स्कॉटलैंड जाने के लिए इंग्लिश चैनल पर रात भर / संतोष श्रीवास्तव
क्रूज़ कानाम था 'क्वीन ऑफ स्कैंडिनेविया'। क्रूज़ से लगे लाउंज में कुर्सियोंपर तमाम लोग बैठे थे। मैं भी अपने ग्रुपके साथ बैठ ही रही थी कि अजय एक बड़े से प्लास्टिक बैग में से हमें पैक्ड डिनर देने लगे। साथके सभी लोग चिढ़ गये–"हम तो ये पैक्ड डिनर नहीं खायेंगे। हम क्रूज़ के डाइनिंग हॉल में गर्म डिनर लेंगे। हम यहाँ मौज मज़ा करने आये हैं। ये सब नहीं चलेगा।"
अजय का चेहरा फक्क् पड़ गया। उसने तुरन्त मुंबई स्थित कंपनी के डायरेक्टर को फ़ोन लगाया। तब तक हमारा कोच भी क्रूज़ के कार्गो में सामान सहित प्रवेश कर चुका था। मैंने अपने बैग में सुबह पहनने के लिए एक ड्रेस, टूथपेस्ट, ब्रश आदि रख लिया था। दस मिनट बाद अजय ने आकर बताया कि "आपकी रिक्वेस्ट मंजूर हो गई है।" सभी खुश हो गये।
मुझे क्रूज़ की छठवीं मंज़िल पर 6104 नं। का केबिन मिला था। जो कार्ड की से खुलता था। हम सभी लिफ्ट से छठवीं मंज़िल पर आये तो पता चला हमारे ग्रुप के सभी लोगों को इसी एक गैलरी में आमने सामने बने केबिन एलॉट हुए हैं। केबिन छोटा-सा था। एक बेड, एक सोफा कम बेड, छोटा-सा बाथ रूम, खिड़कीकहीं नहीं थी। क्रूज़ पंद्रह सौ यात्रियों की क्षमता वाला रोमांच, मनोरंजनऔर तमाम सुविधाओं से पूर्ण था। सारी रात क्रूज़ इंग्लिश चैनल पर चलेगा तब हम सुबह नौ बजे स्कॉटलैंड के न्यू कासल शहर में पहुँचेंगे। भारतीय समय स्कॉटलैंड के समय से साढ़े चार घंटे आगे है। हमें अपने यूरो आदि यहीं ख़र्च कर देने हैं क्योंकि स्कॉटलैंड से लंदन तक करेंसी पौंड है। मेरे पास पैंतीस यूरो सिक्के के रूप में मौजूद थे। तरोताज़ा होने के लिए मैं बाथरूम में गई। ज्यों ही फ्लश चलाया तेज़ भड़भड़ाहट के रूप में तीव्र आवाज़ ने मुझे भयभीत कर दिया। मुझे लगा इस टाइटेनिक जैसे विशाल जहाज़ का अंत भी टाइटेनिक जैसा होने वाला है। मैं घबराकर केबिन के बाहर अंधाधुंध भागी, बिना इस बात की परवाह किए कि केबिन का की-कार्ड अंदर ही रह गया है। पर न जहाज़ डूबा न केबिन का दरवाज़ा बंद हुआ। अपनीमूर्खता पर मुझे हँसी आई। तसल्लीके लिए दोबारा फ्लश चलाया। इस बार की गर्जना ने भयभीत नहीं किया।
केबिन से निकलकर हम ऊपर डेक पर घूमने गये। डेक पर तेज़ हवा थी। नीचे उतरने पर गर्मी महसूस होने लगी। रेलिंग से टिको तो दूर-दूर तक खूबसूरत समुद्री इलाक़ा दिखाई देता है। ठीक पाँच बजे क्रूज़ का भोंपू बजा और सुहाने ऑर्केस्ट्रा की तरंगों के साथ ही क्रूज़ रवाना हो गया। सबने'वृन्दावन बिहारीलाल की जय' कहा। मैं रेलिंग से टिकी देख रही थी हॉलैंड के धीरे-धीरे ओझल होते मकान, सड़कें, बगीचे। जब कुछ भी छूटता है, मन उदास हो जाता है। यह तो तय है कि अब दुबारा हॉलैंड नहीं आऊँगी। मैंने अपनी नज़रें सागर पर तैरते छोटे-छोटे जहाज, पालदार नौकाओं और स्पीड बोट की ओर घुमा लीं। एक हरे-भरे टापू