स्टूडियो में शादी और चर्च में प्रार्थना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2013
खबर है कि मिसेज कल्पना देव आनंद लंबा वक्त चर्च में बिताती हैं। वे प्रार्थना करती हैं और यीशू मसीह की सेवा करती हैं। देव आनंद ने कल्पना कार्तिक से फिल्म शूटिंग के भोजन अवकाश के समय विवाह करके सबको अचंभित कर दिया था। चेतन आनंद को गश आ गया था। देव आनंद अपने जीवन में इस तरह के त्वरित निर्णय करने में सक्षम थे। उन्हें जीवन में एक क्षण भी किसी संशय में नष्ट करना पसंद नही था। वे हवाई जहाज में अखबार की किसी खबर से प्रेरित होकर कहानी रचने लगते थे और हवाई जहाज के गन्तव्य पर पहुंचने तक कथा तैयार हो जाती थी और कागज पर स्याही सूखने के पहले शूटिंग शुरू कर देते थे तथा प्रदर्शन के पूर्व ही अगली फिल्म के बारे में विचार करने लगते थे। उनकी जीवन शैली में कुछ भी संभव था। वे अत्यंत तेज गति से चलते थे तथा साथ वाले को लगभग दौडऩा पड़ता था। उनके पास अद्भुत ऊर्जा थी।
देव आनंद का जन्म मंझले बेटे के रूप में सफल वकील पिशोरीमल आनंद के घर हुआ था गुरदासपुर में। उनकी माता को घर के पाश्चात्य वातावरण से थोड़ा भय था कि कहीं बच्चे भारतीयता से वंचित नही रह जाएं, इसलिए चेतन आनंद को उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी अध्ययन के लिए भेजा था और जब देव आनंद उस वय में पहुंचे तो उन्होंने परिवार के दबाव में निर्णय लेने से मना कर दिया। उस किशोर वय में भी वे जानते थे कि उन्हें क्या पसंद है। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में ऑनर्स किया और अभिनेता बनने मुंबई आ गए।
जब देव आनंद उभरते सितारे थे तब स्थापित शिखर सितारा सुरैया को उनसे इश्क हो गया और दोनों की अंतरंगता इतनी बढ़ी कि सुरैया के प्रिय हॉलीवुड के ग्रेगरी पैक की मुद्राएं देव आनंद ने भी अपनी लीं। इस रिश्ते का उन्हें लाभ मिला परन्तु इसका यह अर्थ नही कि सुरैया के सुडौल कंधों के सहारे वे आगे बढ़े। बहरहाल सुरैया की नानी को यह रिश्ता पसंद नही था जिसके दो कारण थे- धर्म का अलग होना और एक भरे-पूरे परिवार का आर्थिक भार सुरैया ही उठाती थी। नानी की आत्महत्या की धमकी के कारण सुरैया ने देव आनंद को उनकी दी हुई हीरे की अंगूठी वापस लौटा दी। देव आनंद ने तुरन्त ही अंगूठी को समुद्र में फेंक दिया। वे देवदास की तरह पारो के गम में स्वयं को शराब में डुबाने वाले व्यक्ति नही थे। अपने चरित्र की इसी विशेषता के कारण साहिर का गीत 'हम दोनों' में विश्वसनीयता से प्रस्तुत कर सके 'हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया, जिंदगी का जश्न मनाता गया।'
इस घटना के कुछ समय बाद ही उन्होंने भोजन के अवकाश में कल्पना कार्तिक से विवाह कर लिया। यह बात सन् 1954 की है। सुरैया को इस समाचार से बहुत धक्का लगा और उन्होंने तय किया कि ताउम्र वे शादी नही करेंगी। देव आनंद का मिजाज जुदा था। अतीत उनके लिए कभी न लौटने वाला वक्त था, वे निदा फाजली पर यकीन नहीं करते थे। 'गुजरा पल गुजर कर भी पूरी तरह नही गुजरता'। वे अपनी पुरानी फिल्म भी नहीं देखते थे। उन्होंने ताउम्र महानगरीय पात्र प्रस्तुत किए। उन्हें हर तरह के ढोंग और दिखावे से चिढ़ थी। वे अपना अंतिम समय निकट जानकर ही लंदन गए थे और अपने पुत्र को हिदायत दे गए थे कि उनकी अंत्येष्टि लंदन में ही की जाए। वे जानते थे कि भारत में इसका तमाशा बना दिया जाएगा।
लिजलिजी भावुकता से मुक्त होने का उनका नजरिया ताउम्र कायम रहा। जीवन में केवल एक बार उन्होंने 'गाइड' के आखिरी हिस्से में एक अनिच्छुक स्वामी की भूमिका की जिसे लोगों की आस्था के कारण जल वृष्टि के लिए अमरण अनशन करना होता है। इस हिस्से को विजय आनंद ने विश्वसनीयता से प्रस्तुत किया। यह कितनी अजीब बात है कि उनकी आधुनिक विचारों वाली पत्नी कल्पना भी अब लंबा वक्त चर्च में गुजारती हैं गोयाकि अपने पति की गाइड वाली श्रेष्ठतम भूमिका को अपने ढंग से जी रही हैं। लगभग पचास वर्ष पूर्व शूटिंग के भोजन अवकाश में की गई शादी एक त्वरित निर्णय था। देव आनंद के लिए कर्मस्थल स्टूडियो ही मंदिर, मसजिद, चर्च और क्या अब उनकी पत्नी के लिए उसी तरह चर्च सबकुछ है? रहस्यमय प्रेम अकल्पनीय ढंग से अभिव्यक्त होता है और जिंदगी किसी भी अफसोस से ज्यादा रोचक और अकल्पनीय हो सकती है।