स्काई इज पिंक: धरती हरी है / जयप्रकाश चौकसे

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स्काई इज पिंक: धरती हरी है
प्रकाशन तिथि : 12 सितम्बर 2019


फिल्मकार सोनाली बोस की प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर और वसीम ज़ायरा अभिनीत फिल्म 'द स्काई इज पिंक' अगले माह प्रदर्शित होने जा रही है। यथार्थ प्रेरित फिल्म में जायरा अभिनीत पात्र एक लाइलाज बीमारी के साथ जन्मा है। उसके माता-पिता उसकी सेवा करते हैं। 18 वर्ष की उम्र में उसका देहांत हो जाता है परंतु मृत्यु पूर्व ही वह अपने उत्साहवर्धक भाषणों के लिए जगह-जगह आमंत्रित की जाती है। उसके भाषण सुनने वालों की आंखों में नमी लाते हैं और कभी-कभी लबों पर मुस्कराहट भी। प्रियंका चोपड़ा और फरहान अख्तर ईश्वरीय कमतरी की शिकार लड़की के माता-पिता की भूमिका अभिनीत कर रहे हैं। उस साहसी लड़की के माता-पिता ने फिल्मकार सोनाली बोस से निवेदन किया था कि वे उनकी पुत्री के जीवन संघर्ष से प्रेरित फिल्म बनाएं।

सोनाली बोस ने उनके जीवन संघर्ष के अनुभव से प्रेरित होकर 'स्काई इज पिंक' लिखी और प्रियंका चोपड़ा को पटकथा इतनी रोचक लगी कि उसने सलमान खान की 'भारत' में अपने अनुबंध को निरस्त करके इस फिल्म में अभिनय किया। यह काम गैर-पेशेवर इसलिए है कि अनुबंध करके उससे मुकर जाना अनुचित है परंतु कभी-कभी कलाकार किसी पटकथा से इतना प्रभावित हो जाता है कि उसे लगता है कि अगर यह भूमिका अभिनीत नहीं की तो जन्म लेना ही व्यर्थ हो जाएगा। प्रियंका चोपड़ा ने इस फिल्म में पूंजी निवेश भी किया है। राज कपूर ने मात्र एक रुपया लेकर ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'अनाड़ी' की शूटिंग पूरी कर दी थी। 'अनाड़ी' की पटकथा से प्रेरित शंकर-जयकिशन और शैलेन्द्र-हसरत ने भी सार्थक माधुर्य रचा।

ज्ञातव्य है कि प्रियंका चोपड़ा ने अनुराग बसु की 'बर्फी' में ईश्वरीय कमतरी से पीड़ित युवती की भूमिका अभिनीत की थी। इस फिल्म के लिए उसने स्वयं को इतना बदला था कि कुछ देर तक फिल्म चलने के बाद ही दर्शक को एहसास होता है कि वह प्रियंका चोपड़ा को देख रहा है। प्रियंका चोपड़ा, रणवीर कपूर और सौरभ शुक्ला ने 'बर्फी' में अविस्मरणीय अभिनय किया है। दो अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं में विश्वास करने वाले दोस्त-दुश्मन या कहें दुश्मन-दोस्त साथ बैठे थे। एक ने आकाश की ओर देखते हुए कहा कि देखो आसमान सिंदूरी हो गया है। दूसरे ने तपाक से कहा, देखो धरती हरी हो गई है। वाल्ट व्हिटमैन की पंक्तियां याद आती हैं, 'हरी घास ईश्वर का धरती पर गिरा रूमाल है, जिसके किसी कोने पर रूमाल के मालिक का नाम लिखा है, जिसे हम पढ़ नहीं पाते।' दरअसल, रंग प्रकृति का हिस्सा है और हमने उन्हें नाम, चरित्र व संप्रदायों से जोड़ा है।

हॉलीवुड में 'चिल्ड्रन ऑफ लेसर गॉड' विषय पर फिल्में सराही जाती हैं और उन्हें ऑस्कर प्राप्त होने के अवसर सामान्य पात्रों वाली फिल्मों से अधिक होते हैं। संभव है कि अमेरिका का अवाम किसी अपराध बोध से ग्रस्त हो। हो सकता है कि उनमें ये सामूहिक अपराध बोध पहला आणविक विस्फोट करने से जन्मा हो। वह विस्फोट भी अनावश्यक था, क्योंकि तानाशाहों की हार पहले ही तय हो चुकी थी। हॉलीवुड में 1967 से विज्ञान फंतासी फिल्मों के निर्माण को खूब प्रोत्साहित किया गया। वे अपनी विज्ञान फंतासी फिल्मों में मानवीय करुणा को भी प्रस्तुत करते हैं। विज्ञान फंतासी की ओर रुझान का कारण सिनेमा टेक्नोलॉजी का विकास भी है। विकसित उपकरणों के भरपूर प्रयोग की खातिर भी यह रुझान बढ़ा है।

विगत कुछ वर्षों में प्रियंका चोपड़ा ने अमेरिका में भारत से अधिक समय बिताया है। संभव है कि यह भी उनके 'स्काई इज पिंक' करने का कारण रहा हो। मनुष्य का नज़रिया उस देश के भूगोल, इतिहास और संस्कृति से प्रभावित होता है, जहां वह अधिक समय गुजारता है। दरअसल, मनुष्य की धुरी पर ही घूमती है धरती, इतिहास और भूगोल।

ज्ञातव्य है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गुजारिश' में ऋतिक रोशन ने लाइलाज बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की भूमिका निभाई थी। फिल्म में वह अपनी मृत्यु के समय एक उत्सव आयोजित करता है, जिसमें उसके निकट रहे लोग आमंत्रित हैं। एचएस रवैल की फिल्म 'संघर्ष' में श्वसुर शैय्या पर लेटे हैं और उनकी बहू उन्हें कहती है, 'ससुरजी प्राण नहीं निकल रहे हैं? कैसे निकलेंगे? अपने गुनाहों को याद कीजिए, आपने तो अपने अहंकार के लिए अपनों का ही कत्ल कराया है।' बहरहाल, सोनाली बोस की फिल्म में प्रियंका चोपड़ा और फरहान अख्तर के लिए यह चुनौती है कि अपनी पुत्री को वे क्षण-प्रतिक्षण मृत्यु की ओर अग्रसर होते देख रहे हैं। मृत्यु के निकट पहुंचा हर व्यक्ति अपनी मृत्यु की छाया को निकट के मित्रों और रिश्तेदारों के चेहरों पर पड़ता देखता है। फिल्मी मुहावरे में इस दशा का वर्णन यूं किया जा सकता है कि वह मृत्यु का रिएक्शन देख रहा है। होशोहवास में मरना कठिन होता होगा। नींद में ही गुजर जाना अपेक्षाकृत कम कष्टकारी है। सपने में मृत्यु प्रेमिका-सी प्रतीत होती होगी।