स्वप्न रोॅ समाधि / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
भोलवा पढ़लोॅ-लिखलोॅ नै के बराबर। गाँव केरोॅ बगलोॅ में दिगरवाला रोॅ जमीन पावै छेलै, गरीब-गुरुवा भौली-बटैया करी केॅ जीवन गुजारै छेलै। धीरेॅ-धीरेॅ बटैयावाला सबै धान आरो रब्बि-फसल खावेॅ लागलै आरो जमीनवाला केॅ ठिठुआ देखाय देलकै। 'हल पटक दो, खेत हमारा है।'-यही बात सब भौलीदार कहेॅ लागलै।
जमीनवाला रोॅ एक्को नै चलेॅ लागलै। पहलेॅ तेॅ बटैयावाला धान रब्बि फसल, कुच्छु-कुच्छु दे छेलै। आबेॅ वहू नदारत।
भोलवा नाँखी पाँच युवक तैयार होय गेलै, आरो सभै पहलेॅ गाँमोॅ में मीटिंग बैठलकै आरो कहलकै-है जमीन सड़कोॅ रोॅ किनारी में छै, हेकरा पर कॉलेज बनैलोॅ जाय, गाँमो रोॅ ठुट्ठोॅ-बुच्चोॅ सभै ज्ञानोॅ रोॅ दीप जलैलकै सभै केॅ बढ़िया रास्ता सूझी गेलै। "
है बात जमीनमालिकेॅ जानी गेलै कि आबेॅ है जमीनोॅ पर काबू पैबोॅ मुश्किल छै, कैन्हैं कि पहिलेॅ रोॅ सब गरीब-गुरुआ रोॅ हाथोॅ में ई छेलै, लेकिन आवेॅ तेॅ दोसरे बात होय गेले। आबेॅ तेॅ गुण्डा सब रोॅ हाथोॅ में चल्लोॅ ऐलै। आबेॅ हेकरा सब से छोड़ाना कठिन काम छै।
भोलवा रोॅ दलेॅ कै दफा ढोल पिटवाय केॅ सगरोॅ मीटिंग बैठैलकै। गाँव के सब्भै रोॅ मोॅन हरखित होलै। हेकरा सब केॅ बड़ी बढ़ियाँ सुझलोॅ छै जे निक्कोॅ काम करै में लागलोॅ छै। गरीब-गुरुआ मनोॅ में सोचै छै "हमरोॅ सब बच्चा-बुतरु बगलोॅ रोॅ हाइस्कूलोॅ में पढै छैं मैेट्रिक पास करिये जैतै। बगलोॅ में कालेज होय जैतै तेॅ हेकरा में पढ़तोॅ तेॅ। बादोॅ में पढ़ी-लिखी केॅ बड़ोॅ आदमी बनतोॅ। हमरोॅ दुःख दरिद्री चल्लोॅ जैतेॅ खुशी सेॅ बाल-बच्चा रोॅ जीवन कटतोॅ। साथें-साथें हम्मु खुशी रोॅ किनारा पकड़वोॅ।"
पक्की सड़कोॅ रोॅ किनारी में जे जमीन पावै छै ओकरै में कालेज होतै, गामोॅ के पढ़लोॅ-लिखलोॅ सभै हाँ भरी देलकै आरो चन्दा-चिट्ठा दैलेॅ तैयारी होय गेलै। सभै सोचेॅ लागलै कि है काम बड़ी बढ़िया होतै। गाँव रोॅ आरो पास-पड़ोस रोॅ लड़का-लड़की केॅ बड़ी दूर तक पढै-लिखै में आसानी होय जैतै, सभै केॅ विश्वास होय गेलै कि कालेज आबेॅ होइए जैतै। गाँमोॅ रोॅ मुखिया बड़ी जुझारू आदमी छेलै, बाराहाट के बुलौकोॅ में बहुत मुखिया छेलै मतरकि हिनकोॅ सामनोॅ सब्भै फिसड्डी होय जाय छेलै। बोलै-चालै में, हाकिम-हुकमों से बात करै में, कोय चीज पंचायत में लै में, सब्भै से माहिर छेलै। एम.एल.ए., एम.पी हुनकोॅ सामने बोलै में मात खाय छेलै जादा सें जादा बराबरी में बोलै रोॅ क्षमता राखै छेलै। आपनोॅ बात हाकिम-हुकमोॅ रोॅ सामनें में राखै रोॅ तरीका इलाका भरी में हिनिये जानै छेलै।
