स्वर्णिम भावालोक से तेजोमंडित कृति- ‘तुम सर्दी की धूप’ / रश्मि विभा त्रिपाठी

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काव्य-प्रदीप्ति / 'तुम सर्दी की धूप' / स्वर्णिम रूप!

मन रूपी आकाश पर भाव रूपी सूर्य के उद्गम के मंजुल स्वरूप की परिणति 'तुम सर्दी की धूप' संग्रह एक अनुपम काव्य कृति है जो भावों का भव्य आलोक समेटे हुए है।

साहित्य संसार में एक प्रख्यात नाम हैं आदरणीय श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी, जिनकी साहित्यिक उपलब्धियों की ख्याति स्वदेश ही नहीं वरन विदेश में भी फैली हुई है। इटली के विश्व पुस्तक मेले में उनकी रचनाओं का प्रदर्शन, राष्ट्रीय स्तर पर देश के विभिन्न स्थानों के अतिरिक्त टैग टीवी और-सी एन कैनेडा से उनकी रचनाओं का प्रसारण उनकी सतत साहित्यिक साधना के अवदान का ही प्रतिफल है। शिक्षा-जगत में पूर्ण निष्ठा से अपनी सेवाएँ देने के साथ-साथ वह साहित्य जगत में भी पूरे मनोयोग से अनवरत सेवारत रहे हैं। विद्यालयी पाठ्यक्रम में शामिल उनकी पुस्तकें वर्तमान भारत के भावी भविष्य के विकास की नींव का भली-भाँति सुदृढ़ीकरण कर रही हैं।

स्व-प्रशंसा, स्व-प्रचार से मीलों-मील दूर सदा साहित्य-साधना में अविराम रत आदरणीय श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी की रचना-प्रक्रिया विविध विधाओं (कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास, निबंध, व्यंग, आलोचना, हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका, माहिया, गीत एवं बाल साहित्य) में प्रतिफलित हुई है। उनकी काव्य-शैली अत्यंत विशिष्ट है व उनकी गहन कल्पनाशीलता ने ही उनकी कृतियों को प्रतिष्ठा प्रदान की है। उनका भाषा सौष्ठव एक जीवंत वातावरण आँखों के सम्मुख उपस्थित करता है। अपनी कलम को बड़ी ही सटीकता, गम्भीरता से चलाने में वे पूर्णत: पारंगत हैं, सिद्धहस्त हैं।

साहित्य के साथ-साथ कवि तकनीक की भी गहन जानकारी रखते हैं। सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ• कविता भट्ट 'शैलपुत्री' जी ने अपने अनुशीलन ग्रंथ 'गद्य-तरंग' में उनके इस गुण के बारे में लिखा है-"जिस आयु वर्ग में आप हैं, उस आयु में साहित्य के साथ तकनीक का सम्मिश्रण बहुत कम ही देखने को मिलता है। आप जितनी सुन्दरता से भाषा के विविध पक्षों पर अधिकार रखते हैं, उतनी ही तीव्र और गहन जानकारी कम्प्यूटरीकृत गतिविधियों पर भी रखते हैं। यह सुखद और आश्चर्यजनक है कि आपकी तकनीकी सक्रियता के फलस्वरुप ही प्रत्यक्ष रूप से हिन्दी चेतना (अंतर्राष्ट्रीय वेब तथा मुद्रित) , लघुकथा डॉट कॉम, त्रिवेणी, हिन्दी हाइकु व सहज साहित्य इत्यादि जैसी लोकप्रिय तथा परोक्ष रूप से अनेक साहित्यिक वेबसाइट्स व पत्रिकाएँ नैरंतर्य व प्रवाह के साथ गतिमान हैं। साहित्य तथा तकनीकी कर्म का ऐसा मणिकांचन संयोग इस पीढ़ी के साहित्यकारों में वस्तुतः स्तुत्य है।"

