स्वराज क्या है? / हिंद स्वराज / महात्मा गांधी
पाठक : कांग्रेस ने हिंदुस्तान को एक-राष्ट्र बनाने के लिए क्या किया, बंग-भंग से जागृति कैसे हुई, अशांति और असंतोष कैसे फैले, यह सब जाना। अब मैं यह जानना चाहता हूँ कि स्वराज के बारे में आपके क्या ख्याल है। मुझे डर है कि शायद हमारी समझ में फरक हो।
संपादक : फरक होना मुमकिन है। स्वराज के लिए आप हम सब अधीर बन रहे हैं, लेकिन वह क्या है इस बारे में हम ठीक राय पर नहीं पहुँचे हैं। अंग्रेजों को निकाल बाहर करना चाहिए, यह विचार बहुतों के मुँह से सुना जाता है; लेकिन उन्हें क्यों निकालना चाहिए, इसका कोई ठीक ख्याल किया गया हो ऐसा नहीं लगता। आपसे ही एक सवाल मैं पूछता हूँ। मान लीजिए कि हम माँगते हैं उतना सब अंग्रेज हमें दे दें, तो फिर उन्हें (यहाँ से) निकाल देने की जरूरत आप समझते हैं?
पाठक : मैं तो उनसे एक ही चीज माँगूँगा। वह है : मेहरबानी करके आप हमारे मुल्क से चले जाएँ। यह माँग वे कबूल करें और हिंदुस्तान से चले जाए, तब भी अगर कोई ऐसा अर्थ का अनर्थ करें कि वे यहीं रहते हैं, तो मुझे उसकी परवाह नहीं होगी। तब फिर हम ऐसा मानेंगे कि हमारी भाषा में कुछ लोग 'जाना' का अर्थ 'रहना' करते हैं।
संपादक : अच्छा, हम मान लें कि हमारी माँग के मुताबिक अंग्रेज चले गए। उसके बाद आप क्या करेंगे?
पाठक : इस सवाल का जवाब अभी से दिया ही नहीं जा सकता। वे किस तरह जाते हैं, उस पर बाद की हालत का आधार रहेगा। मान लें कि आप कहते हैं उस तरह वे चले गए, तो मुझे लगता है कि उसका बनाया हुआ विधान हम चालू रखेंगे और राज का कारोबार चलाएँगे। कहने से ही वे चले जाएँ तो हमारे पास लश्कर तैयार ही होगा, इसलिए हमें राजकाज चलाने में कोई मुश्किल नहीं आएगी।
संपादक : आप भले ही ऐसा मानें, लेकिन मैं नहीं मानूँगा। फिर भी मैं इस बात पर ज्यादा बहस नहीं करना चाहता। मुझे तो आपके सवाल का जवाब देना है। वह जवाब मैं आपसे ही कुछ सवाल करके अच्छी तरह दे सकता हूँ। इसलिए कुछ सवाल आपसे करता हूँ। अंग्रेजों को क्यों निकालना चाहते हैं?
पाठक : इसलिए की उनके राज-कारोबार से देश कंगाल होता जा रहा है। वे हर साल देश से धन ले जाते हैं। वे अपनी ही चमड़ी के लोगों को बड़े ओहदे देते हैं, हमें सिर्फ गुलामी में रखते हैं, हमारे साथ बेअदबी का बरताव करते हैं और हमारी जरा भी परवा नहीं करते।
संपादक : अगर वे धन बाहर न ले जाएँ, नम्र बन जाएँ और हमें बड़े ओहदे दें, तो उनका रहने में आपको कुछ हर्ज है?
पाठक : यह सवाल ही बेकार है। बाघ अपना रूप पलट दे तो उसकी भाईबंदी से कोई नुकसान है? ऐसा सवाल आपने पूछा, यह सिर्फ वक्त बरबाद करने के खातिर ही। अगर बाघ अपना स्वभाव बदल सके, तो अंग्रेज लोग अपनी आदत छोड़ सकते हैं। जो कभी होने वाला नहीं है वह होगा, ऐसा मानना मनुष्य की रीत ही नहीं हैं।
संपादक : कैनेडा को जो राजसत्ता मिली है, बोअर लोगों को जो राजसत्ता मिली है, वैसी ही हमें मिले तो?
पाठक : यह भी बेकार सवाल है। हमारे पास उनकी तरह गोलाबारूद हो तब वैसा जरूर हो सकता है। लेकिन उन लोगों के जितनी सत्ता जब अंग्रेज हमें देंगे तब हम अपना ही झंडा रखेंगे। जैसा जापान वैसा हिंदुस्तान। अपना जंगी बेड़ा, अपनी फौज और अपनी जाहोजलाली होगी। और तभी हिंदुस्तान का सारी दुनिया में बोलबाला होगा।
संपादक : यह तो आपने अच्छी तस्वीर खींची। इसका अर्थ यह हुआ कि हमें अंग्रेजी राज्य तो चाहिए, पर अंग्रेज (शासक) नहीं चाहिए। आप बाघ का स्वभाव तो चाहते हैं, लेकिन बाघ नहीं चाहते। मतलब यह हुआ कि आप हिंदुस्तान को अंग्रेज बनाना चाहते हैं। और हिंदुस्तान जब अंग्रेज बन जाएगा तब वह हिंदुस्तान नहीं कहा जाएगा, लेकिन सच्चा इंग्लिस्तान कहा जाएगा। यह मेरी कल्पना का स्वराज नहीं हैं।
पाठक : मैं तो जेसा मुझे सूझता है वैसा स्वराज बतलाया। हम जो शिक्षा पाते हैं वह अगर कुछ काम की हो, स्पेंसर, मिल बगैरा महान लेखकों के जो लेख हम पढ़ते हैं वे कुछ काम के हों, अंग्रेजों की पार्लियामेंट पार्लियामेंटों की माता हो, तो फिर बेशक मुझे तो लगता है कि हमें उनकी करनी चाहिए; वह यहाँ तक कि जैसे वे अपने मुल्क में दूसरों को घुसने नहीं देते वैसे हम भी दूसरों को न घुसने दें। यों तो उन्होंने अपने देश में जो किया है, वैसा और जगह अभी देखने में नहीं आता। इसलिए उसे तो हमें अपने देश में अपनाना ही चाहिए। लेकिन अब आप अपने विचार बतलाइए।
संपादक : अभी देर है। मेरे विचार अपने आप इस चर्चा में आपको मालूम हो जाएँगे। स्वराज को समझना आपको जितना आसान लगता है उतना ही मुझे मुश्किल लगता है। इसलिए फिलहाल मैं आपको इतना ही समझाने की कोशिश करूँगा कि जिसे आप स्वराज कहते हैं वह सचमुच स्वराज नहीं है।