स्टारडम, बाबाडम : डमडम डीगा डम / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :27 अप्रैल 2018
राजपाल यादव के बैंक खाते में यथेष्ठ धन नहीं होने के बावजूद उन्होंने चेक जारी किए, जिनका भुगतान नहीं होने पाने के अपराध में उन्हें अदालत ने जेल भेज दिया है। इसी समय एक स्वयंभू बाबा को यौन उत्पीड़न और कत्ल के अपराध में आमरण जेल की सजा सुनाई गई है। एक के पास धनाभाव था, दूसरे के पास धन की विपुलता। धन की विपुलता के साथ ही यौन कामनाएं बढ़ गईं और अध्यात्म के पाखंड का पर्दाफाश हो गया। बाबाडम स्टारडम से अधिक भयावह साबित हो रहा है। दरअसल, बाबा बनने के लिए भी नेता बनने की तरह अभिनय क्षमता का होना आवश्यक है। अवाम भी अपने को वैसा दिखाना चाहता है जैसा वह नहीं है गोयाकि अभिनय हर क्षेत्र में सतत जारी है।
विगत वर्षों में धार्मिक स्थानों पर आने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। यहां तक कि 31 दिसंबर की रात पांच सितारा होटलों से अधिक लोग धार्मिक स्थानों पर जाते हैं। बहुत से लोग मन ही मन जानते हैं कि उनकी जितनी कमाई है, उतनी योग्यता उनमें थी ही नहीं। एक अन्याय आधारित व्यवस्था ने उन्हें धनाढ्य बना दिया है। कुछ उनकी चतुराई थी और कुछ अवाम का भोलापन था कि वे सम्पदा के ढेर पर जा बैठे। जीवन के असमान संघर्ष के कारण अवाम के मन में चमत्कार की आशा पैदा होती है या किसी अवतार के प्रकट होने की कामना होती है। आर्थिक खाई से ही अपराध व बाबाडम का जन्म होता है। चमत्कार के लिए हमारे मन में बहुत महत्व है। राजकुमार हीरानी की फिल्म 'पी.के.' में पाखंड को खूब प्रशंसनीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
राम गोपाल वर्मा ने राजपाल यादव को अपनी फिल्म 'जंगल' में एक छोटी-सी भूमिका निभाने का अवसर दिया। उस समय हास्य अभिनय के क्षेत्र में बियाबां पसरा था। धीरे-धीरे उन्हें अनेक भूमिकाएं मिलने लगीं। धन आने पर उन्हें लगा कि यह उसके गुरु की कृपा है। उन्होंने अपने धन के साथ ही ऊंची ब्याज दर पर बड़ी रकम उधार लेकर अपने गुरु का आश्रम बनवाया। दूसरी ओर अन्य हास्य कलाकारों के आने के कारण राजपाल यादव को कम काम मिलने लगा। सूद के कारण कर्ज की राशि बढ़ती गई। इन सब कारणों से हास्य कलाकार राजपाल यादव का जीवन त्रासद हो गया। यह संभव है कि उन्होंने अपने गुरु से भी कुछ धन मांगा हो परंतु इस तरह के गुरु के यहां धन केवल लिया जाता है। राजपाल यादव ने फिल्म निर्माण भी किया परंतु उनके कर्ज बढ़ते ही चले गए। अब जेल में वे अपने को अभागा मानने लग सकते हैं। तर्क सम्मत रास्ता उन्होंने कभी खोजा ही नहीं। मूर्खता के परिणाम को प्राय: भाग्य से जोड़ा जाता है।
बाबा लोग भी तर्कहीनता के शिकार होते हैं। प्राय: बाबाडम में गांजे-चरस का सेवन किया जाता है। जाने कैसे भांग के सेवन को होली के त्योहार से जोड़ दिया गया है। राधा और रंग का उत्सव भंग और जंग का उत्सव बन गया। एक क्षेत्र में लट्ठमार होली होती है। अक्षय कुमार अभिनीत 'टॉयलेट : एक प्रेम कथा' में लट्ठमार होली उत्सव दिखाया गया है। कुछ समय पूर्व ही डेराकांड भी घटित हुआ है। एक प्रांत के 'भक्त' मुख्यमंत्री ने बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा और सुविधाएं दी हैं। कुछ ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनके आश्रम में मंत्री निवास से अधिक सुविधाएं हैं।
कभी-कभी इस तरह के लोग अपने स्वांग पर इतना यकीन करने लगते हैं कि इसी तरह के एक बाबा ने जल की सतह पर पैदल चलने की घोषणा कर दी थी। मीडिया ने इस प्रसंग को खूब हवा दी परंतु अपने द्वारा रचे नशे में गाफिल बाबा जल पर पैर रखते ही डुबकी खा गया और तमाशा टांय टांय फिस हो गया। फिल्मकार रमेश सिप्पी ने अपनी फिल्म 'शान' में इसी तरह जल पर चलने का स्वांग 'जॉनी वाकर और आईएस जौहर से अभिनीत कराया था।
आसाराम प्रकरण में मुकदमा कायम करने वाली कन्या और उसकी मां पर दबाव बनाए गए परंतु उन्होंने मुकदमा वापस नहीं लिया। इन महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। तीन चश्मदीद गवाह की मृत्यु भी संदिग्ध हालात में हुई थी। जेसिका प्रकरण पर तो रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' प्रभावोत्पादक थी। 'पिंक' भी असाधारण फिल्म थी। राम रहीम ने भी कुछ फिल्में बनाई हैं। आसाराम पर फैसला आने के बाद कई क्षेत्रों में खुशी मनाई गई, जिसका कारण न्याय की जीत नहीं था।
बाबा के आश्रम में असीमित धन चढ़ावे के रूप में आता था, जिसे वे कर्ज के रूप में व्यापारियों को देते थे। अब वे लोग खुश हैं कि उन्हें कर्ज अदाएगी से मुक्ति मिल गई। अजब-गजब भारत में चक्र के भीतर इतने चक्र हैं कि आप कोई थाह नहीं पा सकते।