स्मिता पाटिल को आदरांजलि / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 13 दिसम्बर 2019
13 दिसंबर 1986 को स्मिता पाटिल की मृत्यु हो गई। उस रात मुंबई के एक क्रिकेट स्टेडियम में फिल्म उद्योग की सहायता के लिए धन एकत्रित करने हेतु राज बब्बर और साथियों ने एक अनोखा मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। एक ही मंच पर बारी-बारी से पांच संगीतकारों ने अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया। उस कार्यक्रम में सभी सितारे उपस्थित थे।
13 दिसंबर को उस कार्यक्रम का संचालन करते समय ही राज बब्बर को सूचना मिली कि उनकी पत्नी स्मिता पाटिल की सेहत बेहद खराब है। राज बब्बर अस्पताल पहुंचे। स्मिता पाटिल और उनके बीच आंखों-आंखों में बात हुई और स्मिता पाटिल बब्बर ने नश्वर देह त्याग दी। कुछ दिनों पूर्व ही जन्मे पुत्र का नाम प्रतीक रखा। मृत्यु की गोद में जीवन का प्रतीक।
ज्ञातव्य है कि राज कपूर के सहायक रहे रवींद्र पीपट एक महान पंजाबी भाषा में बनी फिल्म की टीम के सदस्य थे और उन्होंने ही स्मिता पाटिल, राज बब्बर, अमृता सिंह और अमरीश पुरी अभिनीत फिल्म 'वारिस' बनाई थी, जिसे हम स्मिता पाटिल की 'मदर इंडिया' मान सकते हैं। मीना कुमारी की 'पाकीजा' उनकी मदर इंडिया मानी जाती है। दरअसल नरगिस अभिनीत 'मदर इंडिया' महिला कलाकारों के लिए उस स्वप्न की तरह है, जिसके लिए जिया जाता है और मरा भी जा सकता है। 'वारिस' एक संपत्ति की रक्षा की कहानी है। स्मिता पाटिल ने इसमें अविस्मरणीय अभिनय किया था। इस फिल्म में राज बब्बर ने अमृता सिंह अभिनीत पात्र के प्रेमी की भूमिका की। यह पात्र भी युद्ध में स्मिता पाटिल के पक्ष का साथ देता है। 'वारिस' अत्यंत रोचक फिल्म है।
ज्ञातव्य है कि स्मिता पाटिल महाराष्ट्र की राजनीति में भाग लेने वाले परिवार में जन्मी थीं। स्मिता पाटिल ने रेडियो और टेलीविजन पर समाचार पढ़ने का कार्य किया और श्याम बेनेगल ने उन्हें टेलीविजन पर समाचार पढ़ते हुए देखा था। श्याम बेनेगल ने ही स्मिता पाटिल को अभिनय के लिए आमंत्रित किया और इस क्षेत्र में भी वे अत्यंत सफल रहीं। कुछ समय पूर्व ही श्याम बेनेगल, शबाना आजमी को भी प्रस्तुत कर चुके थे। मीडिया हमेशा समकालीन कलाकारों के बीच प्रतिद्वंद्विता रचता है। मीडिया ने शबाना आजमी बनाम स्मिता पाटिल नामक छाया युद्ध की रचना की।
श्याम बेनेगल की फिल्म 'मंडी' में दोनों ने अभिनय किया और मीडिया ने इसे सुर्खियों में बदल दिया। स्मिता पाटिल ने सामाजिक सोद्देश्यता से गढ़ी फिल्मों में अभिनय करके इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी कि प्रकाश मेहरा जैसी मसाला फिल्में करने वाले ने भी स्मिता पाटिल को अमिताभ बच्चन के साथ एक फिल्म में प्रस्तुत किया। स्मिता पाटिल और शबाना आजमी ने हर प्रकार की भूमिकाएं अभिनीत की हैं और सफल भी रही हैं। स्मिता पाटिल ने केतन मेहता की 'मिर्च मसाला' में भी विलक्षण अभिनय किया है। स्मिता पाटिल ने जीवन के हर क्षण को पूरी सार्थकता से जिया। उनमें इतना नैतिक साहस था कि वे शक्तिशाली लोगों के द्वारा किए गए गलत काम की आलोचना भी उनके सामने खड़े रहकर करती थीं। वे कभी किसी से भयभीत नहीं हुईं। अगर आज स्मिता पाटिल हमारे बीच जीवित होतीं तो यकीनन वे सत्ता से सीधे लोहा लेतीं। उनके व्यक्तित्व में कुछ वैसा ही इस्पात था जैसा इंदिरा गांधी में रहा है। रीढ़ में इस तरह की मज्जा वर्तमान में कहीं नजर नहीं आती।
स्मिता पाटिल के पुत्र प्रतीक ने कुछ फिल्मों में अभिनय किया है, परंतु उनके पास अपनी मां की एकाग्रता का अभाव है। स्मिता पाटिल का स्मरण करते हुए हममें वर्तमान के टेलीविजन पर खबर पढ़ने वालों के लिए जिज्ञासा जागती है कि वे इस कदर दरबारी हो गए हैं। ज्ञातव्य है कि विवाद से घिरी कलाकार हंसा वाडकर के जीवन से प्रेरित श्याम बेनेगल की फिल्म 'भूमिका' में स्मिता पाटिल ने अभिनय किया था। राज बब्बर को पहल करना चाहिए कि स्मिता पाटिल बायोपिक बने और कंगना रनोट को भूमिका दी जाए।