स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की लघुकथाएँ / शिवजी श्रीवास्तव
`स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की लघुकथाएँ' का प्रथम संस्करण 1992 में प्रकाशित हुआ था, तब लघुकथा एक परिपक्व विधा के रूप में हिन्दी साहित्य में अपने आपको स्थापित कर रही थी और जीवन के विविध रूपों को अपने विषय का आधार बना रही थी। उस समय इस संकलन का प्रकाशन करके सुकेश साहनी जी ने इस बात का प्रमाण दिया था कि लघुकथा सशक्त एवं सामर्थ्यवान् विधा है और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का वह अपनी सूक्ष्म एवम् तीक्ष्ण दृष्टि से निरीक्षण कर रही है। अब पूरे पच्चीस वर्षो बाद इसका पुनर्प्रकाशन इस बात का प्रमाण है कि लघुकथा हिन्दी साहित्य की महत्त्वपूर्ण लोकप्रिय विधा के रूप में स्थापित होकर सतत विकासमान है। संकलन में सतासी लघुकथाएँ हैं, इनमे परिशिष्ट के रूप में संकलित की गई सोलह लघुकथाएँ भी सम्मिलित हैं।
मानवीय सृष्टि में सम्भवतःसर्वाधिक संश्लिष्ट एवम् अबूझ सम्बन्ध स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध है। विश्व की प्रत्येक सभ्यता के साहित्य में सर्वाधिक लेखन स्त्री पुरुष के सम्बन्धों पर ही हुआ है, भारतीय साहित्य की भी प्रत्येक विधा में स्त्री और पुरुष के सम्बन्धों पर प्रभूत लेखन हुआ है लघुकथा भी उनका अपवाद नहीं है। वस्तुतः सम्पूर्ण सामाजिक ताना बाना स्त्री-पुरुष के द्वंद्वात्मक सम्बन्धों से निर्मित, विकसित एवं संचालित है; अतः साहित्य में उनकी छाया स्वाभाविक है। सामाजिक विकासक्रम में नारी भी विकास के विविध सोपानों से गुजरी है, शोषण के अनेक रूपों से उसका साक्षात्कार हुआ है, माँ, भगिनी, भार्या, बेटी, प्रेयसी, मित्र इत्यादि अनेक दायित्वों का निर्वाह करती हुई भी वह बन्धनों में जकड़ी रही, अनेक मानसिक द्वन्दों से जूझती रही। विविध कालों में पुरुष की कलुषित दृष्टि एवं वृत्ति से एवं को बचाने में ही उसकी ऊर्जा का अपव्यय होता रहा। यह सिलसिला आज भी जारी है। संकलन की समस्त लघुकथाएँ स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों में व्याप्त द्वंद्व, तरलता एवम् मानसिक जटिलताओं को अलग-अलग रूपों में प्रभावी ढंग से व्यक्त करती हैं।
संकलन के सम्पादक ने 'अपनी बात' के अंतर्गत संकलित लघुकथाओं को विषय की दृष्टि से आठ भागों में विभक्त किया है-1.सफल-असफल दाम्पत्य, 2.प्रेम सम्बन्ध, 3.पति-पत्नी और वह अथवा प्रेम-त्रिकोण, 4.शिक्षा का अभाव, .5.सामाजिक रूढ़ियाँ और धार्मिक अन्धविश्वास, 6.शिक्षित नारी: तलाक के बाद, 7.आधुनिकता के दायरे में, 8.मनोवैज्ञानिक पक्ष। निःसन्देह समस्त लघुकथाएँ इन्हीं विषयों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। समाज में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों को इन्हीं विषयों के परिप्रेक्ष्य में घटित करके देखा जाता है। यदि इन विषयों को बहुत संक्षेप में कहें, तो समस्त कथाएँ स्त्री की देह और मन के इर्दगिर्द घूमती हैं, प्रत्येक देश काल समाज में नैतिकताएँ इन्हीं आधारों पर निर्धारित होती रही हैं। नियम-विधान, रिश्ते-नाते इन्हीं मापदण्डों पर बनते रहे हैं। सम्पादक सुकेश साहनी जी ने लघुकथाओं को समझने के लिये इन्हीं को सोदाहरण आठ भागों में विभक्त करके पाठको के लिये सहज बना दिया है।
शिल्प और संवेदना की दृष्टि से समस्त कथाएँ बेहद प्रभावी हैं, कुछ लघुकथाएँ तो बड़े ही सहज ढंग से अपनी बात कह कर और पाठक की चेतना को झंकृत कर जाती है, ऐसी ही एक सहज स्थितियों की लघुकथा है-अमिया (अशोक भाटिया) , किशोरी उषा का सहपाठी सूरज के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है, प्रकृति भी बसंत से परिपूर्ण है, किन्तु पारिवारिक संस्कारों के कारण उषा को यह आकर्षण पाप प्रतीत होता है। नैतिकता और प्रेम के द्वंद्व को अशोक भाटिया ने प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से अत्यंत कौशलपूर्वक प्रभावी ढंग से चित्रित किया है। अनेक लघुकथाएँ इस प्रकार का गहन प्रभाव छोड़ती हैं, एक कथा है 'आखिरी सफर' ...