मुखिया जी कालेज बनावै में काफी जोर-शोर देलकै। जोशाी भरै में बड़ी बुद्धिमान छेलै। सब्भै के विश्वास हुवै लागलै कि मुखिया जी लागी गेलै तेॅ कालेज होइवे करतै गाँव रोॅ बेरोजगार पढ़लोॅ-लिखलोॅ युवकोॅ में खुशी रोॅ लहर आबेॅ लागलै। "रोजी-रोटी रोॅ भांज लागी जैते, हमरोॅ गाँव-समाज आगु बढ़ी जैतै।" ख्याली पोलाव सब्भै पकावै लागलेॅ।
है पंचायतो रोॅ गरीबोॅ वास्तेॅ मुखिया जी लड़ैवाला छेलै। सब मुठकुनोॅ रहि छेलै। एक्कोबार कोय बातोॅ पर हाँक लगावै तेॅ पंचायत भरी रोॅ गरीब-गुरुआ हाजिर। मुखिया जी गाँव रोॅ लड़ाय-झगड़ा केॅ बाँका थाना आकि फाँड़ी नै जावैलेॅ दै छेलै। हिनके कारण जमीन पर कॉलेज बनै के नक्शो तैयार हुवेॅ लागलै, जे देखी भोलवा साथेॅ पचीसो लोग, मुखिया सें अलग हुवेॅ लागलै। असल में यै सिनी ई कॉलेज के बहाना सें जमीन हड़पै लेॅ चाहै छेलै। जमीन के मालिकोॅ सेॅ जमीन तेॅ छिनइये गेलोॅ छेलै, आबेॅ यै पर आपनोॅ-आपनोॅ कब्जा के सपनो देखी रेल्होॅ छेलै। मतरकि मुखिया रहतेॅ है सपना पूरा केना होतियै। आखिर मुखिया रोॅ आँखी में तेॅ वहेॅ गरीबोॅ रोॅ सपना नाँची रेल्होॅ छेलै-कालेज होतै, बच्चा-बुतरू पढ़तै आरो दुक्खोॅ रोॅ दिन टरी जैतै।
दुखिया सब रोॅ दुख-दर्द तेॅ नै टरलै, हों एकरोॅ सिनी के सपना ज़रूरे टरी गेलै।
शाम उतरी रैल्होॅ छेलै। सँझवासी जरावै वास्तेॅ गाँव के औरत सिनी सुरफुर हुवेॅ लागलोॅ छेलै कि हठाते धुप्प अन्हार पसरी गेलै। गाँव के जोॅन पीपर गाछी के नीचेॅ पंचायत बैठेॅ छेलै, ओकरै सेॅ एक बाँस दूर केकरोॅ एक चीख अन्हारोॅ में फाड़ी-फाड़ी चिकरेॅ लागलोॅ छेलै ' अरे दौड़ियेॅ रे, सब्भे आपन्होॅ गान्ही जी केॅ मारी देलकौ रे। अरे आपनोॅ मुखिया जी मरी गेलोॅ रे, गाँव भरी ऊअन्हार में दौड़ी पड़लोॅ छेलै जेना चानन में बोहोॅ उमड़ी ऐलोॅ रहेॅ। सब कनमुँहो ऊरात केकरो घरोॅ में संझवाती नै जललै। होॅ दूसरोॅ दिन रात में जबेॅ नदी के कछारी में मुखिया जी रोॅ सारा जललै तेॅ सौसे गाँव में अन्हार आरो भरी गेलै। ऊअन्हार आइयो ताँय गाँव रोॅ गरीब-गुरुआ के बीचोॅ सेॅ नै गेलोॅ छैं हों, जहाँ पर कॉलेज खुलै रोॅ सपना गरीब-गुरुआ मुखिया साथें देखलेॅ छेलै, वहाँ पर पचीसी पक्का रोॅ बड़ोॅ-बड़ोॅ मकान खड़ा होय गेलोॅ छै, जेॅ में दिन-रात चाँद-सुरूज रोॅ प्रकाश बरतेॅ रहै छै।