स्त्री कुछ नहीं करती! / अशोक भाटिया
वह सबेरे सबसे पहले पांच बजे उठी, भैंस को चारा देकर जंगल-पानी गई, फिर आकर पति और सास-ससुर को चाय पिलाई, फिर भैंस को दुहने के बाद नहलाया, फिर उसका गोबर उठाकर उपले पाथने ले गई, फिर आकर आटा गूंथा, सब्जी-रोटी बनाई, फिर दोनों बच्चों को उठाया-नहलाया और खिला-पिलाकर स्कूल के लिए तैयार किया, फिर दही बिलोई, फिर सास-ससुर और पति को नाश्ता कराया, फिर सबके जूठे बर्तन साफ़ किए, फिर खुद नाश्ता किया, फिर भैंस को चारा दिया, फिर घर में झाड़ू-पोंछा लगाया, फिर कपड़े धोने चली गई, फिर नहाकर दोपहर की रोटी बनाई और खिलाई, फिर खेत में गुड़ाई करने गई, वापसी में भैंस के लिए सिर पर चारा लेकर आई, आकर खाना बनाया और बच्चों व सास-ससुर को खिलाया, फिर से बर्तन साफ़ किए, फिर सबको गर्म दूध पिलाया, बच्चों को सुलाया, फिर चौपाल में ताश खेलने के बाद शराब पीकर आ धमके डगमगाते पति को संभाला, उसकी गालियाँ सुनीं, उसे खाना खिलाकर चैन की नींद सुलाया, फिर सन्नाटे में बचा-खुचा खाया और थकान के साथ सो गई...
फिर सबेरे सबसे पहले पांच बजे उठी.....