अपनी निराशाएँ थीं। उन्होंने उदास होकर मिस्टर प्रसाद की ओर देखा - “अन्दर आ जाइए और बोलिए क्या बात है।”
मिस्टर रामनाथ कैश-रजिस्टर के पास एक स्टूल पर बैठ गये। रजिस्टर पर साफ-साफ काले अक्षरों में लिखा हुआ था : ‘हमने बैंक के साथ वादा कर रखा है कि हम उधार नहीं देंगे। उन्होंने वादा किया है कि वे साइकिलें नहीं बेचेंगे।’
“बात ऐसी है, मिस्टर रामनाथ कि... मैं एम्पोरियम को फैलाना चाहता हूँ।”
“ओ... एलियांग आपको कष्ट दे रहा है। मैं सोच ही रहा था कि यह बात एक-न-एक दिन होने ही वाली है।” उनके चेहरे पर चमक आ गयी। अपनी जाँघ पर हाथ पटकते हुए उन्होंने रजिस्टर पर लिखे शब्दों पर अपनी निगाहें घुमायीं - “आप मेरी राय चाहेंगे?”
मिस्टर प्रसाद को बेचैनी-सी महसूस हुई - “राय तो उतनी नहीं जितनी...”
मिस्टर रामनाथ मुसकराये, “आप इस दुकान के फेर में हैं। हैं न?”
“आप यही मान लीजिए।”
“दस हजार डॉलर, मिस्टर प्रसाद - न एक पैसा ज्यादा, न एक पैसा कम।”
“हूँ।” मिस्टर रामनाथ की विक्रय-क्षमता ने उन्हें चिन्तित कर दिया।
“मैंने कहा है दस हजार।”
“आप सोचेंगे नहीं...”
“दस हजार, मिस्टर प्रसाद। न एक पैसा ज्यादा न एक पैसा कम। यह जगह तो सोने में तुलनी चाहिए।”
“मुझे इसके बारे में सोचना पड़ेगा। बाद में बताऊँगा।”
“ठीक है, मिस्टर प्रसाद। पर जरा जल्दी नहीं तो मुमकिन है मेरा खयाल बदल जाए।”
“वह बारह हजार माँगता है,” मिस्टर प्रसाद ने पत्नी से कहा।
“पर जगह तो आठ के लायक है।”
“मैं जानता हूँ। चिन्ता मत करो। मैं उसे नीचे ले आऊँगा।”
“मैं आपको आठ से ज्यादा नहीं दे सकता,” मिस्टर रामनाथ।
“दस, मिस्टर प्रसाद, न एक पैसा ज्यादा। न एक पैसा कम।”
“उसे मनाना आसान काम नहीं है, तारा। पर मैं उसे ग्यारह तक तो ले ही आऊँगा।”
“पर वह जगह नौ से ज्यादा के लायक तो कतई नहीं है।”
“तुम क्या सोचती हो मुझे मालूम नहीं है! तुम चिन्ता मत करो। मैं उसे नीचे लाकर छोड़ूँगा।”
“मैं आपको नौ हजार दे सकता हूँ, मिस्टर रामनाथ।”
“आपको मेरा उत्तर मालूम है मिस्टर प्रसाद। न एक...”
“अच्छा-अच्छा।”
“मेरा खयाल है, तारा, अगर मैं बहुत सिर मारूँ तो उसे दस पर राजी कर सकता हूँ।”
“अगर सोचा जाए तो कीमत बुरी नहीं है।”
“मुझे मालूम है। चिन्ता मत करो। मैं उसे दस पर राजी कर लूँगा। देखती जाओ।”
“ठीक है मिस्टर रामनाथ। आपकी बात ही मान ली दस हजार।”
“नकद?”
