स्वार्थ और लोभ की जुड़ाई / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
स्वार्थ और लोभ की जुड़ाई
प्रकाशन तिथि : 28 मई 2013


ओमपुरी सीमेंट की एक विज्ञापन फिल्म में कुछ मसीहा के अंदाज में कहते हैं कि यह एयरपोर्ट, फ्लाईओवर और गगनचुंबी इमारतों की मजबूती की गारंटी फलां कंपनी का सीमेंट देता है। एक स्कूल इमारत को ध्वस्त करके पांच सितारा होटल बनाने वाले स्कूल की इमारत को तोड़ नहीं पाते, बच्चा कहता है कि फलां सीमेंट से बना स्कूल नही टूटेगा। अमिताभ बच्चन भी एक सीमेंट की मजबूती का विज्ञापन करते हैं। दरअसल, हमारे इस अनोखे कालखंड में सीमेंट की मजबूती के नए प्रमाण सामने आ रहे हैं। इस भ्रष्टाचार के स्वर्णकाल में फेविकोल का महत्व और सीमेंट के उपयोग के नए तरीके सामने आ रहे हैं। नैतिक मूल्यों के अभाव की जमीन पर बनी इमारतों की दीवारों में दरारें पैदा हो जाने पर उनमें सीमेंट और फेविकोल लगाने से भवन टिका रहता है। टूटती-गिरती खिसकती, रेंगती सरकारें भी फेविकोल के उपयोग से टिकी रहती हैं। सिनेमा में फेविकॉल से टूटे हुए दिलों को जोडऩे की बात भी तुकबंद ने की है। आजकल शायर फिल्मी गीत नहीं लिखते, शब्दों के फेविकोल से तुकबंद सुपरहिट गीत ई-मेल कर देता है और कंप्यूटरजनित ध्वनियों से संगीत भी बन जाता है। श्रोता झूमते हैं और मध्यम वर्ग के बच्चे फेविकॉल का महत्व गीत पर ठुमके लगाकर समझ जाते हैं। सीमेंट की जुड़ाई के सामने कोई प्रमाण, कोई साक्ष्य कारगर साबित नहीं होता। आपका दामाद कुछ भी करे, आप छाती ठोककर कह सकते हैं कि यह रिश्ता खून का नहीं है। शादियों के दहेज में भी सीमेंट दिया जाता है। संवेदनाएं भी फेविकोल से जुड़ जाती हैं। आज सीमेंट और फेविकोल की ताकत परस्पर विरोधी राजनीतिक धारा वाले लोगों को भी जोड़ देती है। सभी एक-दूसरे के मौसेरे भाई निकलते हैं। आज जैसा राजनीतिक भाईचारा कभी पहले नहीं देखा। इस मायने में यह सतयुग लगता है। दरअसल, सीमेंट सतयुगी आविष्कार है। इसकी जोडऩे की शक्ति पर कोई सरोज कुमार स्वान्त: दुखाय नुमा लंबा काव्य क्यों नहीं रचता? आज शरद जोशी या हरिशंकर परसाई होते तो सीमेंट और फेविकोल का महिमा गान अवश्य करते।

आज सीमेंट मात्र कोई वस्तु नहीं रह गया, वह बिगड़ी बात को बना सकता है। सारे रीढ़हीन अधिकारी किसी सीमेंट से जुड़े हैं और सुविधाओं की बैसाखियों के सहारे चल रहे हैं। इस महान संस्था में कुछ अधिकारी तो रातोरात पूरे देश में छा गए हैं। कभी स्कूटर पर दिल्ली में अखबारनवीसी करने वाले संस्था के शीर्ष अधिकारी हैं तो इसमें कुछ खानदानी खिलाड़ी भी शामिल हैं और 'जो हुक्म मेरे आका' संस्था का मूलमंत्र है। इस सीमेंट ने ही रईस और खानदानी लोगों को जोड़े रखा है। क्या कभी सचमुच भारत महान में शास्त्रीजी ने एक रेल दुर्घटना के बाद मंत्रिपद छोड़ दिया था? क्या यह वही भारत है, जिसमें अब आरोप लगाने से कोई दागी नहीं होता। अब काजल की कोठरी से बेदाग निकलने की कहावत झूठी पड़ गई है। अब बेदाग को दागदार मान लो - यत्र तत्र सर्वत्र दागी लोगों का ही महत्व है। जमानत पर छूटे व्यक्ति को सबसे बड़े प्रांत का मुख्य चुनाव संचालक बना दिया जाता है। रेलमंत्री का भांजा रिश्वत खा सकता है, बड़े तमाशे का दामाद अवैध शर्तों में करोड़ों के वारे-न्यारे करता है। मीडिया फाऊल प्ले का शोर कुछ दिन मचाकर शांत हो जाता है। उसकी जुड़ाई भी सीमेंट से हुई है। शेयर बाजार में सीमेंट कंपनी के शेयर के दाम बढ़ गए हैं। दामादों की महिमा अन्य क्षेत्रों में भी सामने आई है। पहले तिलक लगाकर और नारियल देकर दामाद का स्वागत किया जाता था। अब दामाद जमीनें खाते हैं, एक खेल प्रतिस्पद्र्धा जीम जाते हैं।

सभी क्षेत्रों के सारे भ्रष्टजन स्वार्थ और लालच से जुड़े हैं। अब इनके लिए कोई एक नाम नहीं मिल पाने के कारण फेविकोल का नाम लिया जा रहा है और उसकी गुणवत्ता संदिग्ध नहीं है। उससे सचमुच चीजें जुड़ जाती हैं। अत: किसी अवमानना के भाव से इस ब्रांड का नाम इस्तेमाल नहीं किया गया है। आज चोरी करके अगर आपने सीनाजोरी नहीं की तो आपको खेल में कच्चा माना जाता है। कौन, किससे त्यागपत्र मांगे? किसी ने कभी ध कमाने के अवसर का त्याग ही नहीं किया है। इन हालात में अगर श्रेष्ठतम खेल दिखाने के बावजूद राहुल द्रविड़ जैसा सर्वकालिक महान खिलाड़ी खेल छोडऩे की बात करता है तो हम उसके हृदय के दुख को समझ सकते हैं। एक क्लासिकल कॉपी बुक क्रिकेट खेलने वाला टी-२० में भी अपनी शैली में ही तेजी से लगातार रन बनाता है और उसे खेल छोडऩे की इच्छा होती है तो किसका दोष है। वह चहुंओर फैलती कालिख से सहम गया है। सचिन ने भी त्याग-पत्र दे दिया है। कमाल का समय है, जिन्हें देना चाहिए, वे नहीं दे रहे हैं। जब सीमेंट नहीं था, तब चूने मेें गोंद मिलाकर भवन बनते थे। आज तमाम कुर्सियों पर गोंद लगा है और सारे सत्ताधारी हजरते दाग की तरह जहां बैठ गए सो बैठ गए।