स्वागत-रोमन शैली / ऐपुलियस
प्रथम शताब्दी के अन्तिम चरण में रोमन साहित्य में दो शानदार कृतियों की वृद्धि हुई : एक थी ऐपुलियस की पुस्तक ‘सुनहरा गधा’ और दूसरी पेट्रोनियस की पुस्तक ‘सेटिरिकोन’। इन दोनों कृतियों का साहित्यिक स्तर अपने काल की अन्य कृतियों से कहीं ऊँचा है। प्रचलित संस्कृति ही इनका आधार था, जिसने इन्हें एकदम जीवन्त बना डाला है।
प्राचीन यूनान में बड़े बेहूदा मिजाज का एक आदमी रहता था। वह अपनी पत्नी को ताले में बन्द करके रखता था, ताकि कोई भी आदमी उससे मिल-जुल न सके। एक दिन उसे किसी काम से दूसरे शहर जाना पड़ा। जाने से पहले उसने एक जनखे, मिरमेक्स को बुलवाया। “सुन,” उसने जनखे से कहा, “अगर कोई आदमी गली में से गुजरते हुए मेरी बीवी को अँगुली से भी छू देगा, तो मैं तुझे खोह में जंजीरों से जकड़वा दूँगा। और तुझे भूखा मार डालूँगा।” इतना कहकर शान्त मन से वह यात्रा पर चल दिया।
मिरमेक्स मालिक की धमकी से डर गया। उसने मालिक की बीवी अरीती को ताले में बन्द कर दिया। वह सारा दिन भीतर बैठी ऊन कातती रहती। शाम को जब कभी उसे घूमने जाना होता, तो मिरमेक्स उसके साथ जाता और उसके पल्लू को थामे रहता।
अब, अरीती की खूबसूरती किसी से छुपी नहीं थी। फिलेसिटेरस नाम का एक युवक तो उसके पीछे दीवाना-सा था। उसने एक दिन मिरमेक्स को अकेले में पकड़ लिया और अपने दिल की बात उससे कह डाली। उसने कहा कि अरीती के प्यार में मैं झुलस रहा हूँ। “तुम्हारे लिए डर की कोई बात नहीं है।” वह बोला, “बस, मैं तो रात को घर के भीतर जाऊँगा। और थोड़ी देर बाद ही लौट आऊँगा।” तब उसने मिरमेक्स को सोने के कुछ चमचमाते सिक्के दिखाते हुए कहा, “ये सब तुम्हें मिल सकते हैं।”
इस सुझाव से वह गुलाम इस कदर बौखला गया कि डर के मारे भाग खड़ा हुआ। उस रात, स्वर्ण और कर्तव्य के दो पाटों के बीच पिसता हुआ, वह सो नहीं पाया। लेकिन सवेरा होने तक स्वर्ण की जीत हो चुकी थी। वह अपनी मालकिन के पास भागकर गया और उसने फिलेसिटेरस का सन्देश कह सुनाया। बरसों ताले में बन्द रही होने के कारण अरीती तो ऐसे किसी मौके की तलाश में ही थी। उसने सुझाव स्वीकार कर लिया। फिर मिरमेक्स दौड़ा-दौड़ा गया और फिलेसिटेरस को उसने बताया कि मालकिन उसके स्वागत के लिए तैयार है। मिरमेक्स को स्वर्ण-मुद्राएँ तुरन्त मिल गयीं।
उसी रात वह फिलेसिटेरस को अरीती के कमरे में ले गया। पर आधी रात के वक्त, मुख्य द्वार पर जोर से दस्तक होने लगी। अरीती का पति अचानक लौट आया था। जब दस्तक का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, तो वह चिल्लाने लगा और एक पत्थर से दरवाजे को पीटने लगा। गुलाम इस कदर डर गया कि मुश्किल से बोला कि चाबी खो गयी है और अँधेरे में मिल नहीं रही है। इस बीच फिलेसिटेरस भी अरीती की बाँहों से निकलकर खड़ा हो गया। गुलाम ने जैसे ही द्वार खोला और मालिक अन्दर आया, वैसे ही फिलेसिटेरस अँधेरे का फायदा उठाकर वहाँ से खिसक गया, पर दुर्भाग्य से अपने जूते वहीं छोड़ गया।
पति जब सुबह सोकर उठा, तो उसे अपने बिस्तर के नीचे किसी अजनबी के जूते दिखाई दिये। सच्चाई समझते उसे देर नहीं लगी। उसने फौरन जूतों को अपनी जेबों में ठूँस लिया और कहने लगा कि वह बीवी के प्रेमी को जरूर ढूँढ़ निकालेगा। उसने हुक्म दिया कि मिरमेक्स के हाथ उसकी पीठ पर बाँध दिये जाएँ। तब वह उसे खोह की तरफ ले चला।
भाग्यवश ऐसा हुआ कि फिलेसिटेरस उधर से आ निकला। पूरा दृश्य देखकर उसे अपनी गलती का भान हुआ। उसने तुरन्त एक तरकीब सोची और भागकर मिरमेक्स के पास पहुँचा। “बदमाश!” वह चिल्लाया, “मुझे उम्मीद है, तेरा मालिक तुझे ठीक ही सजा देगा...मैं तुझे खूब अच्छी तरह जानता हूँ। तू ही वह चोर है, जिसने कल शाम हमाम के पास से मेरे जूते चुरा लिये थे!”
इस बात का पति पर फौरन असर हुआ। मिरमेक्स को एक लात जमाते हुए वह बोला, “अरे गुलाम! अगर तू अपनी जिन्दगी के बाकी दिन किसी गुफा में नहीं गुजारना चाहता, तो इन महाशय के जूते फौरन वापस कर दे!” उसने जूते अपनी जेब से निकाले और जनखे के मुँह पर दे मारे और फिलेसिटेरस से भी माफी माँग ली। “मैं खूब समझता हूँ, श्रीमान,” फिलेसिटेरस बोला, “आजकल के गुलाम भरोसे के लायक हैं ही नहीं!”
पति सन्तुष्ट था। वह तुरन्त अपनी पत्नी से मिलने घर चल दिया। ‘आखिर वह भी तो इतने दिनों से उसके इन्तजार में होगी’ - उसने सोचा।