“हाँ, हाँ, नकद।”
“इस जगह को अपना समझिए, मिस्टर प्रसाद।”
“वह... दस पर आ गया।”
“अच्छी बात है। देखा तुमने जरा-सी दृढ़ता का क्या असर होता है? बारह हजार। तुम्हें उसने क्या समझा था, हैं।”
“मैंने तुम्हें बताया था न कि मैं उसे नीचे ले आऊँगा। बस जरूरत थी तो वक्त की।”
लेकिन जनरल स्टोर अपनी चमक-दमक पर ही आश्रित नहीं था। दुकान के नौकर वरदी पहनकर आते थे और मिस्टर एलियांग दुकान के पिछले हिस्से में बने ऑफिस में बैठे मेहनत से काम करते रहते थे। पर वह अगला कदम ही था जिसने बरसों की दोस्ती को छिन्न-भिन्न करके रख दिया। मिस्टर एलियांग ने कीमतें घटाना शुरू कर दिया। मिस्टर प्रसाद असहाय-से खड़े देखते रहते जबकि जनरल स्टोर हर हफ्ते किसी-न-किसी तरह की रियायत की घोषणा कर देता। उनकी अपनी योजनाएँ बड़ी कमजोर साबित हो रही थीं। जब उन्होंने मिस्टर रामनाथ की दुकान खरीदी तो पहले तो उनकी पत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा। उस वक्त उनके सामने जो सपना था उसमें महलनुमा दुकान और आसमान छूने वाले फायदे के बिम्ब थे। वह निराश हो गयीं। मिस्टर प्रसाद को यही नहीं सूझ रहा था कि वह अतिरिक्त स्थान का करें क्या! उन्होंने बीच की दीवार गिरवा दी और फिर पूरे विस्तृत क्षेत्र में चीजों को फैलाकर रख दिया। अब खालीपन परेशान करने लगा। बाद में उन्होंने कुछ पुरानी चीजें भी वहाँ लाकर रख दीं। इतना कर लेने के बाद उनकी कल्पनाशक्ति जवाब दे गयी। और उसके साथ ही उनकी पत्नी के सपने भी धुँधला गये। मिस्टर प्रसाद निराशा के गहरे गर्त में पड़कर मिस्टर एलियांग, जनरल स्टोर और फिर अपने बारे में सर्वनाश की भविष्यवाणियाँ करने लगे।
“सुनो, मुझे पता है तुम्हें क्या करना चाहिए।” एक दिन उनकी पत्नी बोलीं, “वह उत्तेजित लग रही थीं” - “क्या आइडिया है।”
“तुम्हें मिस दून टाउन प्रतियोगिता में किसी को प्रविष्ट कराना चाहिए। कल्पना करो कि तुम्हें कोई वाकई अच्छी लड़की मिल जाती है - मिस ओरिएण्टल एम्पोरियम - तुम्हें पता ही है कि उन्हें बताना पड़ता है कि उन्हें कौन स्पांसर कर रहा है... अगर वह जीत गयी तो एलियांग घुटनों के बल चले आएँगे तुम्हारे पास। उसके बाद उसकी दुम नहीं हिल सकेगी।”
“पर उसके लिए पैसे की जरूरत होगी, तारा... और फिर कौन बनना चाहेगा मिस ओरिएण्टल एम्पोरियम?”
“अरे, याद करो मैंने तुमसे क्या कहा था - बड़े लोगों की तरह सोचा करो।”
और मिस्टर प्रसाद ने सचमुच बड़े लोगों की तरह सोच डाला, और उसी सोच में सफलता और प्रतिशोध का एक स्वप्न उनकी आँखों के सामने तैर गया। आशा की लपटें एक बार फिर प्रज्वलित हो उठीं।
यदि शोर-शराबे को ही पैमाना मान लिया जाए तो यह बात असन्दिग्ध रूप से कही जा सकती है कि कार्नीवाल क्वीन प्रतियोगिता दून टाउन की सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण घटना है। समय आने पर विजेता को नेशनल क्वीन प्रतियोगिता में शामिल किया गया, जहाँ परम्परा के अनुसार उसे प्रतियोगियों के उस समूह में गिन लिया गया, जिनके जीतने की कतई उम्मीद नहीं हुआ करती। हालाँकि उनकी उपस्थिति का एक लाभ जरूर होता है : इससे अन्य प्रतियोगियों को हृदय की विशालता का प्रदर्शन करने का अवसर जरूर मिल जाता है। एक साल, राष्ट्रीय विजेता, मिस एलाइड इलेक्ट्रिकल ट्रेडर्ज लिमिटेड, ने बाद में कहा था-मेरा खयाल था मिस दून टाउन एफ्रोडाइट-सी हसीन लग रही थी। और मिस्टर प्रसाद ने टिप्पणी की थी-यह उसका औरतपन बोल रहा है। इस तरह की शिष्टता की कमी को समझा जा सकता है। प्रतियोगिता जैसे अपनी-अपनी डफली बजाने का अवसर बन चुका था जिसका सामना हर साल दून टाउन के निवासी करते थे। मिस्टर प्रसाद नगर के चेम्बर ऑफ़ कामर्स के प्रमुख सदस्य होने के कारण इसमें बेहद रुचि लेते थे - देखते जाओ-मिस दून टाउन के प्रभावहीन प्रदर्शन के बाद वह कहते-एक दिन हम उन्हें चकित करके रहेंगे तब देखेंगे कि कौन हँसता है!