पर पनडुब्बी चिड़ियाँ झुंड में बैठी थी जैसे बड़े-बड़े सफेद कमल खिले हैं। धीरे-धीरे सब कुछ आँखों से ओझल हो गया और फिर रह गया असीमित इंग्लिश चैनल और उस पर चमकती सूरज की सतरंगी किरणें जो अद्भुत कोलाज प्रस्तुत कर रही थीं। हवा इतनी तेज थी कि दुपट्टा और बाल सम्हल नहीं रहे थे। मैं सोच रही थी कि पूरा जहाज़ घूम लूँ, फिर इत्मीनान से कहीं बैठूँ। जहाज़ के चलते ही ठंडी हवाओं ने कंपा दिया था इसलिए अंदर घूमना ही ठीक था। जहाज़ में ग्यारह डेक (मंजिलें) हैं। दसवें डेक पर कॉन्फ्रेंस रूम है। नौवें डेक पर भी कॉन्फ्रेंस रूम है। आठवें डेक पर सेवन सीज़ रेस्टॉरेंट है, सिनेमा ऑडिटोरियम और डिस्को हॉल वगैरह है। सातवें डेक पर सेलर्स कॉर्नर और ब्लू रिबंड रेस्तरां है। -सी शॉप, परफ्यूम शॉप आदि भी है। इसी डेक के दूसरी ओर एडमिरल पब कोलंबस नाइट क्लब और कसीनो है। छठवें डेक पर केबिन बने हैं। पांचवें डेक पर भी केबिन हैं जो खिड़की वाले हैं और महँगे भी। डेक चार पर भी केबिन है, इन्फ़र्मेशन हॉल है औरकैफ़े भी है। टुबेको शॉप भी है। केबिन एक से तीन पर हम जा नहीं सकते थे। वहाँ पर्यटकों के लिए कुछ नहीं था। मुझे तो पूरा जहाज़ टाइटेनिक की याद दिला रहा था। बेहद शानदार। सीढ़ियों पर सुनहले मैटल की रेलिंग, चारों तरफ़ आईने, सीढ़ियों से लेकर लॉबी तक हर जगह हरा, नीलाकार्पेट बिछा था। सातवीं मंज़िल पर परफ्यूम शॉप जिसका नाम मालबारो था, वहाँ पर्यटकों की काफ़ी भीड़ थी। मुझे अपने सिक्के ख़त्म करने थे इसीलिए मैंने वहाँ से लिपिस्टिक और चॉकलेट खरीदीं और बाहर सोफ़े पर आकर बैठ गई। तभी दो लड़कियाँ नृत्य की पोशाक पहने लकी टिकिट्स लेकर आईं। तीन यूरो की टिकट थी जिसे स्क्रेच करने पर इनाम का पता चलता था। लगभग सभी ने उन दोनों के साथ फोटो खिंचवाई। मुझे चाय की तलब महसूस हो रही थी इसलिए चौथी मंज़िल पर बने कैफे की ओर आने के लिए मैं सीढ़ियाँ उतरने लगी।
क्रूज़ का ऐसा रोमांचक सफ़र मेरी यादों में अक्स हो चुका था। इतना रोमांचक कि एक पल को भी आराम करने का मन नहीं था। जबकि मेरे साथ के लोगों को चक्कर आ रहे थे। -सी सिकनेस की दवाइयाँ मुफ़्त उपलब्ध थीं।
डिनर ब्लू रिबंड रेस्टॉरेंट में था। भव्य, आलीशानडाइनिंग रूम, गुदगुदे नीले कार्पेट वाला जिस पर बहुत खूबसूरत तरीके से टेबिल, कुर्सियाँ सजी थीं। हर एक टेबिल के कोने पर एक सुनहरे हरे रंग के शेड वाला टेबिल लैंप था जिसकी जादुई रोशनी में शीशे के नाज़ुक से गुलदान में कत्थई गुलाब के फूल थे। लम्बी-लम्बी टेबिलों पर बहुत सारी वेराइटी वाला बुफे डिनर था। कई तरह की होम मेड सलाद, बहुत सारी सब्जियों की विभिन्न वेराइटीज रोस्टेड और बेक्ड दोनों प्रकार की। पीज़ा भी तरह-तरह के, पास्ता, आलूके पाँच आइटम तंदूरी रोटियाँ। नॉनवेज खाने वालों के लिए-सी फूड थे। उबाले हुए भुट्टे, तरबूज और आठ दस प्रकार की आइस्क्रीम। यानी हर पसंद के