स्वीट स्ट्राइक / विनीत कुमार
मयूर विहार फेज-1 स्टेशन पर प्रेमी जोड़े के आपस में गुंथे हाथ उस धक्का-मुक्की में जाने कब तितर-बितर हो गए, उन्हें भी पता नहीं चला। जिन उंगलियों को वो मिनटों वो नाखून से जड़ और जड़ से नाखून तक सहला रहा था और बीच-बीच में मूंगे की अंगूठी पर ठिठक जाता, वे उंगलियां मुठ्ठी बंधकर चीनी के मरीजों, अधेड़ फ्रस्टू अंकलों को धकिआने में मजबूरन व्यस्त हो गयी। इधर उसकी अरबी जैसी मोटी-मोटी उंगलियां अचानक से बेजान हो गयी। आखिर जींस की पॉकेट में हाथ डालने के अलावे चारा क्या था। भारत बंद का सबसे गहरा असर रागिनी और रघु पर ही हुआ था। मेट्रो भी गजब घिनौनी चीज है न। जिसे हम छूना चाहते हैं, छूते रहना चाहते हैं वो छूट जाते हैं और जिन्हें छूना क्या, उसके पास से गुजरनेवाली हवा से भी परहेज करते हैं, वो है कि लसड़ाने लग जाता है। यमुना बैंक, इन्द्रप्रस्थ, मंडी हाउस, बारहखंभा। हां उंगलियों में फिर से जान आने लगी थी। वो जींस की पैंट से उछलकर फिर से उनमें गूंथने लगी थी, उसे स्पर्श नहीं, नरमी चाहिए थी, बंदी की झुलसन से मुक्त होने के लिए, सांस लेने के लिए। राजीव चौक तक आते-आते मयूर विहार फेज-1 की तरह अरबी सी उंगलियां, भतिया ककड़ी-सी उंगलियां एकाकार होने लगी थी। स्टेशन पर दर्जनों युगल इसी मुद्रा में मौजूद नजर आए बल्कि रोज से कहीं ज्यादा। आज मेट्रो स्टेशन इस मामले में ज्यादा उदार नजर आई। डीटीसी, ओटो और कारों में टुकड़ों-टुकड़ों का स्पर्श यहां आकर बहुमत हो गया था।