और अब, जब-जब वह इसके बारे में सोचते उन्हें यही लगता कि दून टाउन को केवल वह खुद ही मुक्ति दिला सकते हैं और मिस्टर प्रसाद के उत्साह की उड़ानें इस कदर ऊँची उठने लगी थीं कि उनकी पत्नी तक चिन्तित हो उठी थी।
“एलियांग को भूल गये? मालूम है वह भी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहा है,” उन्होंने उन्हें याद दिलाया।
“एलियांग? कौन एलियांग?”
मिस्टर प्रसाद में वही आत्मविश्वास भरा हुआ था। जो केवल दैवी सुरक्षा और ध्येय से पैदा होता है, और बाद में लगने लगा जैसे उनकी पत्नी को भी वही छूत लग गयी है।
रीटा के रूप में मिस्टर प्रसाद को जैसे अपना प्रतियोगी मिल गया। रीटा उनकी दुकान में काम कर चुकी थी। वह पोर्ट-स्पेन के किसी बड़े डिपार्टमेण्ट स्टोर में काम करती थी। रीटा देखने में सुन्दर लगती थी और शहर में रहने के कारण उसमें एक ‘आकर्षण’ और ‘आत्मविश्वास’ भर गया लगता था।
“लेकिन, मिस्टर प्रसाद, आप इस ब्यूटी क्वीन के धन्धे के बारे में जानते क्या हैं?”
उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि वह कुछ नहीं जानते थे।
“देखिए, उसे शुरू करना हो तो उसके लिए व्यावसायिक नजर से सोचना जरूरी है।”
“अच्छा।”
“बात सिर्फ मंच पर से गुजर जाने भर की ही नहीं है। इसके लिए पैसे की जरूरत होती है... और जानकारी की।”
जब से रीटा एम्पोरियम छोड़कर गयी थी, उसके बाद से उसके व्याकरण और शब्द-ज्ञान में हुए परिवर्तन को देखकर मिस्टर प्रसाद बौखला गये।
“चिन्ता मत करो। खर्च में कोई कमी नहीं रहेगी।”
“मैं एक हेयर ड्रेसर को जानती हूँ जो इन मामलों में एक्सपर्ट है। अच्छा हो हम उससे जाकर मिल लें।”
“क्यों नहीं। क्यों नहीं। जैसा तुम कहो।”
मिस्टर प्रसाद जब रीटा के पास से चले, तब तक उनका आत्मविश्वास और दैवी सुरक्षा का भाव छिन्न-भिन्न हो चुका था।
हेयर ड्रेसर आकर्षक थी। उसकी ट्रेनिंग न्यूयॉर्क में हुई थी।
“तुम किस रूप में परेड करती हो। इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है,” उसने बताया - “अपने तजुर्बे से मैं कह सकती हूँ कि वह या तो यूनानी होना चाहिए या रोमन। उसने अपना काम नाखूनों से शुरू किया - या शायद मिस्री...”
मिस्टर प्रसाद सिर हिलाते रहे - “तुम्हें क्या पसन्द है रीटा? यूनानी, रोमन या मिस्री?”
रीटा सोचने लगी - “मिस्री कैसा रहेगा? हरेक प्रतियोगी कुछ-न-कुछ यूनानी या रोमन ही करेगा।”
“मिसाल के तौर पर तुम आइसिस बन सकती हो।” हेयर ड्रेसर ने कहा।
“वह क्या है? कोई देवता वगैरह?” मिस्टर प्रसाद ने पूछा।
रीटा बौखलाकर खिड़की से बाहर देखने लगी।
“वह एक देवी है, मिस्टर प्रसाद। एक प्राचीन मिस्री उत्पादक देवी है।”
“तुम्हें पसन्द है आइसिस रीटा?”
“मुझे तो ठीक लगती है। मौलिक है!”
“अब सिर्फ एक और चीज रह जाती है,” हेयर ड्रेसर ने उसके नाखूनों को प्रकाश की ओर किया और आँखें उनपर जमा दीं - “तुम्हारे कुछ शौक हैं?”
“हैं तो... थोड़ा-थोड़ा पढ़ने का।”
“हम उसका उपयोग करेंगे... और कुछ?”
“सच बताऊँ तो...”
“मॉडलिंग?”
