स्तरीय हाइकु से सज्जित संग्रह-‘सप्तपर्णा’ / रश्मि विभा त्रिपाठी
'सप्तपर्णा' हाइकु विधा के विकास के क्षेत्र में एक उत्कृष्ट, श्लाघनीय व ऐतिहासिक कार्य है विश्व की चुनिंदा सात स्त्री हाइकुकारों के 624 हाइकु-पुष्प से पल्लवित संग्रह 'सप्तपर्णा' ।
सप्तपर्ण (एक औषधीय सदाबहार वृक्ष) की भाँति एक स्त्री भी विवाह पूर्व अपने पिता का घर-आँगन सुरभित करती है। विवाह के बाद पति के प्रासाद को सदाबहार रखती है, संतान के जीवन में हरीतिमा भर आजीवन उन्हें सुकोमल मातृत्व छाँव देती है एवं सभी दुख-ताप का निवारण करती है।
सप्तपर्णा अर्थात् सात पत्तियों वाली यह कृति विविध-वैविध्यपूर्ण काव्य से युक्त। इसीलिए इसे 'सप्तपर्णा' नाम से अभिहित किया गया।
इस संकलन में विविध विधाओं में दक्ष, विदेश में निरंतर सृजनरत वरिष्ठ साहित्यकार शशि पाधा जी, यू एस ए (केंन्द्रीय हिन्दी निदेशालय एवं दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी से पुरस्कृत) , कृष्णा वर्मा जी, कैनेडा (दो हाइकु, ताँका, सेदोका-संग्रह) , रचना श्रीवास्तव (अवधी में अनूदित हाइकु-संग्रह व स्वतंत्र हाइकु-संग्रह) तथा भारत से साहित्यकार ऋता शेखर मधु (हिंदी का प्रथम हाइगा-संग्रह, हाइकु-संग्रह) , सुरंगमा यादव (दो हाइकु-संग्रह) , अनिता मण्डा एवं हरियाणा साहित्य अकादमी की लेखन-कार्यशाला की प्रबुद्ध युवा रचनाकार पूनम सैनी के हाइकु इस संकलन की शोभा बढ़ा रहे हैं।
वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ युवा रचनाकारों को भी मंच प्रदान कर सम्पादक महोदया ने अपने नैतिक दायित्व को निष्ठापूर्वक निभाया है। सम्पादक का यह विचार कि युवा पीढ़ी जो निरंतर अच्छा रच रही है, भविष्य में उनकी लेखनी अपना यथोचित श्रमदान दे सके और सुधी पाठकों को अच्छा साहित्य सुलभ हो, वन्दनीय, अभिनन्दनीय है।
जीवन-ऋतु का कोई भी रंग इस संग्रह में अछूता नहीं रह गया है। एक ओर प्राकृतिक रंगों का इंद्रधनुषी रंग प्रकृतिपरक हाइकु बरसाते हैं तो दूसरी ओर जीवन के हर रूप का अत्यंत ही मनोहारी चित्रण है।
जीवन-दर्शन अनुक्रम में शशि पाधा जी का हाइकु उल्लेखनीय है जो कि गहन भावानुभूति समेटे हुए है-
स्याही न शब्द / अंतर्मन की पोथी / मौन वेदना। (शशि पाधा, पृष्ठ-12)
निश्चय ही भावों को शब्द देना अत्यंत दुरूह है परंतु 'जहाँ न पहुँचे वहाँ पहुँचे कवि' रचनाकार की रचनाधर्मिता उसका विस्तृत भाषा कौशल, भाव-शिल्प का निर्वाह इस बात को सिद्ध करते हैं।
वृक्षों के माध्यम से मानव जीवन के लिए विनम्रता का संदेश निम्नांकित हाइकु में छिपा है-
फलों से लदे / वृक्ष हैं झुके खड़े / विनम्र बड़े। (ऋता शेखर मधु, पृष्ठ-24)
भोर के यज्ञ में स्वप्नों की आहुति दे जागृति का कर्म-पथ पर अग्रसर होना जीवन का यह शाश्वत नियम निम्न हाइकु में निहित है-
भिनसार में / टूटीं स्वप्न की साँसें / पलकें खुलीं। (कृष्णा वर्मा, पृष्ठ 37)
सीमा पर भारत माँ की रक्षा में तैनात सैनिक पुत्र के लिए जननी का अतुलित नेह नेत्र सजल कर देता है-
बेटे का कोट / रोज धूप दिखाती / प्रतीक्षा में माँ। (रचना श्रीवास्तव, पृष्ठ 53)
वेदना के मन के द्वारे पर असमय बिन बुलाए आ खड़े होने से उपजी असहजता की स्थिति तथा मन के रोष की अभिव्यंजना इस हाइकु में हुई है- बन्द किवाड़े / फिर भी आ जाती हैं / पीड़ाएँ द्वारे। (डॉ. सुरंगमा यादव, पृष्ठ-69)
मुँडेरों से उड़कर पंछियों का अपने नीड में छिप जाना साँझ को सदा से अकेला करता था परन्तु वर्तमान में पेड़ों के कटान से व पक्षियों की निरंतर विलुप्ति से तो यह एकाकीपन और बढ़ा है, ऐसे में मन की दशा विचित्र होती है-
लिखी साँझ ने / उदास कहानियाँ / विरही मन। (अनिता मण्डा, पृष्ठ-91)
निम्न हाइकु में उड़ान का अवसर खोजते नयन-स्वप्न एक सकारात्मक दृष्टिकोण लिए हुए हैं-
'बाट निहारें / नभ में उड़ने को / ख्वाब हमारे। (पूनम सैनी, पृष्ठ 105)'
समृद्ध भाषा-कौशल के मानक व श्रेष्ठतम भाव की कसौटी पर कसे हुए संग्रह के सभी हाइकु बहुत ही सुन्दर रूप में प्रकृति, जीवन दर्शन, मौसम के विविध रंग, बचपन की अवस्था, रिश्तों का स्वरूप, प्रेम की स्थिति, यादों की परिभाषा, नारी समिधा, समय सरगम, सुख-दुख एवं आशाओं का सटीक, जीवंत दृश्य उपस्थित करते हैं।
विविध विषयों में रचे गए इन 7 रचनाकारों के हाइकु भाव-माधुर्य से सिक्त हैं और जीवन की प्रत्येक भंगिमा का विलक्षण बिम्ब प्रदर्शित करते हैं जिन्हें पढ़ नि: संदेह ही पाठक-वर्ग सुखद अनुभूति वरण करेगा।
'सप्तपर्णा' संग्रह डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री' जी की सतत् साहित्यिक साधना के अवदान का ही प्रतिफल है।
संकलन का आवरण पृष्ठ जितना चित्ताकर्षक है, भीतर के पन्नों पर विविध विषयों की छटा बिखेरते हाइकु और भी मनभावन हैं।
अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए यह कृति अनुकरणीय एवं संग्रहणीय है।
'सप्तपर्णा' (हाइकु-संग्रह) : डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री' , पृष्ठ-112, मूल्य-250 रुपये, ISBN-978-93-89999, प्रथम संस्करण: 2021, प्रकाशक-अयन प्रकाशन, 1 / 20 महरौली, नई दिल्ली-110030