स्विट्जरलैंड में चैपलिन का जन्म दिवस / जयप्रकाश चौकसे

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स्विट्जरलैंड में चैपलिन का जन्म दिवस
प्रकाशन तिथि :19 अप्रैल 2017


सोलह अप्रैल को स्विट्जरलैंड में एक जगह अनेक लोग चार्ली चैपलिन द्वारा अभिनीत पात्रों जैसी पोशाक पहनकर इकट्‌ठे हुए। विज्ञान की कोख से जन्मे एकमात्र कला माध्यम सिनेमा के पहले कवि को इस तरह याद किया गया। अगर मनोरंजन को मंदिर कहें तो उसमें स्थापित मूर्ति चार्ली चैपलिन की होगी। उनकी कुछ फिल्मों को हॉलीवुड ने एक संग्रहालय में रखा है, जहां उन्हें बनाए रखने के लिए विशेषज्ञ तैनात रहते हैं। जिस तरह से फोर्ट नॉक्स में सोने की हिफाजत होती है उसी तरह चार्ली चैपलिन की फिल्मों को सहेजकर रखा गया है। महान भारतीय फिल्मों को इस तरह सहेजकर रखने का काम शिवेंद्रसिंह डूंगरपुर करते हैं।

चार्ली चैपलिन के माता-पिता अत्यंत गरीब थे। माता जूता बनाने के कारखाने में काम करती थीं और पिता मांस की दुकान पर कीमा कूटते थे। बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगाने वाले परोक्ष रूप से चार्ली चैपलिन और उनकी तरह के लोगों के जन्म लेने पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं। चार्ली चैपलिन को 'गरीबी ने बड़े प्यार से पाला।' इंग्लैंड के ही महान लेखक चार्ल्स डिकेन्स की रचनाओं में अभावों से घिरी जिन बस्तियों का मार्मिक विवरण प्रस्तुत किया गया है, उससे आप चार्ली चैपलिन के बचपन का कुछ अंदाज लगा सकते हैं। यह भी अजीब इत्तफाक है कि विश्व के लगभग सारे हंसोढ़ गरीब परिवारों में जन्मे हैं। हमारे जॉनी वॉकर भी ऐसे ही व्यक्ति थे। संभवत: ईश्वर ने गरीब व्यक्ति को हंसने और हंसाने का माद्‌दा दिया है और इसी नाव पर बैठकर वे भवसागर पार करते हैं।

यह भी काबिलेगौर है कि सर रिचर्ड एटनबरो ने 'गांधी' फिल्म के बाद चार्ली चैपलिन का बायोपिक बनाया गोयाकि 20वीं सदी को इन दो महान लोगों ने सबसे अधिक प्रभावित किया। इस 21वीं सदी में विज्ञान व टेक्नोलॉजी नित्य नई खोज कर रहे हैं परंतु ये कभी गांधी या चैपलिन पैदा नहीं कर सकते। गांधी और चैपलिन अभावग्रस्त व असमानता को झेलने वाले लोगों के आंसुओं से रचे जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद भी अभावों की गोद में पले हैं।

ज्ञातव्य है कि 1931 में चार्ली चैपलिन गांधीजी से मिलने गए थे। यह मुलाकात लंदन में हुई थी। चार्ली चैपलिन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थक थे और उन्होंने इस आशय के बयान भी दिए थे। उन्होंने गांधीजी से उनके मशीन विरोध को समझाने का आग्रह किया। गांधीजी ने उन्हें समझाया कि मशीनें और टेक्नोलॉजी अमीरों को उपलब्ध है और वे इनके द्वारा गरीब का शोषण करते हैं। भारतीय किसान से कम दाम में रुई खरीदकर आप मैनचेस्टर में कपड़े बनाने का कारखाना चलाते हैं। चार्ली चैपलिन गांधीजी के इस विचार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 'माडर्न टाइम्स' बनाई, जिसके एक विश्वप्रसिद्ध दृश्य में एक बड़े मशीनी चक्र की साफ-सफाई करने वाला कर्मचारी अपना काम कर रहा है और किसी ने मशीन चला दी। परदे पर प्रस्तुत बिम्ब में बड़े चक्र पर मनुष्य घूमते हुए उसी मशीन के एक पुर्जे-सा नज़र आ रहा है।

अपने जीवन के शिखर दिनों में चार्ली चैपलिन पर यह आरोप लगाया गया कि वे साम्यवादी हैं और अमेरिका की पूंजीवादी व्यवस्था को तोड़ना चाहते हैं। चार्ली चैपलिन को रातोरात गुप्त ढंग से अमेरिका से भागना पड़ा और वे अपनी जन्मभूमि लंदन में जा बसे। वर्षों बाद अपनी भूल स्वीकार करके अमेरिका ने उन्हें लौटने का आग्रह किया और जीवन पर्यंत सिनेमा की सेवा के लिए ऑस्कर से नवाज़ा। निर्मम व्यवस्थाओं को सबसे अधिक भय हंसने और हंसाने का माद्‌दा रखने वाले लोगों से होता है। वे हथियार से नहीं डरते, हिंसा को तो मन ही मन पूजते हैं परंतु एक ठहाका उन्हें दहला देता है।

फांसी के समय भगत सिंह की मुस्कान से अंग्रेज दहल गए थे। चार्ली चैपलिन के सिनेमा ने अनेक लोगों को प्रभावित किया। चार्ली चैपलिन का रचा पात्र आम आदमी ही हमें आरके लक्ष्मण के कार्टून कोने के आम आदमी में नज़र आता है। दरअसल, मानवीय करुणा से सारे संवेदनशील लोगों की आत्मा झंकृत होती है। दर्द के मामले में सारे सृजनशील लोग जुड़वां भाइयों की तरह हैं कि एक की पीठ पर कोड़े मारे जाते हैं तो दूसरे की पीठ लहूलुहान हो जाती है।

अमेरिका के कवि हार्टक्रेन की कविता 'चैपलिनिक' की चार पंक्तियों का अनुवाद इस तरह है, 'तुम्हारा बार-बार गिरना कोई झूठ नहीं था, छड़ी के सहारे बैले नर्तक का घूमना भी कोई भ्रम नहीं था, हमारी चिंताओं को तुमने सजीव प्रस्तुत किया, हम तुम्हें भुलाना चाहते हैं परंतु दिल है कि मानता नहीं।'