हकीकत और अफसाने / जयप्रकाश चौकसे

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हकीकत और अफसाने
प्रकाशन तिथि :31 जुलाई 2017


फिल्म माध्यम को निर्देशक का माध्यम माना जाता है और निर्देशक के आकल्पन में विश्वास करके, उसे परदे पर लाने के लिए कुछ लोग जुड़ जाते हैं। इसीलिए नामावली में 'ए फिल्म बॉय' के साथ निर्देशक का नाम होता है। हाल ही में प्रदर्शित 'मुबारकां' के लेखक फिल्मकार अनीज बज्मी है, जिन्होंने मनमोहन देसाई की बहुसितारा फिल्म 'नसीब' में शत्रुघ्न सिन्हा के बचपन के किरदार को अभिनीत किया था गोयाकि वे श्रीदेवी एवं कमल हासन की तरह बचपन से ही फिल्म संसार से जुड़े हैं। अनीज बज्मी को पहला अवसर अजय देवगन ने दिया। इस टीम ने 'हलचल,' 'प्यार तो होना ही था' और 'दीवानगी' बनाई।

विगत सदी के आखिरी दशक में दक्षिण भारत की फिल्मों से प्रेरित फिल्में मुंबई में बनीं और इस क्षेत्र में अनीज बज्मी ने बहुत काम किया। नई सदी में उन्होंने निर्माता बोनी कपूर के लिए 'नो एंट्री' बनाई, जो अत्यंत सफल रही और इसका भाग दो भी अनीज बज्मी ने लिखा परंतु यह फिल्म नहीं बन पाई। उन्होंने 'वेलकम' के दोनों भाग बनाए। अक्षय कुमार के साथ बनाई 'थैंक यू' को सफलता नहीं मिली। हाल ही में प्रदर्शित 'मुबारकां' पारिवारिक हास्य फिल्म है। अनिल कपूर के साथ उनका पुराना याराना है और बज्मी उनके लिए चटपटे संवाद लिखते हैं। सिनेमा में प्राय:मूर्ख पात्र रचा जाता है और हास्यमय परिस्थितियों का निर्माण सहज ही हो जाता है। पश्चिम में 'मिस्टर बीन्स' शृंखला इसी आधार पर लिखी गई है।

दरअसल, चार्ली चैपलिन की फिल्मों में सामाजिक असमानता और जीवन की विषमता को दिखाते हुए हास्य रस रचा जाता है परंतु उसके समकालीन बस्टर कीटन एवं लारेल हार्डी के हास्य में कोई सामाजिक प्रतिबद्धता नही हैं। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल व्यंग्य करते हैं। इलाहाबाद की एक नाटक संस्था श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी को हास्य नाटक के रूप में बदलने का प्रयास कर रही है और दिसबंर में इसकी पहली प्रस्तुति इंदौर में होगी। इलाहाबाद की प्रोफेसर अनिता गोपेश इस दल की संचालक हैं। 'राग दरबारी' के लिखे जाने के समय समाज में जो विसंगतियां थीं, उनसे कहीं अधिक वर्तमान में है परंतु सृजन क्षेत्र में ऐसा अकाल है कि कहीं कुछ उतने पैने और सटीक ढंग से नहीं लिखा जा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अब सार्थक लिखने का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है। हम सारी उम्मीदें खो चुके हैं। यह अत्यंत घातक किस्म का सूखा और अकाल है।

इराक-ईरान युद्ध के समय कैदियों से अमानवीय व्यवहार किया जाता था, जिससे प्रेरित फिल्म के प्रदर्शन के बाद परिवर्तन के सार्थक प्रयास हुए थे। संभवत: फिल्म का नाम 'मिडनाइट एक्सप्रेस' था। दरअसल, परिवर्तन एक अनवरत प्रक्रिया है परंतु कोई एक सार्थक क्षण सार्वजनिक जीवन में अवाम का ध्यान आकर्षित करता है। इसी एक क्षण में भूत, भविष्य एवं वर्तमान एक साथ उभरते हुए किसी व्यक्ति को दिख जाते हैं और उसका विवरण लोगों के अवचेतन में पैठ जाता है। अर्जुन देव रश्क ने अपनी एक पटकथा देव आनंद को सुनाई तो उन्होंने कहा कि इस तरह की कथा राज कपूर को पसंद आ सकती है। उनकी सिफारिश पर राज कपूर ने पटकथा सुनी। राज कपूर प्रेरित हुए परंतु वहां मौजूद शंकर एवं जयकिशन ने कहा कि इसमें उन्हें गीत-संगीत के लिए कोई अवसर नज़र नहीं आता। राज कपूर ने उनसे कहा कि एक सप्ताह बाद इस पर निर्णय लेंगे। नियत दिन और समय पर राज कपूर ने उस कथा को अपने ढंग से ऐसा प्रस्तुत किया कि दस गीतों की गुंजाइश बन गई और डाकू समस्या पर बनी 'जिस देश में गंगा बहती है' में जितनी गोलियां चलती है, उससे कहीं अधिक गीत गाए गए।

एक और इत्तेफाक देखिए कि जिस समय विनोबा भावे चंबल के डाकुओं से आत्म-समर्पण करा रहे थे उसी समय मीलों दूर उटकमंड में राज कपूर फिल्म का क्लाइमैक्स फिल्मा रहे थे। यथार्थ के डाकू समर्पण से दो वर्ष पूर्व फिल्म निर्माण प्रारंभ हुआ था। संभवत: कहीं अधिक पहले अर्जुन देव रश्क ने इसका आकल्पन किया था। एक और संयोग देखिए कि अनीज बज्मी की फिल्म 'प्यार तो होना ही था' के निर्माण के समय ही अजय देवगन और कॉजोल को प्यार हुआ और उन्होंने विवाह किया। क्या यह संभव है कि शूटिंगके समय, जो प्रेम अंकुरित हुआ, उसके बीज पहले ही उनके हृदय में मौजूद थे गोयाकि वह फिल्म महज ट्रिगर पॉइंट थी। इश्क का दरिया पहले से ही प्रवाहित था। जीवन में हकीकत और अफसाने यूं ही गलबहियां करते हुए चलते हैं। इश्क होना और उसके प्रति जागरूक होने के बीच अंतराल हो सकता है। शैलेन्द्र का गीत है, 'प्यार हुआ, इकरार हुआ, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल।' दरअसल, यह डर खो देने का है गोयाकि मिलन के क्षण में विरह का भय मौजूद होता है। पाकर खो देने का भय होता है। यह विचार संभवत: शैलेन्द्र को बार-बार परेशान करता था।

'संगम' के लिए लिखी उनकी पंक्तियां हैं, 'ओ मेरे सनम,ओ मेरे सनम/.... सुनते हैं प्यार की दुनिया में दो दिल मुश्किल से समाते हैं/ क्या गैर वहां अपनों तक के साये भी न आने पाते हैं/ जो सच है सामने आया है, जो बीत गया एक सपना था।'