स्त्री उपेक्षिता / प्रभा खेतान / पृष्ठ 1

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नारीवादी आंदोलन के लिए गीता की मानिंद पूज्य पुस्तक
अनुवाद / कथासार: प्रभा खेतान

समीक्षा

नारीवाद आंदोलन को अपने विचारों से प्रारम्भिक स्तर पर पुख्ता करने वालों में फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बोउवा का स्थान अहम् है। सीमोन द बोउवार अस्तित्ववादी चिंतक सार्त्र के साथ काम करने वाली जिंदादिल महिला थीं। स्त्री के स्थान और उसकी स्थिति के प्रति सिमोन द बोउवा सदैव चिंतित रही। लैंगिक विभेद को वह सदैव अस्वीकार करती रही।

सिमोन द बोउवा ने सन् १९४७ में एक पुस्तक पर काम शुरू किया और वह सन् १९४९ में पूर्ण होकर जब पुस्तक रूप में आया तो पूरे विश्व में हलचल मच गई। सन् १९४९ में प्रकाशित वह पुस्तक और कोई दूसरी कृति नहीं वह 'द सेकिण्ड सेक्स` ही थीं जो कि नारीवादी आंदोलन के लिए गीता की मानिंद पूज्य पुस्तक है।

इसी पुस्तक का प्रभा खेतान ने हिन्दी अनुवाद 'स्त्री उपेक्षिता` के नाम से किया जो कि सन् १९९० में हिन्द पॉकेट बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित हुआ। दो खण्डों में विभक्त उक्त पुस्तक के प्रारम्भ में प्रभा ने सीमोन द बोउवार का परिचय, प्रस्तुति संदर्भ और भूमिका दी है।

प्रथम खण्ड को 'तथ्य और मिथ` शीर्षक दिया है जिसके तहत नियति, इतिहास, मिथक उपशीर्षक हैं।

द्वितीय खण्ड को 'आज की स्त्री` के नाम से परिभाषित किया है और निर्माण काल, स्थिति, औचित्य, स्वाधीनता संग्राम उपशीर्षकों के माध्यम से विस्तृत चिंतक फलक प्रदान किया है।

यह पुस्तक स्त्री जाति के लिए पूर्णतया एक आदर्श पुस्तक है और उसके चिंतन को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने में सक्षम है।

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