स्वानंद के गीत, कृष्णा पाटिल के पहाड़ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 16 मार्च 2013
स्वानंद किरकिरे का सफल और सार्थक फिल्म 'काई पो छे' में थीम गीत है 'रूठे ख्वाबों को मना लेंगे, कटी पतंगों को थामेंगे, सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का मांजा, रिश्ते पंखों को हवा देंगे, रिश्ते दर्द को दवा देंगे, रिश्ते जान भी मांगें तो कुरबान कर देंगे...।' यह गीतकार व्यक्तिगत जीवन में भी अति संवेदनशील हैं और दर्द के रिश्ते निभाना भी जानते हैं। अपनी कामयाबी का लाभ अगर किसी निस्सहाय साहसी को मिले तो जी-जान से मदद के काम में जुट जाते हैं। १५ मार्च की शाम स्वानंद किरकिरे, संगीतकार शांतनु मोइत्रा, गायक शान और हास्य कलाकार विक्रम सरया मिलकर एक अभिनव मनोरंजन कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसकी सारी आय तेईस वर्षीय कृष्णा पाटिल को दी जाएगी, जो 'के2' पहाड़ पर चढऩा चाहती हैं और इसके पूर्व मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में वे एवरेस्ट चढ़ चुकी हैं। 'के2' सबसे कठिन पर्वत माना जाता है। 8611 मीटर ऊंचा है। यद्यपि यह एवरेस्ट से कम ऊंचा है, परंतु इसकी चढ़ाई दुर्गम है। इस पर चढऩे के लिए उन्हें चीन और पाकिस्तान से भी आज्ञा लेनी होगी। इस पहाड़ पर पाकिस्तान, चीन और भारत का साझा अधिकार है।
ज्ञातव्य है कि मुंबई की निवासी, जहां के लोग चंद फीट ऊंचे मलाबार और पाली हिल्स को भी पहाड़ कहते हैं, कृष्णा कमसिन आयु से ही पहाड़ों पर चढ़ती रही हैं। दरअसल, शिखर पर पहुंचना मनुष्य की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है और मानवीय साहस तो पहाड़ों को बौना साबित कर देता है। पहाड़ मनुष्य की चेतना में हमेशा ऊंचाई और असंभव का प्रतीक रहे हैं, इसीलिए कहावत बनी कि 'अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे' और एक कहावत यह भी है कि 'मोहम्मद साहेब पहाड़ के पास न जाएं तो पहाड़ उनके पास आ जाता है।' दरअसल, मनुष्य की प्रयोगशाला में जन्मी भाषा की कोई सीमा नहीं है। आकाश भी उसके सामने लघु है। भाषा मनुष्य की ऐसी खोज है, जो ईश्वर के आविष्कारों के समकक्ष है।
स्वानंद किरकिरे और उनके मित्रों का यह दल भारत के अनेक शहरों में कार्यक्रम प्रस्तुत करके उसका लाभ साहसी लोगों को उनकी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए देना चाहते हैं और इसी जज्बे के कारण उन्हें हक है कि वे लिख सकें कि रिश्ते दर्द को दवा देंगे, रिश्तों का उलझा मांजा सुलझा लेंगे। स्वानंद ग्रीक दार्शनिक लांजाइनस को सत्य सिद्ध करना चाहते हैं कि अच्छा मनुष्य ही अच्छा कवि हो सकता है। कृष्णा पाटिल लाख पहाड़ों के शिखर छू लें, परंतु नेता के बौनेपन का कोई इलाज नहीं है। कवि रिश्तों का मांजा सुलझाता है और नेता तथा मठाधीश मनुष्य के रिश्तों को उलझाते रहते हैं। यही उनका धंधा है और आदर्श के गीत गाना कवि का धर्म है।
कुछ वर्ष पूर्व इसी तरह के कार्यक्रम करने का सुझाव सलमान खान ने शाहरुख तथा आमिर को दिया था, परंतु अपनी ग्रंथियों में उलझे लोग किसी और बहस में बह गए, परंतु वह काम आज भी हो सकता है। अगर पाकिस्तान की सरकार इस तरह के कार्यक्रम को स्वीकृति दे तो वहां के युवा अपना सारा धन इन चहेतों पर लुटा देंगे। बहरहाल, फिल्म उद्योग के सभी कलाकार और संगीतकार अपना थोड़ा-सा समय राष्ट्र निर्माण को दे सकते हैं। इस परोपकार से उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता भी बढ़ेगी। सलमान खान का ट्रस्ट यह काम कर रहा है और शायद ये दुआओं का ही असर है कि तीन दिन पूर्व अमेरिका के अस्पताल में उनकी जांच रिपोर्ट उन्हें लगभग निरोग बता रही है।
बहरहाल, देश में अनेक संस्थाएं सहायता का काम कर रही हैं और मनुष्य के दर्द को मनुष्य बांट भी रहा है। सारे नैराश्य के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी अच्छे मनुष्यों की संख्या बुरे लोगों से कहीं अधिक है। सारे अच्छे किसी एक मंच पर नहीं हैं और बुरे एक-दूसरे से गहरे रूप में जुड़े हुए हैं। एक राजनीतिक दल का नेता विपक्ष के दुष्कर्म पर परदा ालने का प्रयास करता है, क्योंकि वह जानता है कि जब विरोधी सत्ता पक्ष में आएंगे तो उसकी रक्षा करेंगे। यह खेल सदियों से इसी तरह जारी है।
बहरहाल, स्वानंद किरकिरे और उनके साथी अपने दल को 'बावरा' कहते हैं। दुनियादारी की क्षुद्रता से ऊपर बावरे लोगों में ही हौसला होता है कुछ कर गुजरने का। कुछ इसी आशय से निदा फाजली ने भी लिखा था कि 'सोच-समझ वालों को मौला थोड़ी नादानी दे।'