स्टेटमेंट / रश्मि

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर की नामी महिला वकील के दफ्तर में रज्जो अपने पिता के साथ बैठी है। गाँव के गरीब किसान की नाबालिग बेटी रज्जो…. उम्र के साथ-साथ समझ भी कम…. पढ़ी-लिखी भी नहीं। रोते-रोते ऐसी पथरा चुकी है कि कब आँख सूख जाए और कब बह चले कुछ पता नहीं।

पंद्रह दिन पहले गाँव के पांच मुस्टंडों ने उसके जिस्म को ऐसा छलनी किया कि उसकी आत्मा भी गूंगी हो गई। उस बेचारी की तो उम्र भी इतनी नहीं थी कि वो समझ पाती जो उसके साथ हो रहा था। उसके माता-पिता का छाती पीट-पीट कर रोना, गाँव के लोगों की खुसर-पुसर और अपने जिस्म से उठते बेहिसाब दर्द से बस इतना ही जान पाई थी कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है। इस मामले में गाँव के बड़े सपूत भी फंसे थे सो पूरे मामले की छानबीन के आदेश आ चुके थे।

नादान लड़की पंद्रह दिन से कभी पुलिस थाने, कभी डॉक्टर के पास, कभी मुखिया के सामने तो कभी ज़मींदार के आगे पेश होती रही और देती रही ‘स्टेटमेंट’।

आज फिर वकील साहिबा के सामने स्टेटमेंट(बयान) देने के लिए पेश होना है ताकि न्याय मिल सके। लड़की जिस्म और मन से दर्द से चूर-चूर है लेकिन फिर भी पेश होने के लिए मजबूर है। इतने में अर्दली ने भीतर जाने का संकेत किया।

बाप-बेटी दोनों वकील साहिबा के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए।

वकील साहिबा ने कुर्सी की ओर संकेत करते हुए कहा – “रज्जो! तुम बैठो...और आप कृपया कुछ देर बाहर बैठिये, मैं रज्जो का स्टेटमेंट(बयान) अकेले में लेना चाहती हूँ।”

“जी हुजूर!”

पिता हाथ जोड़े कमर झुकाए बस इतना ही बोला और बाहर जाकर फिर से उसी बेंच पर गया। रज्जो के लिए यह सामान्य बात थी क्योंकि अब तक सभी ने उसका ‘स्टेटमेंट’ अकेले में ही लिया था। किन्तु वह सिर्फ यह सोच-सोचकर हैरान हो रही थी कि, ‘वकील साहिबा तो खुद ही औरत हैं और ये औरत होकर भी मेरा ‘स्टेटमेंट’ लेंगीं!! आखिर इन्हें क्या ज़रूरत है मेरा ‘स्टेटमेंट’ लेने की... क्या मुझे दर्द देकर इन्हें तकलीफ नहीं होगी!! ...क्या ये भी मेरे दर्द को नहीं समझेंगीं!!’

उसने बड़ी सहमी आवाज़ में पूछा – “क्या आप भी मेरा ‘स्टेटमेंट’ लेंगीं?”

-“हाँ रज्जो! तभी तो मैं तुम्हारा केस लड़ पाऊँगी। ...अच्छा बताओ जब तुम्हारे साथ ये हादसा हुआ तब तुम कहाँ पर थीं?...कौन-कौन था तुम्हारे साथ?....क्या तुम्हारी उन लड़कों में से किसी से दोस्ती थी?”...आदि आदि।

रज्जो सभी प्रश्नों के उत्तर तोते की तरह देती गई। करीब आधे घंटे की पूछताछ के बाद वकील साहिबा ने बच्ची को प्यार से कहा – “अब तुम जा सकती हो।”

रज्जो ने अपने दुपट्टे के दोनों छोरों को अपनी मुट्ठियों में भींचते हुए डरते-डरते पूछा – “.....पर!! आपने मेरा ‘स्टेटमेंट’ तो लिया ही नहीं।