स्टूडियोनुमा दफ्तर अतीत की स्मृति / जयप्रकाश चौकसे

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स्टूडियोनुमा दफ्तर अतीत की स्मृति
प्रकाशन तिथि :09 जनवरी 2018


कोलकाता के एक्रोपोलिस मॉल परिसर में श्रीकांत मोहता और मोनी मोहता का फिल्म व्यवसाय का दफ्तर है। सारी सजावट इस तरह की गई है कि आपको पुराने दौर के फिल्म स्टूडियो में प्रवेश करने का एहसास होता है। सारे कैम्पस के इर्द-गिर्द महान फिल्मों के सेल्युलाइड के अंश इस तरह लगाए गए हैं कि आपको सत्यजीत रे, तपन सिन्हा, मृणाल सेन, अपर्णा सेन इत्यादि के सृजन संसार में घूमने का आनंद प्राप्त हो। एक तरह से यह बंगाली भाषा फिल्मों की यादों की जुगाली करने की जगह है। आपको वर्तमान में ही सिनेमा के अतीत के गलियारों में घूमने का आनंद प्राप्त होता है। पच्चीस हजार फीट के क्षेत्रफल में मोहता बंधुओं ने सिनेमाई माया संसार की रचना इस तरह की है कि पुराने दौर के प्रोजेक्टर को टेबल की तरह इस्तेमाल किया जाता है, वहां की कुर्सियों पर बैठने पर सिनेमाघर में बैठने का अनुभव होता है।

मोहता बंधुओं का पारम्परिक व्यवसाय बड़े पैमाने पर राखियों के निर्माण का रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी पहली फिल्म का नाम 'भाई अमर भाई' था। 1995 से अपनी यात्रा प्रारंभ करने वाले इन भाइयों ने अब तक एक सौ सोलह फिल्मों में पूंजी निवेश किया है और उनका वितरण भी किया है। उनकी बनाई फिल्मों में शामिल है 'रैनकोट' और 'चोखेर बाली' जैसी यादगार फिल्में। एक तरफ मुंबई में शिवेन्द्र सिंह डूंगरपुर का फिल्म संग्रहालय है तो दूसरी तरफ कोलकाता में मोहता बंधुओं का संग्रहालयनुमा स्टूडियो है। सरकारों की उदासीनता के बावजूद फिल्म उद्योग स्वयं की ऊर्जा से संचालित है। मोहता बंधु छविगृह के निर्माण का प्रयास भी कर रहे हैं। वे जानते हैं कि भारत में मात्र आठ हजार एकल सिनेमा और मात्र दो हजार मल्टीप्लेक्स स्क्रीन हैं जबकि चीन में पचास हजार स्क्रीन हैं जिस कारण आमिर खान की 'दंगल' ने भारत से अधिक आय चीन में अर्जित की है। प्रांतीय सरकारें टिकट दाम में से दस प्रतिशत सर्विस टैक्स सिनेमाघर को लेने का हुक्म जारी करें तो बात बन सकती है। यह धन सरकार के कोष से नहीं जाएगा वरन दर्शक स्वयं अपने सिनेमाघर की रक्षा करता है। मात्र हुक्म जारी करने का काम भी नहीं हो पा रहा है।

