स्त्री-विमर्श का स्वर्ण युग / सूर्यबाला
पिछली सदी का मध्यांतर आते-आते खासा बावेला मच गया। लोगों को महसूस हुआ कि इस समय का सबसे आपत्तिजनक और शोचनीय मुद्दा, स्त्रा का 'वस्तु' होना है। वह सदियों से उपेक्षा, दुतकार और शोषण की वस्तु रही है, उपभोग की वस्तु रही है, कन्यादान और राखी बाँध्नेवाली वस्तु रही है। हमारे सभ्य-विकसित समाज वेफ लिए इससे बड़ी लज्जा की बात भला और क्या हो सकती है! और डूब मरनेवाली बात तो यह है कि यह सब हमारी उपस्थिति और जानकारी में हुआ। बु (जीवियों ने माथा गाड़कर सियापा किया। स्त्रा कितनी असहाय और परतंत्रा रही युगों से। कम-से-कम अब तो हम कुछ करें। बेशक, हम उसे इस स्थिति में नहीं छोड़ सकते। आज का साहित्य, कला, रंगमंच और पिफल्में हाहाकार कर उठीं। देखते-देखते, सदी का उत्तरार्ध्, स्त्रा-दुर्दशा वेफ बयानों से ऐसा थर्राया कि शेषासन डोल उठा। ; यही कारण था कि उन दशकों में भूकंप वगैरह भी ज़रा ज़्यादा आए. द्ध ब्रह्मांड नतमस्तक। शोक-प्रस्तावों वेफ ढेर लग गए.
स्त्रियों ने अपनी दुर्दशा सुनी तो दो-हत्थड़ मारकर रो पड़ीं। लेकिन जैसा कि इस संसार का नियम है, कृष्ण-पक्ष वेफ बाद शुक्ल-पक्ष भी आता ही है। तो स्त्रियों वेफ इस शोक-पक्ष को सदा वेफ लिए समाप्त करने वेफ लिए स्त्रा-विमर्श रूपी शुक्ल-पक्ष की अवतारणा हुई. अब तक एक और बात स्त्रियों को बताई जा चुकी थी और उन्होंने मान भी लिया था कि स्त्रा पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। अर्थात् पैदाइशी तौर पर तो स्त्रा होने का कोई खतरा ही नहीं, बाद में जो बनना चाहें, स्त्रा बनेंऋ जो न बनना चाहें, न बनें या कुछ और बनें, जैसी उनकी मरजी. लेकिन इतना समझ लें कि स्त्रा बनना चाहेंगी तो पिफर से वही कन्यादान, वही रक्षाबंध्न, वही 'आँचल में है दूध् और आँखों में पानी' वाली मिलावटी स्थितियों से गुजरना होगा। अपनी स्मित रेखाओं से, संधि्-पत्रों की पफाइलें निपटानी होंगी। तो सोच लें, स्त्रियों ने मुँह बिचकाकर समवेत स्वर में कहा, "सोचना क्या हैऋ हमें नहीं करना। यह सब झंझट का काम है। कौन पड़े इन पचड़ों में!"
लोगों को स्त्रियों से इतनी समझदारी की उम्मीद नहीं थी। सदियों से वे उनवेफ मस्तिष्क को शाकाहारी जो समझते आए थे। अतः उन्होंने तुमुल ध्वनि से स्त्रा वेफ इस सयानेपन का स्वागत किया, उसकी दूरदर्शिता की दाद दी।
स्त्रियाँ पिफर भी थोड़े पसोपेश में तो थीं ही। जो नहीं बनीं, वह तो ठीक है, लेकिन अब बना क्या जाए? अर्थात् बनाएँ क्या अपना?
