हजार साल बाद / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

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"बेटा भागीरथ! आ गया बेटा?"

"यस मम्म! सारा कचड़ा गड्ढे में डाल दिया।"

"ओके बेटा।"

मम्म काम में व्यस्त थीं। भगीरथ उनके पास गया।

"मम्म, एक बात पूछनी है।"

"कौन-सी बात बेटा?"

"मम्म, ये लंबे-लंबे गड्ढे... भगवान ने इतने लंबे-लंबे कूड़ेदान क्यों बनाए हैं? नानी के गाँव में भी है।"

"नहीं बेटा, ये कूड़ेदान नहीं हैं। एक समय इन लंबे-लंबे गड्ढों में पानी बहता था।"

"पानी?" भगीरथ चौंक उठा।

"हाँ और इनका कोई छोटा-सा नाम भी था... दो अक्षरों का। अभी मुझे याद नहीं आ रहा है। रात को मैं इन गड्ढों के बारे में तुम्हें कहानी सुनाऊंगी। शायद तब तक मुझे नाम भी याद आ जाए।"

"ओके मम्म!" कहते हुए भगीरथ हाथ-पैर धोने के लिए बाथरूम में चला गया। उसने नल खोला और मम्म को आवाज दी, "मम्म नल से पानी नहीं गिर रहा है।"

"पानी का कार्ड खत्म हो गया है बेटा। तुम्हारे डैड रिचार्ज कराने गए हैं।" मम्म ने बाहर से आवाज दी।

रात हुई भगीरथ कहानी सुनना चाहता था। मम्म को उन गड्ढों का नाम भी याद आ गया था। वह प्रेम से अपने बेटे को कहानी सुनाने लगीं—बेटा भगीरथ! एक थी 'नदी' । उसका नाम था।