अज्ञात लेखक द्वारा रचित छोटी-सी कथा संवेदना को गहरे तक झंकृत करती है। रचना सत्य इतना—सा है कि खचाखच सवारियों से भरी बस में एक वृद्ध अपनी बगल वाली सीट पर झोला रखे है, कोई वहाँ बैठना चाहता है, तो वह कह देता है 'सवारी बैठी है' ...जब सवारी का रहस्य खुलता है, तो पाठक की आँखें भी नम हो जाती हैं। वृद्ध दूसरा टिकट दिखाकर कहता है-"दूसरा टिकट मेरे जीवन साथी का है, वह अब इस दुनिया में नहीं रही, ये उसके फूल हैं...यह जीवन साथी के साथ मेरा आखिरी सफर है..." यही है लघुकथा की शक्ति जो सम्वेदना के तारों को सहसा ही झंकृत करके एक कारुणिक भाव को जन्म देती है। यह छोटी—सी लघुकथा केवल दाम्पत्य के आदर्श की कथा न होकर विराट अर्थों को ध्वनित करती है। इस सफर के पीछे पूरी संस्कृति की यात्रा विद्यमान है। इसी प्रकार दाम्पत्य राग की अनेक लघुकथाएँ हैं, जिनमें स्त्री और पुरुषों की सहिष्णुता, मन की कोमलता और एक दूसरे के दुख सुख बाँटने के स्वाभाविक चित्र हैं, इसके विपरीत देह सुख की लालसा के लोभी पति भी हैं। मोह भंग (कृष्ण शंकर भटनागर) , भौतिक सभ्यता की दौड़ में दाम्पत्य सुख के लिए तरसती पत्नियाँ भी हैं, ।'मन्द मन्द लौ (डॉ अमरेंद्र सिंह) परपुरुष के साथ देह सुख भोगने वाली निष्ठुर और क्रूर नारियाँ भी हैं...' अमीर देश की कथा'(यादवेंद्र शर्मा चन्द्र) पति से विश्वासघात, रिश्तों के विश्वास के समानांतर रिश्तों के छल, और रिश्तों की पवित्रता को कलुषित करने वाले समाज के चित्र भी इन लघुकथाओं में विद्यमान हैं। भाई बहिन के पवित्र रिश्ते को भी आधुनिक समाज के युवा जहाँ कलंकित कर रहे' नंगे'(गम्भीर सिंह पालनी) , मौली के तार (शांति महरोत्रा) ,' तार' (शकुंतला किरण) , आशय यह है कि स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के संदर्भ में शायद ही कोई विषय हो जिस पर लघुकथाकारों की दृष्टि न गई हो।
एक और लघुकथा का उल्लेख करना चाहूँगा वह है शंकर पुणतांबेकर की 'चुम्बन' फ्रायडीय कुंठा के दर्शन की यह बड़े प्रतीकात्मक बिम्ब की कथा है, यहॉं मन की दबी वासना तमाम नैतिकताओं पर भारी पड़ती है। इस कथा के विपरीत सत्या शर्मा कीर्ति की 'रक्षक' समाज में नैतिकता और अच्छाई के जीवित रहने की आश्वस्ति की कथा है। नए कथाकारों ने बढ़ती हुई अपसंस्कृति के खतरों को भी पहचाना है। भूत (सीमा सिंह) , भेड़िये (प्रियंका गुप्ता) इसी प्रकार की लघुकथाएँ हैं।
संकलन का वैशिष्ट्य इस बात में भी है कि पुरानी पीढ़ी से आज तक के लघुकथाकारों की रचनाएँ इसमें संकलित हैं। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, जयशंकर प्रसाद, विष्णु प्रभाकर, राजेंद्र यादव और रामवृक्ष बेनीपुरी को बड़ी कहांनी और उपन्यास लेखको के रूप में ही जाना जाता है, किंतु सुकेश जी ने उनकी प्रभावी लघुकथाओं से भी पाठकों को परिचित कराया, स्वाभाविक है कि अपनी प्रभावान्विति के कारण लघुकथा बड़े-बड़े कथाकारों को आकृष्ट करती रही है। इन कथाकारों के साथ ही दिनेश पालीवाल, डॉ.सतीशराज पुष्करणा, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, सुकेश साहनी, अशोक भाटिया, रूपसिंह चन्देल, राजकुमार गौतम, नन्दल हितैषी इत्यादि प्रमुख लघुकथाकारों के साथ अनेक समर्थ नए कथाकारों की रचनाओं को एक साथ संकलित करना निःसन्देह एक विशिष्ट कार्य है। विषय, शिल्प और संवेदना के धरातल पर प्रत्येक रचना अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है।
निःसन्देह स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के मर्म को तलाशता, उनकी सम्पूर्ण सहजताओं एवम् जटिलताओं को विश्लेषित करता हुआ यह एक महत्त्वपूर्ण संकलन है। लघुकथा के सम्पूर्ण वैशिष्ट्य से युक्त ये संकलन इस बात का प्रमाण है कि लघुकथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को स्पर्श करती हुई गम्भीरतापूर्वक उनका चित्रण कर रही है। इस संकलन हेतु सम्पादक सुकेश साहनी ने जो परिश्रम किया वह श्लाघनीय है, निश्चित ही लघुकथाओं के इतिहास में इस संकलन को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त होगा। -0-समीक्ष्य पुस्तक-: स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की लघुकथाएँ (लघुकथाएँ) , सम्पादक-सुकेश साहनी। प्रकाशक-: अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली।संस्करण: द्वितीय-2018.मूल्य: 250.00 रुपये