लोगों की चीज़ हाज़िर थी। मैंने पहली बार इतना स्वादिष्ट पास्ता चखा था। साथ में छिलके वाले बेक्ड आलू और सलाद और बेहद ज़ायकेदार बादाम की आइस्क्रीम खाई। खाने के दौरान ही हमारे साथी पर्यटक कपूर उठे और उन्होंने विडियो कैमरे से सबका इन्टरव्यू लिया। सभी मौज मज़े के मूड में थे। अजय ने हमें सुबह के नाश्ते के कूपन दिये और बताया कि वेकअप कॉल सुबह 7 बजे देंगे। एक घंटे में तैयार होकर नाश्ते के लिए यहीं आ जाना। मगर इधर सोना कौन चाहता था। डिनर के बाद कोई कसीनो में क़िस्मत आज़मा रहा था तो कोई फ़ेन्सी ड्रेस का प्रोग्राम देख रहा था। मैं भी फेन्सी ड्रेस के कार्यक्रम में जाकर बैठ गई। एक सोप ऑपेरा गायक का रोल करने वाले दर्शक ने शेम्पेन इनाम के रूप में पाई। फिर कैबरे हुआ। काले कपड़े पहने कैबरे करने वाली लड़कियों में वह दो लड़कियाँ भी थीं जो लकी टिकट बेच रही थीं। नाचते-नाचते पीछे नाच रहे लड़कों ने उन लड़कियों के स्कर्ट का घेर ऊपर उठा दिया। जोरों की हँसी से हॉल गूँज उठा। फिर हम ऊपर की मंज़िल पर डिस्को के लिए आये। तेज़ संगीत में सभी नाच रहे थे। अजय मुझे भी डांसिंग फ्लोर पर ले आये। जादुई मद्धम रोशनी, तेज़ ऑर्केस्ट्रा की धुन पर थिरकते जोड़ों के संग मेरे क़दम भी अपने आप थिरकने लगे। मुझे लगा पिछले जन्म की कोई नर्तकी हूँ जिसे इस जन्म में भी अपना पिछला जन्म हूबहू याद है या फिर किसी रहस्यमय फ़िल्मकी नर्तकी या... सोच को लगाम तब लगी जब अजय मुझे केबिन में जाकर सो जाने की सलाह देने मेरे नज़दीक आये–"मैडम... बस दो घंटे की रात बची है थोड़ा आराम कर लीजिए।"
दो जून की सुबह... समुद्री बयार ने मानो एहसास दिला दिया कि सफ़र बस दो घंटे का रह गया है। तैयार होकर मैं नाश्ते के लिए रेस्तरां में आई जहाँ पहले से ही हमारे दल के लोग पहुँच चुके थे। नाश्ते में भी ढेर सारी वेरायटी मौजूद थी। मैंने टमाटर सॉस में बेक्ड बींस, आलू और अंडे लिए। गर्म चाय से तरावट मिली। वहीँ बैठकर इमीग्रेशन फॉर्म भरा। थोड़ी देर में घोषणा हुई कि जहाज़ अब पहुँचने ही वाला है। हमें नीचे आकर कस्टम की औपचारिकताएंपूरीकरने में काफ़ी वक़्त लगा। न्यू कासल के बेहद ठंडे, बदली भरे मौसम में जहाज़ ने जब तट पर लंगर डाले उस वक़्त सुबह के साढ़े नौ बजे थे। चिड़ियाँ बसेरा छोड़ चुकी थीं।
स्कॉटलैंडपहुँचकर उसकी अजीबोगरीब भौगोलिक स्थिति से साबक़ा पड़ा। न्यू कासल इंग्लैंड में आता है और जहाँ हम जा रहे हैं यानी एडिनबर्ग वह स्कॉटलैंड की राजधानी है। इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में 700 साल तक युद्ध चलता रहा। हालाँकि अब स्कॉटलैंड भी इंग्लैंड का ही हिस्सा माना जाता है लेकिन अब भी स्कॉटलैंड इंग्लैंड को सम्मान नहीं देता या अपना देश नहीं मानता। स्कॉटलैंड की सदियों पुरानी परम्पराएँ यथावत चली आ रही हैं।
