स्तब्ध हूँ / तेजबीर
Gadya Kosh से
आज सुबह मशहूर फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे की खबर पढ़कर स्तब्ध रह गया जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रिय पाठको आज मेरा यह अन्तिम लेख है और आगे शायद नहीं लिख पाऊंगा।
चौकसे साहब मशहूर फिल्म समीक्षक तो हैं ही इससे अलग वो एक महान दार्शनिक और चिंतक भी हैं जो फिल्मी किस्सों के मार्फत इंसानी फितरत, स्वभाव, व्यवहार , रिश्ते और रिश्तों की गरिमा से ऐसे अवगत कराते हैं मानो कोई चलचित्र चल रहा हो। उनसे बहुत कुछ नया सिखने को मिलता है।
चौकसे साहब काफी समय से कैंसर से पीड़ित हैं और खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने नियमित लेखन बन्द किया है जो वो दैनिक भास्कर समाचार पत्र में पिछले 26 साल से लगातार लिख रहे थे। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वो शीघ्र स्वस्थ हों और फिर से अपनी लेखनी से हमें गौरवान्वित करते रहें।