क्या बनाएँ अपना? इतना सुनना था कि चारों ओर से 'साध्ु-साध्ु' की स्तुतिकारी ध्वनियाँ गूँज उठीं-"यह आप हम पर छोड़ दीजिए. देखिए, हम आपको क्या से क्या बनाए देते हैं। तौबा कीजिए उस चूल्हे-चौके और आँखों में पानीवाले ध्ुआँते पर्यावरण से। बहुत डगमगाई नैया आपकी इन नदी-नालों में। दूसरों को पार उतारते-उतारते पस्त हो गईं आप। सुस्ताइए अब और अपने आपको हमारे हवाले कर गुजरिए. चुटकी बजाते इंतजाम हुआ जाता है। तो सबसे पहले इस आँख वेफ पानी को ही सुखाए देते हैं हम, क्योंकि सारे पफसाद की जड़ यह आँख का पानी ही है और भारतीय स्त्रा इसी पानी से अपनी जीवन-आस्था सींचती आई है। तो ये सुखा दिया हमने आँख का पानी और विलुप्त कर दिया लहराता आँचल।"
अब आप सुखी और सूख गया है पानी जिन आँखों का, ऐसी सूखी आँख से देखिए कि हमने कितना खूबसूरत माया-लोक रचा है भारतीय स्त्रा, मापफ कीजिए, इंडियन-वूमन वेफ लिए. रंगारंग सपनों से भरपूर पैवेफज लिये, एक-से-एक एलबमों, रीमिक्सों, सीरियलों और पिफल्मों की दुनिया कदमबोसी वेफ लिए हाजिर है। ड्रेस-डिजाइन, ज्वैलर और छोटे-बड़े कारोबारियों से लेकरविज्ञापन की सारी शक्तियाँ खुले बाज़ार में डेरा डालकर बैठी हैं। लक्ष्य एक, पथ अनेक। हर तंबू में स्त्रा-विमर्श चल रहा है। उसकी खूबसूरती की सामर्थ्य आँकी जा रही है। उसवेफ शरीर की संभावनाओं पर दूरबीनें टिकी हैं। अनुसंधन केन्द्र खुले हैं। प्रयोगशालाओं में ढल रही है भारतीय स्त्रा। सौंदर्य की वर्कशापों में नापी-जोखी इस इंडियन वूमन की ताकत से सारी दुनिया में ध्माका करने पर आमादा हैं बाज़ार की शक्तियाँ। बाज़ार अब स्त्रा सामर्थ्य का लक्ष्यवेध् बन गया है। स्त्रा ने अपनी सारी ताकत इसी दाँव पर लगा रखी है।
तो यह स्त्रा-विमर्श का स्वर्ण युग है और स्त्रा इस विमर्श का स्वर्ण मृग। शुरू-शुरू में कापफी दिक्कतें पेश आती थीं प्रयोगों को लेकर। लुवेफ-छिपे करने पड़ते थे। 'आर्ट-कला' की चिप्पियाँ चिपकानी पड़ती थीं। सुंदरियाँ कहतीं-पफलाँ दृश्य हमने नहीं दिए. धेखे से लगाए गए. लेकिन आज की चैतन्य, समर्थ स्त्रा बहुत सुलझी हुई है। पूरी तरह कोऑपरेट करती है। खुद आगे आती है। डंवेफ की चोट पर स्वीकारती है। नामी-गिरामी ड्रेस डिजाइन इस स्त्रा वेफ लिए ऐसी-ऐसी ड्रेसें तैयार करते हैं कि 'ड्रेस' शब्द की परिभाषा ही बदल जाए-अर्थात् ड्रेस और अनड्रेस वेफ बीच का अंतर ही समाप्त हो जाए. ऐसे ड्रेस सेंस वेफ साथ इतराती हुई स्त्रा जब 'रैंप' पर 'कैट-वॉक' करती है तो पब्लिक सीटी मारकर इंडियन-वूमन को सैल्यूट करती है। आभूषण व्यापारी उसवेफ सिर पर जगमगाता ताज रख देते हैं। पिफर पान-मसाला, खैनी, गुटका और डिटरजेंट की बारी आती है। इंडियन-वूमन