न्यू कासल से एडिनबर्ग तक का रास्ता पाइन के जंगलों से युक्त है। सरसों, गेहूँ के खेत और पालतू पशु गाय, घोड़े, भेड़ोंसे भरे चरागाह, ऊँची, नीची, बीचोंबीच लाल पट्टी वाली सड़क को एक भव्यता-सी प्रदान करते हैं। बैनिस झील के साफ़ जल में बादलों के टुकड़ों का अक्स बड़ा प्यारा लग रहा था। कोच इंग्लैंड और स्कॉटलैंड की सीमा पर रुक गई जो चार सौ साल पुरानीथी। वहाँ पत्थर पर नक़्शे का बोर्ड लगा था जिसमें कई महत्त्वपूर्ण स्थान दर्शाये गये थे। एक कॉफी हट भी था और एक स्कॉटिश व्यक्ति जो शहनाई बजा रहा था और बिल्कुल वैसे ही रंग और डिजाइन की पोशाक पहने था जैसी बैग पाइपर व्हिस्की की बोतल पर होती है। इस पोशाक को फिल्टस कहते हैं। जैसे बोतल का रैपर हूबहू जीवंत हो सामने। यूरोप पर्यटन में जिस बात ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वह है यहाँ के लोगों की ज़िन्दादिली। कहीं भी किसी भी समय इन्हें गाते, बजाते सुना देखा जा सकता है। उसके लिए उन्हें न मंच की ज़रुरत है न दर्शकों की।
हम जेडबर्ग में रुके जहाँ ऊनी कपड़ों, कम्बलों आदि की बहुत बड़ी दुकान है। इसेऊनमिलकेनामसे जाना जाता है। एडिनबर्ग की खूबसूरती में मैं ख़ुद को भूल चुकी थी। वैसे पूरे स्कॉटलैंड की ही आबादी 50 लाख है तो फिर एडिनबर्ग की कितनी होगी यह अंदाज़ा यहाँ सड़कों पर चलते इक्का-दुक्का लोगों से ही लगाया जा सकता है। यहाँ अधिकतर मकान पत्थर के हैं जिनमें सिलेटी और भूरे रंग का इस्तेमाल किया गया है। पत्थर जड़ी सूनी गलियाँ, सड़कें, चिमनियाँ और उन चिमनियों की खासियत ये कि हर घर, हर बंगले में वे मौजूद थीं। हम जिस इलाके से गुज़र रहे थे वह एडिन बरा पोर्ट कहलाता है। यह शहर का सबसे पुराना बसा इलाक़ा है। यहीं भारतीय रेस्तरां 'सुरुचि' है जहाँ हमें लंच लेना है। सुरुचि भारतीय सजावट वाला मद्धिम रोशनी का सचमुच सुरुचिपूर्ण रेस्तरां था। दीवारों पर मीरा और कृष्ण की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी थीं।
लंच के बाद इकहरे बदन की गंभीर-सी लोकल गाइड हमारे साथ थी। अधेड़ उम्र की उस महिला को सभी जगहों की ज़्यादा जानकारी नहीं थी। पूछे जाने पर वह मुश्किल से ही बता पा रही थी। एडिनबर्ग एक ऐतिहासिक शहर है। यहाँ सबसे ज़्यादा मशहूर है स्कॉटिश रानी का महल होलीरुडस। लेकिन उसे फिलहाल पर्यटकों के लिए बंद कर रखा है क्योंकि इंग्लैंड की रानी 76 वर्षीया एलिजाबेथ कल आकर इसी महल में रुकेंगी सो उनके स्वागत की तैयारियाँ चल रही हैं।
अब हम प्रिंसेज़ स्ट्रीट पर हैं जो 1717 में बनी थी। इसी दौरान एडिनबर्ग का न्यू टाउन एरिया बसाया गया था। कहा जाता है आज से दस हज़ार साल पहले स्कॉटलैंड में ग्लेशियर और गहरी-गहरी घाटियाँ थीं। अब तो रंग रूप ही बदल गया है यहाँ का... लेकिन ठंड अभी भी कड़ाके की पड़ती है। 