“अब...”
“बहरहाल, उसको भी इस्तेमाल किया जाएगा। अब कोई अजीब, या तुम्हारे ही लफ्जों में, मौलिक चीज होनी चाहिए।”
“इन दोनों शौकों में क्या बुराई है?”
खिड़की से बाहर ताकने लगी।
“तीन शौक होना बहुत जरूरी है, मिस्टर प्रसाद।”
“बागवानी की कोशिश करके देखो,” हेयर ड्रेसर ने सुझाया।
“लेकिन...”
“नहीं, बागवानी ठीक रहेगी। बोहीमियन लगती है! इससे मदद मिलेगी।”
“बोहीमियन क्या होता है?”
“मिस्टर प्रसाद...” रीटा फिर खिड़की से बाहर ताकने लगी।
“वह आइसिस बनेगी,” मिस्टर प्रसाद ने अपनी पत्नी को सूचना दी।
“आइसिस कौन है?”
मिस्टर प्रसाद उल्लुओं की तरह ताकने लगे।
“यह एक मिस्री उपज... उपजाऊ देवी है, और उसके तीन शौक भी होंगे - पढ़ना, मॉडलिंग करना और बागवानी करना।”
“बागवानी?”
“तुम्हें कुछ-न-कुछ बोहीमियान भी होना चाहिए, पता है?”
“ओह!”
मिस्टर एलियांग की योजना गुप्त ही रही। जहाँ मिस्टर प्रसाद ने ओरिएण्टल एम्पोरियम की दीवारें रीटा और पिरामिडों के चित्रों से भर दीं और दिन-रात प्रतियोगिता की बातें करना उन्होंने अपना पेशा ही बना लिया, वहाँ जनरल स्टोर ने अपने व्यवसाय को इतनी गम्भीरता से चालू रखा कि आखिर मिस्टर प्रसाद के स्वर में घमण्ड और चिन्ता, दोनों का पुट आ गया।
“मेरे ख्याल में तुम्हें इसका इतना ज्यादा विज्ञापन नहीं करना चाहिए,” उनकी पत्नी बोली, “इस तरह की बातें दुर्भाग्य ही लेकर आती हैं।”
“दुर्भाग्य! उसको भी वक्त आने पर देख लेंगे। लेकिन... मैं उस आदमी को अच्छी तरह जानता हूँ और वह कहीं-न-कहीं कुछ शरारत जरूर करेगा। तुम्हारा क्या खयाल है वह निर्णायकों को रिश्वत नहीं दे सकता?”
“नहीं भई, वैसा होता तो कोई-न-कोई बात सुनने में जरूर आती।”
“ठीक है,” और फिर उनके चेहरे पर शंकाओं की परछाइयाँ एक-दूसरे के पीछे दौड़ने लगीं।
बहरहाल, मिस्टर एलियांग के मन में केवल नागरिक गुण ही छाये प्रतीत होते थे। उन्होंने एक पैम्फ्लेट जारी किया जिसमें कार्नीवाल के दिनों में ‘सामान्य सूझबूझ और शिष्टता’ के लिए अपील की गयी थी। साथ ही उन्होंने अपना वह विश्वास भी दोहराया जिसे वह साथी नागरिकों की ‘मूल सहिष्णुता और दृढ़ता के प्रति अटूट विश्वास’ कहा करते थे, लेकिन प्रतियोगिता में अपनी ओर से भेजे गये प्रतियोगी के बारे में एक शब्द भी नहीं। - वह मेयर बनना चाहता है, मिस्टर प्रसाद ने कहा।
प्रतियोगिता एक सिनेमा में हुई। जब प्रसाद लोग आये तो एक लड़की उन्हें उनकी सीटों तक ले गयी, जिसने ट्रॉपिकल लोगों जैसी पोशाक पहन रखी थी। एलियांग लोग देरी से आये। मिस्टर एलियांग मिस्टर प्रसाद की ओर देखकर हलके से मुसकराये और फिर रास्ता बनाते हुए आगे चलकर बैठ गये।
“तो मिस्टर प्रसाद, वह रात आ गयी जिसका हम सबको इन्तजार था।”
“हाँ, मेरा ख्याल है आप सब हमें कोई सरप्राइज देने वाले हैं!”