सबको कृतार्थ करती है। पूरा टीम-वर्क है और लीड रोड में इंडियन-वूमन है। यह 'रोल' , यह 'सीन' आपको रातोंरात बुलंदियों वेफ शिखर पर पहुँचा देगा। सारे-वेफ-सारे पत्राकार दौड़े आएँगे। न्यूज फ्रलैश मारेंगे। आपसे पूछेंगे-मैडम, पफलाँ पिफल्म विशेष, रोल विशेष और सीन विशेष में तो आप सारी ही हदें पफलाँग गई हैं। ऐसा क्यों मैडम? इंडियन-वूमन बगैर जरा-सी विचलित हुए मुसकराकर कहेगी-क्योंकि यह सिचुएशन की माँग है, समय की पुकार है, वक्त का तकाजा है, परिवर्तन की शर्त है, मुक्ति का आह्वान है, कामयाबी की छलाँग है। बस-बस, मैडम! समझ गया मैं। लेकिन एक बात जो समझ में नहीं आती, वह यह है कि आप लोगों ने अपनी जंग तो स्त्रा को 'वस्तु' समझी जाने वेफ खिलापफ छेड़ी थी न और अब आप जैसी स्त्रियाँ स्वयं वस्तु में तबदील होने की अगुवाई कर रही हैं।
आपवेफ समझने का पफेर है। हमने उपेक्षा और दुतकार की वस्तु बनने से इनकार किया था, बाज़ार वेफ उपभोग की वस्तु बनने से थोड़ी न और पिफर यह वाली वस्तु हम अपनी मरजी से बन रहे हैं। किसी पुरुष की क्या मजाल जो जबरदस्ती हमें उपभोग की वस्तु बना सवेफ! सारा 'शो' हमारी मरजी का है। यह कारोबार का मामला है। हम वस्तु नहीं, कारोबारी हैं। आप स्वयं जानते होंगे, नए युग की उफर्जावान् नारी किस तरह उद्योग, व्यवसाय और व्यापार वेफ नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। तो हमने सोचा, हमीं क्यों पीछे रहें? हम भी अपने कारोबार वेफ जरिए अपना नाम रोशन करेंगे।
बेशक मैडम, लेकिन अन्य क्षेत्रों वेफ उद्योग, व्यवसाय और शरीर वेफ व्यवसाय में अंतर तो होता ही है! इस सबसे ख्यात होने से ज़्यादा कुख्यात होने का भय भी तो होता है न मैडम!
इंडियन-वूमन पुनः रिलैक्स मुद्रा में मुसकराती हुई कहती है-कोई अंतर नहीं रह गया है बालक, अब ख्याति-कुख्याति में। बल्कि आजकल तो कुख्याति ही ख्याति वेफ शिखर पर ले जाती है। मिसाल सामने है। आए दिन ग्लॉसी पत्रिकाओं वेफ मुखपृष्ठों पर और सभी समाचार-पत्रों के अंदर-बाहर किसी-न-किसी रूप में हमीं छपती हैं। छोटे-बड़े दुकानदार अपने स्टोरों के उद्घाटन हमीं से करवाते हैं। विद्यालयों से लेकर हर तरह वेफ सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों में विशिष्ट अतिथि की हैसियत से हमीं निमंत्रित की जाती हैं। सुबह बुटीक्स वेफ रिबन काटती हैं, शाम को प्रदर्शनियों में दीप प्रज्वलित करती हैं। शेष सारी रात पफाइव स्टार होटलों की पार्टियों की रौनक बढ़ाती हैं। क्रिवेफट पैवेलियन से लेकर गीत, गजल, पफैशन परेडों और अवार्ड नाइटों में वीडियो वैफमरे हमें रोशनी वेफ वृत्त में रखते हैं और अब तो इंशाल्लाह, हमसे चुनाव भी लड़वाए जाते हैं।