साहित्य सेवा में निस्वार्थ भाव से लीन, निस्वार्थ ही सभी को प्रेम करने वाले, किसी को पीड़ा में देख स्वयं अतिशय व्यथित हो जाने वाले, दूसरों को सदैव आगे बढ़ाने की भावना से ओतप्रोत, यथाशक्ति सबका मार्गदर्शन करने वाले निश्चलमना, उदार हृदय कवि श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी ने 'तुम सर्दी की धूप' संग्रह में प्रेम-अनुराग का मधु-भाव पन्नों पर उड़ेला है, जिसका प्रवाह चित्त को मुग्ध करने वाला है।

वर्ष 2018 में अपनी इस अनुपम कृति को पाठकवृंद के हाथों में सौंपने वाले साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी ने अनेक सोम-कृतियाँ साहित्य-जगत को उपहारस्वरूप दी हैं, जिसका रसास्वादन पाठक को अभिभूत कर देता है। इस अनूठे काव्य-रत्न में कवि ने स्वर्णिम भावों की आभामय अभिव्यंजना की है।

हिन्दी साहित्य के सूर्य श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमान्शु' जी के 'तुम सर्दी की धूप' संग्रह में प्रेम से सुवासित सुन्दर दोहे, मुक्तक, हाइकु, ताँका, माहिया, कविता एवं क्षणिकाओं का उजाला बिखरा हुआ है। प्रेम ही नहीं बल्कि इतर भावों का आलोक भी 'तुम सर्दी की धूप' में जगमगाता है, जिसमें जीवन के उतार-चढ़ाव, मानवीय संवेदनाएँ, सामाजिक मूल्य, समाज का कुप्रबन्ध, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सम्बन्धों की प्रासंगिकता एवं मानव-व्यवहार के झलकते विभिन्न रंग प्रकाशवान हैं।

अनंत, असीम प्रेम की परिभाषा को सीमित शब्दावली में बाँध देना अत्यंत ही कठिन कार्य है परंतु भाषा पर पैनी पकड़ रखने वाले कवि की दिग्विजयी कलम ने इसमें पूर्णत: विजय पाई है, साथ ही यह कठिन कार्य पूरा करने में उन्हें कितना परिश्रम करना पड़ा, इसकी व्याख्या भी उन्होंने की है। वह स्वयं स्वीकार करते हैं-

मन में उमड़े भाव से, शब्द मानते हार।

प्रेम-भाव अतिरेक में, भटकें बारम्बार॥ (पृष्ठ-14)

प्रेम के स्वरूप को चित्रित करना, उसे शब्दों के माध्यम से परिभाषित करना वस्तुतः अत्यंत कठिन है। कवि कहते हैं-

प्रेम क्या है

मुझको नहीं पता

तेरे न होने का मतलब

प्राण लापता

इतना जानता हूँ (पृष्ठ-122)

इस जीव-जगत की यह अकाट्य वास्तविकता है एवं आद्योपांत सभी इस बात पर एकमत रहे हैं कि प्रेम के अभाव में जीवन पूर्णत: नीरस हो जाता है किन्तु जहाँ प्रेम की उपस्थिति हो, अनुराग की अतिवृष्टि हो, वहाँ श्वास-मंजरी पुन: खिल उठती है और प्राणों में जीने की चाह जागृत हो उठती है, ज्यों कोई संजीवनी हो प्रेम।

भावों की सूखी नदी, तट भी हैं हलकान।

दो बूँदें दो प्यार की, बच जाएँगे प्रान॥ (पृष्ठ-42)

कवि हाइकु के माध्यम से प्रेम की विलक्षणता और मनुष्य के जीवन में प्रेम की प्राथमिकता पर बल देते हुए कहते हैं-

जीवन की लू

तपी थी मन की भू

नेह ने सींची। (पृष्ठ-130)

परहित अर्थात परोपकार मानव सभ्यता के विकास के आरम्भ से ही यह महान गुण अपने अस्तित्व में अहर्निश रहा है। प्रकृति अनादि काल से दूसरों के लिए ही अपना सर्वस्व न्योछावर करती चली आ रही है। परहित की भावना के कारण ही मानव को पृथ्वी पर अन्य जीवों से भिन्नता की श्रेणी में रखा गया है अन्यथा अपनी उदरपूर्ति हेतु जीने वाला मनुष्य पशु की भाँति ही है।