मिस्टर एलियांग हँस दिये, “नहीं-नहीं, मिस्टर प्रसाद, वैसा कुछ नहीं है। मेरे लिए तो थोड़ा-सा मनोरंजन ही है। मेरा खयाल है आप भी इसे इसी दृष्टि से लेते होंगे।” मिस्टर एलियांग ने उनके कन्धे को स्पर्श किया।
“मेरी शुभकामनाएँ, मिस्टर प्रसाद, ओह! मिसेज प्रसाद, मेरे खयाल में आप... और मिस्टर एलियांग ने अपनी बाँहें खुशी में फैला दीं, तथा शुभकामनाओं के बादल में गुम हो गये।
“कुतिया का बच्चा।” मिस्टर प्रसाद बड़बड़ाये।
कुल दस प्रतियोगी थे और उन्हें तीन बार परेड करनी थी। स्नान परिधान में, शाम के लिबास में और प्रतियोगी की अपनी पसन्द की पोशाक में। अन्तिम पोशाक बहुत महत्त्वपूर्ण थी। समारोह के संचालक का शहरीपन कागजी था। उसके लतीफे, जो पोर्ट-ऑफ-स्पेन के नाइट-क्लबों में बेहद सफल थे, यहाँ प्रभावहीन लग रहे थे। और दर्शकों ने तो उसे उखाड़ने तक की कोशिश की थी। दून टाउन के लोग दयालु नहीं थे।
“और अब इस शाम का पहला कार्यक्रम शुरू होता है - स्नान की पोशाक में परेड!” समारोह के संचालक ने अपनी एड़ियों पर घूमते-झूमते घोषणा की।
पहली छह लड़कियाँ मंच पर से गुजर गयीं। वे सब एक-जैसी दिखती थीं और सभी को समान रूप से वाहवाही मिली।
“प्रतियोगी नम्बर सात, मिस मा फोंग रेस्तराँ। कुछ नहीं हुआ।”
उसने जल्दी से अपने कार्यक्रम की ओर देखा। उसकी व्यावसायिकता के सामने संकट उपस्थित था, मिस मा फोंग रेस्तराँ! हँसी और घृणा के भाव उस पर हावी होने के लिए परस्पर संघर्षशील थे। उसने दर्शकों से मुखातिब होते हुए कहा, “मेरा खयाल है उसने चीनी छुट्टी ले ली है।” लोग पत्थर के बुत बने उसको घूरते रहे, उसने मंच के पीछे के परदे को अपनी ओर खींचा-मिस ला फोंग रेस्तराँ कहाँ गयी?
आखिर वह आयी - उसने एक बिकिनी पहन रखी थी, जिस पर ड्रैगन बने हुए थे, दर्शकों की साँसें थम-सी गयीं। यहाँ तक कि संचालक भी अपने आश्चर्य को नियन्त्रित नहीं रख पाया। रीटा उसके बाद आयी और वह उसके मुकाबले एकदम पीली और अनाकर्षक सिद्ध हुई। मिस जनरल स्टोर भी भले आकर्षक रही, लेकिन उसका लिबास पारम्परिक ही था।
सन्ध्या की पोशाक की परेड में भी यही हुआ और मिस मा फोंग रेस्तराँ ही रोचकता का केन्द्र बनी रही। बाकी लड़कियों ने तो अठारहवीं सदी के बॉलगाउन पहनकर ही तसल्ली कर ली थी लेकिन वह चटख़ लाल रंग की शरीर-चिपक पोशाक पहनकर आयी और मंच को आग लगाकर चली गयी - सूजी वोंग की दुनिया! संचालक ने बताया - हे भगवान! क्या दुनिया थी।
मिस्टर प्रसाद का अधैर्य चिड़चिड़ेपन में ढल गया। अब तक रीटा ने कोई असर छोड़ा ही नहीं था - ये चीनी साले बहुत धूर्त होते हैं, मैं जानता हूँ।
आखिरी राउण्ड की झलकियाँ धीरे-धीरे प्रकट होनी शुरू हुईं - यूनानी-रोमन दुनिया की देवियों का एक जुलूस! मिस्टर प्रसाद पसारकर बैठ गये।
“इन लोगों में कल्पनाशीलता है ही नहीं। उनके लिए या तो यूनानी होना चाहिए या रोमन - जैसे मिस्र का नाम ही न सुना हो कभी, लेकिन...”, वह अपनी पत्नी की ओर मुड़े - “आज रात मालूम पड़ेगा...”
