स्वतंत्रता / संजय पुरोहित
'आज मैंने समझा, अपने भारत और विदेशी मुल्कों में कितना अन्तर है । हम स्वतंत्र हैं, फ्री हैं, जो चाहे करते हैं । यहाँ विदेश में कितनी पाबन्दियां हैं । यहाँ के लोग आजाद होकर भी अपने इण्डिया के जैसे आजाद नहीं है। मेरे जैसा आदमी तो महीने भर यहाँ रह जाए तो मर ही जाए ।
वो तो ठीक है, पर बता तो सही आज पहले ही दिन विदेश में तुझे इण्डिया इतना ग्रेट कैसे लगने लगा ?
यार, तुझे मालूम है कि गुटखा खाए बगैर मुझसे तो रहा जाता नहीं और मुझे डर था कि यहाँ विदेश में गुटखा, जर्दा मिलेगा या नहीं इसलिये खूब पाउच अपने साथ लेकर आया था। आज घूमने निकला तो समस्या खड़ी हो गई। कहाँ तो पीक थूकूं। कहाँ पाउच फेंकूं। हर वक्त डर लगा रहा कि कहीं कोई पकड़ न ले ।
और इण्डिया में क्या करता था ?
इण्डिया में ?, अरे वो तो अपने खुद का मुल्क है ,चाहे जहाँ थूक दिया, पाउच जहाँ मर्जी फेंक दिया, कोई रोकने वाला नहीं कोई टोकने वाला नहीं
अच्छा ये तो बता आखिर तूने किया क्या ?
करता क्या, इन फिरंगियों को मन ही मन कोसता रहा, पीक निगलता रहा और गुटखा के पाउच इकट्ठे कर वापस होटल में ले आया। अब तू बता, है या नहीं अपना इण्डिया ग्रेट ?