कवि की कविता मानव जाति को प्रेम व परमार्थ का संदेश देती है-

मन की खाई को पार करें।

परहित सोचें और प्यार करें।

जब इस जग से जाना हो,

तब न मन में पछताना हो। (पृष्ठ-113)

कवि का जीवन परोपकार का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। वह अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहते, केवल दूसरों को सुख बाँटने की चाह रखते हैं। नित्य प्रार्थना में वह प्रतिपल दूसरों के सुख और आनन्द की ही कामना करते हैं-

यही कामना एक है, मुस्कानें हों द्वार।

ताप कभी आएँ नहीं, बरसे केवल प्यार॥ (पृष्ठ-29)

वह ईश्वर से निवेदन करते हैं-

हे प्रभु

जीवन में मुझको

यदि चाहो कुछ देना,

जो मेरे अपने हैं

वे ही जीवन के सपने हैं

उनके सारे दुख हर लेना

तन नीरोग

मन शीतल कर देना (पृष्ठ-126)

साधारण जनमानस की व्यथा को व्यक्त करती उनकी 'आम आदमी' रचना बहुत ही मर्मस्पर्शी है कि किस प्रकार एक आम आदमी जीवन के झंझावात से क्षण प्रति क्षण जूझता रहता है, दैनंदिन सामाजिक परिस्तिथियाँ उसे किस तरह से झकझोरती हैं-

आम आदमी-

जिसे हर किसी ने

आम समझकर चूसा है।

आम आदमी-

जिसके कन्धों पर चढ़कर

भवन बनते हैं

जिसके कन्धों पर चढ़कर लोग

सत्ता की कुर्सी पर टँगते हैं।

आम आदमी-

जिसका अंतिम कौर

गिद्ध, कौवे और चील

जब चाहे झपटते हैं,

रिरियाने पर ऊपर से और डपटते हैं।

आम आदमी-

चौराहों पर

बेवजह मार खाता है

शामत किसी की आती है, पर

वह अचानक मारा जाता है। (पृष्ठ-109)

दो जून की रोटी के लिए अपने घर-परिवार को छोड़कर परदेस में जी रहे मजदूर की स्थिति का वर्णन बहुत ही मार्मिक है-

हरियाली पहने हुए, खेत देखते राह।

मुझे शहर में ले गया, पेट पकड़कर बाँह॥ (पृष्ठ-52)

वेदों में पूजनीय नारी की इस समाज में कैसी दशा है, निम्न दोहे में उसके जीवन-संघर्ष का सम्पूर्ण चित्रण समाहित है-

नारी की पूजा कहाँ, पढ़ी नहीं है पीर।

कोई भी हो युग रहा, पापी खींचे चीर॥ (पृष्ठ-16)

कविता मात्र शब्दों से पूरा गया कोई मकड़जाल नहीं, बल्कि आन्तरिक और बाह्य जगत की समस्त घटनाओं का एक सजीव चित्रण है। 'हिमांशु' जी की रचनाएँ ऐसा जीवंत दृश्य प्रस्तुत करती हैं, जिन्हें पढ़कर ऐसी प्रतीति होती है कि जैसे सब कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा हो।

उनकी यही खूबी उन्हें काव्य-जगत में अग्रणी करती है। उनकी समस्त कृतियाँ विकसित कलापक्ष, सुदृढ़ भावपक्ष एवं श्रेष्ठ मानवीकरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। शीर्ष पर होने के बावजूद भी कवि अत्यंत सरलमना हैं, उनकी यही विशेषता उन्हें औरों से अति विशिष्ट बनाती है।

अपनी काव्य-यात्रा में वह सदैव गतिमान रहें और स्व-भावों के दीप से कृतियों का ओज बिखेरकर अनुगामियों का पथ-प्रदर्शन करते रहें। विविध विधाओं से दीप्तिमान इस उत्कृष्ट काव्य-संग्रह के लिए आदरणीय श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी को मेरी अनंत शुभकामनाएँ।

तुम सर्दी की धूप (काव्य-संग्रह) : श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' पृष्ठ-139, मूल्य-280 रुपये, ISBN: 978-93-87622-74-6, प्रथम संस्करण-2018, प्रकाशक-अयन प्रकाशन 1 / 20, महरौली, नई दिल्ली-110 030