“तुम बहुत ज्यादा उत्तेजित हो रहे हो। अपने आपको काबू में रखो।”
मिस मा फोंग रेस्तराँ ने निराश किया। वह चीनी पैगोडा बनकर आयी थी और बिलकुल नहीं जँची। बहरहाल, पैगोडा खतरनाक रूप से झुके जा रहा था।
“एक चीनी पैगोडा!” संचालक ने घोषणा की-पीसा का।
दर्शक तब भी शान्त रहे। मिस मा फोंग संचालक को घूरती रही और वह अपनी व्यावसायिकता की शरण लिये अपनी एड़ियों पर झूलता रहा।
“मिस ओरिएण्टल एम्पोरियम, आइसिस के रूप में।”
दिलचस्पी की एक लहर-सी उठी। रीटा सँभल-सँभलकर चलती मंच पर आयी। उसकी पोशाक उसे उन्मुक्त होकर चलने नहीं दे रही थी। उसके सिर पर भी बोझ था - शायद बैल के सींग वहाँ लगाये गये थे। उसके एक हाथ में एक राजदण्ड था और दूसरे में ‘पैपीरस’।
“आइसिस?”
“पर यह नाम पहले तो कभी नहीं सुना!” इस तरह की फुसफुसाहटें मिस्टर प्रसाद के कानों तक पहुँचीं। उन्होंने पत्नी को कोहनी मारी और मुसकरा दिये।
“मिस जनरल स्टोर,” फलों-फूलों के रूप में मिस्टर प्रसाद तन गये। दर्शकों ने इसके महत्त्व को पहले पचाया, फिर प्रशंसात्मक तालियाँ गड़गड़ा दीं। मिस जनरल स्टोर ने घास की स्कर्ट पहन रखी थी और वह तरह-तरह के फूलों के पीछे छुप-सी गयी थी, उसकी छाती और पीठ पर केले के पत्ते चिपके हुए थे, सिर पर फूलों की टोकरी थी और उसमें से फूलोंवाली बेलें नीचे की ओर लहरा रही थीं। दर्शक कुर्सियों से उठ खड़े हुए और वाहवाह करने लगे। किसी एक ने अपना तिनकों का हैट ही मंच की ओर उड़ा दिया।
“मौलिक।”
“फल और फूल, यह है यहाँ की चीज।”
“देखो-देखो, आम और सन्तरा असली हैं।”
उस शोर में संचालक की आवाज सबसे ऊँची थी-”लेडीज एण्ड जेण्टलमेन, आपको यहाँ होना चाहिए था!” वह भूल गया था कि वह रेडियो पर नहीं बोल रहा था। इस बार दर्शक हँस पड़े। मिस जनरल स्टोर ने एक गुलाब दर्शकों की ओर उछाल दिया। एक आदमी चिल्लाया-स्ट्रिप! वह शरमा गयी।
प्रसाद लोग नतीजे की घोषणा से पहले ही सिनेमा से उठकर चले गये। रास्ते भर वे चुप रहे। फिर घर पहुँचकर सो गये। दूसरी सुबह उन्होंने अखबार में पढ़ा कि रीटा तीसरे स्थान पर रही। उसने एक इण्टरव्यू में संकेत दिया था कि किसी बेहतर स्पांसर के रहते वह बेहतर स्थान पा सकती थी।
जब मिस दून टाउन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में द्वितीय रही तो मिस्टर एलियांग के साथी नागरिकों ने उन्हें मेयर चुनकर आभार-प्रदर्शन किया। ख्याति के बढ़ते ही उनकी सम्पत्ति भी बढ़ने लगी। जनरल स्टोर की कई शाखाएँ स्थापित हो गयीं-मालिक ए. एलियांग! और हर शाखा पर ये शब्द चमकते रहते-‘नगर का सर्वश्रेष्ठ स्टोर!’ मिस्टर प्रसाद, जो अब दून टाउन की अकेली पुरानी दुकान के मालिक थे, जनरल स्टोर की ओर अँगुली उठाते हुए कहते-ख्याति के लिए हमारा एकमात्र दावा। आपको यकीन नहीं आएगा, लेकिन एक वक्त था जब मैं और एलियांग-माफ कीजिएगा, मेरा मतलब है मेयर - बड़े अच्छे मित्र थे। हम एक ही व्यवसाय में प्रतिद्वन्द्वी थे। जरा कल्पना कीजिए।
इतना कह लेने के बाद वह हँसने लगते, पर उस हँसी में कोई दुख या पश्चात्ताप नहीं था। मिस्टर प्रसाद सन्तुष्ट थे। आखिरकार, ओरिएण्टल एम्पोरियम दून टाउन की एक नेक ‘पुरानी’ दुकान थी!