24 अंश तापमान सबसे गरम तापमान माना जाता है। इतने तापमान में तो हमारे यहाँ 'कोल्ड वेव्ज़' चलने लगती है और अलाव सुलग उठते हैं। ठंडी हवाएँ यहाँ भी लगातार चल रही थी। मैं विंड शीटर और स्वेटर में भी ठंड महसूस कर रही थी। शहर का पूरा नज़ारा ही सामने था। जॉन लीस शॉपिंग मॉल की बत्तियाँ दिन में भी जगमगा रही थीं। और यह बड़ी-सी मूर्ति... ये स्कॉटलैंड केमहानलेखक थे वॉल्टर स्कॉट। मेरी आँखें पल भर मूर्ति पर ठिठक गईं। लेखकों को विदेशों में बहुत अधिक रिस्पांस दिया जाता है। पार्लियामेंटहाउसऔर बॉयज़स्कूल के बाजू में भी एक मूर्ति है। मशहूर कवि बर्नस की। यहीं उनका घर भी है। सात सौ वर्ष पुराना रानी मैरी क्वीन ऑफ स्कॉट्स का फ्रेंच स्टाइल में बना विशाल महल से तब की समृद्धि का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 1688 में किंग जेम्स सप्तम के द्वारा बनवाया गया कैनन गेट जो होलीरुड्स महल का प्रतीक है। म्यूज़ियम, जेल, पत्थर के यकसां मकान, पतली, ऊँची, नीची पथरीली सड़क लेकिन पत्थर चिकने थे और सड़कों पर खूबसूरती से जड़े थे। इमारतें वही गहरे सिलेटी पत्थरों से जड़ी हुई। स्टीम ट्रेन्स, सामने ऊँचाई की ओर जाती रॉयल माइल सड़क और नीचे उतराई में रॉयल पैलेस, वही है एडिनबरो कासल। कासल को क़िला या दुर्ग भी कह सकते हैं। इसी कासल में क्वीन मैरी ने जेम्स सिक्स्थ को जन्म दिया था। युद्ध में इसकी सुरक्षा के लिए चारों ओर दीवार बनाई गई थी जो अब घास से घिरी है। इतिहास जैसे झरोखों से झाँक रहा है। हमारी कोच बाईं ओर मुड़ी। यहाँ कुछ नई बनी इमारतें हैं। हॉस्टल, होटल, जिऑलॉजी पॉइंट ऑफ व्यू से बनाया गया डायनामिक अर्थरूफ़ हाउस और थोड़ा आगे एक डेड वाल्केनो। यह ज्वालामुखी जब फटा तो इसका लावा तीन सौ मीटर तक गया था और कुदरत का करिश्मा कि वह वहीँ का वहीँ रुका खड़ा है। शिराओं में बहते रक्त को जमा देने वाली भीषण ठंड में वह लावा भी अपनी उठान से नीचे आया ही नहीं वहीँ जम गया। आगे पारदर्शी नीले जल से छलकती झील थी। वहीँ एक पार्क भी जो किसी समय सिर्फ़ राजा महाराजाओं के लिए ही बनाया गया था। पार्क की सीध में स्कॉट्स पाइन और जंगली पीले फूलों का लम्बा सिलसिला है। यह जगह जॉगिंग प्लेस के लिए मशहूर है। वॉकिंग और जॉगिंग। बायीं ओर कोस्टल एरिया है। मछली पकड़ने के शौकीनों के लिए सुन्दर समुद्री तट हैं। कोयले की खदानें भी हैं। झील पर कुछ पनडुब्बी चिड़ियाँ तैर रही थीं। दक्षिणीएडिनबर्ग का इलाक़ा घाटियों में बसा है जहाँ स्की स्लोप के रास्ते पहाड़ों पर जाते हैं। एडिनबर्ग क़िला और उसी रास्ते पर जॉन नॉक्स म्यूज़ियम है जो 1517 में जॉन नॉक्स का घर था। 1583 में बनी यूनिवर्सिटी इतनी सदियों पहले की शिक्षा का जीता जागता सबूत है। ये स्कॉटलैंड की चौथी यूनिवर्सिटी है। आगे रॉयल म्यूज़ियम और बबीज़ पार्क है। पार्क में एक काले कुत्ते की मूर्ति बनी है। यह कुत्ता 350 साल पहले जॉग ग्रे नाम के पुलिस मैन ने पाला था। जॉग ग्रे उसे जेम्स नाम से पुकारता था। यह कुत्ता बेहद स्वामीभक्त था। जब जॉग ग्रे मरा तो जेम्स उसकी समाधि पर तब तक बैठा रहा जब तक वह ख़ुद मर नहीं गया। यह मूर्ति उसके प्रेम का प्रतीक है। इस पर फ़िल्म भी बन चुकी है। मैं सिहर उठी हूँ। अवश्य वह कुत्ता कोई शापग्रस्त महान व्यक्ति होगा जिसने अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण किया।
