स्वयं प्रकाश / परिचय
20 जनवरी 1947 को इंदौर में जन्मे स्वयं प्रकाश अपनी कहानियों और उपन्यासों के लिये विख्यात हैं। वह अब तक पांच उपन्यास लिख चुके हैं जबकि उनके नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सूरज कब निकलेगा, आएँगे अच्छे दिन भी, आदमी जात का आदमी (सभी कहानी-संग्रह ) वरिष्ठ कथाकार स्वयं प्रकाश को प्रेमचंद की परंपरा का महत्वपूर्ण कथाकार माना जाता है। इनकी कहानियों का अनुवाद रूसी भाषा में भी हो चुका है। पहल सम्मान, वनमाला सम्मान, राजस्थान साहित्य अकादमी सम्मान। हाल ही में वरिष्ठ कथाकार स्वयं प्रकाश को वर्ष 2011 के प्रतिष्ठित ‘आनंद सागर कथाक्रम सम्मान’ से नवाजा गया । यह सम्मान हर वर्ष कथा लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले लेखक को दिया जाता हैं ।
अपने समकालीन कथाकारों-कवियों-संस्कृतिकर्मियों पर केन्द्रित उनके रेखाचित्रों के संकलन 'हमसफ़रनामा' के लिए स्वयं प्रकाश के गद्य और चित्रण की बड़ी चर्चा हुई है । इससे पहले स्वयं प्रकाश को राजस्थान साहित्य अकादमी के रंगे राघव पुरस्कार तथा पहल सम्मान से नवाजा जा चुका है। मूलत: राजस्थान (अजमेर) के निवासी स्वयं प्रकाश के कथा साहित्य में वैज्ञानिक सोच और सहजता का अनूठा और विरल संगम है ।
"अपनी अधिकतर रचनाओं में वे मध्यमवर्गीय जीवन के विविध पक्षों को सामने लाते हुए उनके अंतर्विरोधों, कमजोरियों और ताकतों को कुछ इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि वे हमारे अपने अनुभव संसार का हिस्सा बन जाते हैं । साम्प्रदायिकता एक और ऐसा इलाका है जहां स्वयं प्रकाश की रचनाशीलता अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रदर्शित होती है। स्वयं प्रकाश की खिलंदड़ी भाषा और अत्यधिक सहज शैली का निजी और मौलिक प्रयोग उन्हें हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार बनाता हैं । "