हिन्दुस्तान में कथा फिल्मों के निर्माण के दूसरे दशक में ही बंगाल में बीएन सरकार ने न्यू थियेटर्स नामक कॉर्पोरेट का गठन किया था, जिसमें गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर परामर्शदाता थे। जब कॉर्पोरेट की पहली कुछ फिल्में टिकट खिड़की पर असफल रहीं तो गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 'नॉतिर पूजा' नामक फिल्म बनाई और बाद में उन्हीं के सुझाव पर शिशिर भादुड़ी के नाटक 'सीता' से प्रेरित फिल्म बनाई गई, जिसकी अपार सफलता ने कॉर्पोरेट को बंद होने से बचा लिया। उन दिनों एन्डरसन कम्पनी में काम करते हुए पृथ्वीराज कपूर ने राम और दुर्गा खोटे ने सीता की भूमिका का निर्वाह किया था। न्यू थियेटर्स के साथ अपने अनुबंध के तहत पृथ्वीराज कपूर सपरिवार कोलकाता में रहे। न्यू थियेटर्स के संगीतकार आरसी बोराल के मशविरे पर ही पृथ्वीराज ने अपने पुत्र राज कपूर को शास्त्रीय संगीत की पाठशाला भेजा था, जहां मुकेश भी मौजूद थे। इस तरह राज कपूर और मुकेश गुरुभाई बने और ताउम्र रिश्ता निभाया भी गया। दोनों की आवाज में साम्य होने के कारण पार्श्वगायन अस्वाभाविक ध्वनित नहीं होता। राज कपूर ने भी दो गीत स्वयं की आवाज में प्रस्तुत किए हैं।

कोलकाता में निरंजन पॉल के देशप्रेम और स्वतंत्रता संग्राम में रुची लेने के कारण तत्कालीन सरकार उनको गिरफ्तार करना चाहती थी। परिवार को इसकी अग्रिम जानकारी थी, अत: उसी रात लंदन जाने वाले एक जहाज में किसी तरह एक टिकिट लिया गया और निरंजन पॉल लंदन पहुंचे जहां उन्होंने देविका रानी और हिमांशु राय से मित्रता स्थापित की। निरंजन पॉल के अंग्रेजी भाषा में लिखे नाटक वहां मंचित हुए। हिमांशु राय वहां कानून की पढ़ाई के लिए भेजे गए थे परंतु उनकी रुचियां रंगमंच और सिनेमा में थीं। हिमांशु रॉय, देविका रानी और निरंजन पॉल ने भारत आकर फिल्मों का निर्माण किया। उनकी 'लाइट ऑफ एशिया' और 'शिराज' सफल रहीं। 'शिराज' का एक प्रिंट आज भी ऑस्ट्रेलिया में सुरक्षित हैं। जाने कैसे फिल्में अनसोची जगहों में सुरक्षित रहती हैं। इंदौर के एलोरा सिनेमा के मालिकों के पास विलियम्सन कम्पनी का बना कैमरा आज भी सुरक्षित है। उनके पूर्वजों ने 'मजबूर माशूक' नामक फिल्म बनाई थी।

ज्ञातव्य है कि पंजाब के मोबन बाबू कोलकाता से जहाज पर सवार होकर डॉक्टर बनने के लिए लंदन जाने वाले थे। जहाज में विलम्ब होने के कारण उन्हें कुछ दिन कोलकाता रुकना पड़ा। एक शाम वक्त काटने की खातिर वे एक कोठे पर गए जहां जद्‌दबाई के माधुर्य और सौंदर्य से अभिभूत होकर उसी के हो गए। मोहनबाबू और जद्‌दबाई की बेटी नरगिस थी जो स्वयं में मनोरंजन जगत के इतिहास का एक अध्याय बन गई। राज कपूर के सानिध्य में रहीं तो 'आवारा' और 'श्री420' जैसी महान फिल्में बनी, मेहबूब खान का साथ दिया तो 'मदर इंडिया' बनी और उसके पति सुनील दत्त भी 'मुझे जीने दो' बना पाए। कोलकाता भारतीय सिनेमा में रसगुल्ले की मिठास की तरह मौजूद रहा है।

बहरहाल आपसी मतभेद और अन्य कारणों से न्यू थियेटर्स का विघटन हुआ। बिमल रॉय, ऋषिकेश मुखर्जी, हेमंत कुमार, अमिया चक्रवर्ती इत्यादि गुणवान लोग कोलकाता छोड़कर मुंबई आए और मुंबई फिल्म उद्योग में कोलकाता टोला बसा।