नीचेउतरो तो बड़ी घाटी है, फूलों से भरी जहाँ कई पार्क भी हैं। एक सौ साल पुरानी फूलों से बनी घड़ी है। कुकू क्लॉक जैसी। हम जॉर्ज स्ट्रीट के बहुत महँगे बाज़ार में शॉपिंग के लिए इसलिए आये क्योंकि अजय ने बताया था कि यहाँ एक दुकान ऐसी है जहाँ हर माल एक पाउंड में मिलता है। यहाँ की पत्थरों से बनी चिकनी सड़क पर हेरियट रो है जहाँ अमीरों के आवास हैं। रॉबर्ट लुई यहीं पैदा हुआ था। क्वीन स्ट्रीट पर लॉर्डमिल्हिम की मूर्ति है जो एक लम्बे खंभे पर बनी है। सेंटऐंड्र स्क्वायर, द बाल्मारो होटल जो महल जैसा है और लो आ गई एक पौंड वाली दुकान। हमारे साथी पर्यटक टूट पड़े खरीदारी के लिए। मैंने एक प्लास्टर ऑफ पेरिस का बेहद जीवंत दिखता भोला-भाला कुत्ता खरीदा। जानवरों में मुझे कुत्ता और पक्षियों में मिट्ठू बहुत अच्छे लगते हैं।
एडिनबरा पोर्ट में सुरुचि में डिनर के बाद होटल का रास्ता एरिक को मिल ही नहीं रहा था। जब ख़ूब भटक चुके, तब रात के ग्यारह बजे होटल 'केरन' पहुँचे। होटल के रिसेप्शन में ही गरम तापमान रखा गया था। गरम कपड़े उतार देने पड़े। मुझे ग्राउंड फ्लोर पर सबसे आखिरी वाला कमरा मिला।
तीन जून की सुबह आज पहली बार आठ बजे जागने का समय रखा गया था। मेरी नींद छै: बजे ही खुल गई। फिर कमरे में बैठा नहीं गया। स्कॉटलैंड की सुहानी सुबह मानो दस्तक दे रही थी। तैयार होकर होटल के कंपाउंड में देर तक टहलती रही। खूबसूरत पहाड़ और वादियाँ, वादियों में खिले फूल... ऐसा लग रहा था जैसे मैं सदियों से इन्हें जानती हूँ। प्रकृति छल नहीं करती, न बदले में कुछ चाहती है। खुले हाथों वह देती चलती है, यह तो हमारी कूबत है कि हम कितना ले पाते हैं। नाश्ते के बाद हम इंग्लैंड की ओर रवाना हुए। रास्ते में पार्किंग प्लेस पर एक बड़ा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स जो सुपर मार्केट था देखकर सभी ने शॉपिंग की इच्छा प्रकट की। मैंने अजय से कहा-"मेरीइच्छा नहीं है। क्या मैं कोच में ही बैठी रहूँ।"
"देख आइए... अच्छा मार्केट है। कोई ज़रूरी नहीं है कि कुछ खरीदा ही जाए।"
सुपर मार्केट में लोग भारी-भारी लिक्विड बाथ सोप और शैंपू खरीद रहे थे। मुझे ताज्जुब हुआ... क्या इन्हें ये नहीं मालूम कि एक टिकट पर बीस किलो वज़न ही जाता है हवाई जहाज़ में। और भारी कस्टम देकर ऐसी चीजें ले जाना कहाँ की बुद्धिमानी है?
इंग्लिश चैनल से लगे ब्रिटिश हार्बर को पार कर रास्ते में दो जगह आधा घंटा रुकते हुए हम रात आठ बजे मेनचेस्टर शहर पहुँचे जो इंग्लैंड का बेहद समृद्ध शहर है।