हड़पेटवा / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
गनोरवा जबेॅ बच्चा छेलै, तहिए ओकरोॅ बाप मरी गेलोॅ छेलै। माय नें बड़ी जतनो से पाललकै-पोसलकै आरो उड़ात बनाय देलकै। देखै में काला-कलूठा लेकिन गनोरवा रोॅ माय के नजरोॅ में सब्भै सें नीको लागै छेलै। कुटौनोॅ-पीसौनोॅ, नीपी-पोती के गामोॅ घरो से मजूरी लानै छेलै आरो आपना बेटा केॅ चावल गटकायकेॅ जमाय छेलै। आहिस्ते-आहिस्ते आबेॅ बेटा होय गेलै छवारिक, आबेॅ योहोॅ छौड़ा लोगोॅ रोॅ कमाय-धमायलेॅ जावेॅ लागलै, काम बड़ी निको करै छै।
जेकरोॅ एक दो दिन काम करै छेलै। ओकरो नजरोॅ में काम गथ्थी जाय छै। चाहै छै, हम्में आबेॅ हेकरा छोड़ी केॅ, दोसरा केॅ नै खटैबै। है छौड़ा नें दू मजदूरोॅ रोॅ काम अकेले निपटाय लै छै। मतरकि खाना खाय छै अधिक।
जबेॅ है छोटोॅ छेलै मदनी कम खाय छेलै, आरो अधिक खिलाबे रोॅ कोशिश करै छेलै। है लेली से अधिक खैतै तेॅ बढ़ियो जेतै जल्दी, मजबूतो होय जैते, आरो कामो करते अधिक आरो अपनो पैरोॅ पर जल्दी खड़ा होय जैतै, ताकी हमरोॅ माथा रोॅ भार हलका होय जैतै, जवान होय जैतै, जल्दी से शादी करवाय देवै, आरो कनियानी घरोॅ रोॅ काम करतै आरो है बाहर सें कमाय-धमाय केॅ मजूरी लानतै आपनोॅ कनियानी केॅ आरोॅ हमरो खिलैतै। हमरो भार हलका होय जैतै हम्में आबेॅ बूढ़ी होय गेलां। आबेॅ हमें कत्ते कमैवोॅ ... आरनि ...बात।
गहिड़का अलमुनियम रोॅ थाली में चांपी-चांपी भात तरकारी परोसै छेलै। धीरे-धीरे गनोरवा ऑठे करेजे खावेॅ लागलै। सत्तू तीन चार पैला गटक करि जाय छेलै। दू तीन आदमी रोॅ खाना अकेले गटक करि जाय छेलै। है देखी केॅ माय बड़ी हरखित हुवेॅ लागलै।
आबेॅ माटी रोॅ दीवार आरो फूसो रोॅ छौनी, बढ़िया ढंगोॅ सें करि केॅ रहेॅ लागलै, पहले खंभा पर छौनी करि केॅ रहै छेलै। आबे जुगती-पंगत सेॅ रहि छै। आबेॅ माय चाहै छै, बड़ी आरो गोरी कनियान जल्दी सें व्याह कराय दियै। बेटा कारो छै, पतोहू गोरी होतै तेॅ अच्छा रहतै। माय आपनोॅ पेट काटी केॅ हेकरा खिलाय पर काफी ध्यान दै छेलै। आबेॅ है छौड़ा मोटाय गेलै, आरो ओकरोॅ माय सनठी नांखी दुबली-पतली होय गेलै। अबकी साल ऐकरोॅ शादी होय गेलै, साले भरोॅ में पतोहू बसे-रसे लागलै। है देखि केॅ माय बड़ी पुलकित होय गेलै। आबेॅ माय ऐकरोॅ ख्याली पोलाव पकावेॅ लागलै। हमरो बेटा केकरो सें कम नै छै, सभै सें आगु होय गेलै।
भनसिया खाना बनावेॅ लागै, हे कनियान पहले छौड़वा केॅ खिलाय-पिलाय दिहोॅ कैन्हे कि कमाय-धमाय लेॅ जैतो, ज़रा दाबी-दाबी केॅ भात दिहौ, पूरा पेट भरी जाय ताकि सकतोॅ सें कमावै हमरा सभै केॅ थोड़ो-थोड़ो कमो होतै तेॅ काम चली जैतै, हमरा सब घरो में रहिवोॅ। जबेॅ ओकरोॅ कनियान खाना परोसेॅ लागै तेॅ होकरोॅ माय आड़ोॅ पेचों सें थरिया हुलकै, बढ़िया से खाय लेॅ दै छै कि नै। भरलो थरिया भात तरकारी देखि केॅ हरखित होय जाय छै। पतोहू बड़ी नीको लानने छीयै। टोला परोसीन कस्बे सेॅ पतोहू रोॅ बढ़ाय हॉके लागलै।
पुतहू रोॅ भूरि-भूरि प्रशंसा करेॅ लाग लै ना
हमरा सें बढ़िया परोसे लागलै ना।
हमरो दिलोॅ केॅ जीती लेलकै ना
हम्में टोला परोसिन सें आगु होलियै ना।
कभी काल बूढ़ी आरो पतोहू भूखले रात भर रहि जाय छै। मायनें सहैरोॅ आदत तें पहले सें बनाय राखनें छेलै। कनियान केॅ तेॅ पीड़ावेॅ लागलै कभी कभार आधे पेट आरो कभी काल तेॅ खड़े उपास रहैलेॅ पड़ै छै।
कनियान मनोमन बोलेॅ लागलै कहाँ सें है घरोॅ में हमरो बापे नें बोरी देलकोॅ। हड़पेटा मरदबा ऐॅ घरोॅ में पैर रखनें छियेै, आरो दिन बदिन सूक्खी केॅ काँटोॅ होलो जाय छीयै। है घरोॅ में तेॅ मरी जैबोॅ। कोय देखै वाला नै छै। आदि । कभी काल दू चार डाँगो खायलेॅ पड़ै छै। है घरो में आबेॅ हमरोॅ बनाव नैं छै। एक दिन पतोहू राते में भागी गेलै। आपनो नैहियर, आबेॅ है घरो में लात नै रखबै।
माय बड़ी उदास रहै छै। पतोहू भागने साल भर होय गेलै, माय केॅ खाना पीना बनावै में दिक्कत होवेॅ लागलोॅ छै। आवे दूसरो शादी करैलेॅ चाहै छै। माय कहै छै-
रीन खौका केॅ रीन देवैयां बहुत छै।
आरो बहू खौका बेटी देवैया बहुत छै॥
फेरू दोसरो शादी रचायकेॅ लानलकै। हेकरो साथोॅ में वहे खाय पिये रोॅ कटमटो होॅवे लागलै। कै महीना तक रोय-धोय अधपेटो खाय केॅ दम साधलकै। एक रात यहू अचानके भागी गेलै।
आबेॅ माय रोॅ बुढ़ापा बड़ी तेजी से धापने जाय छै। गांव टोला रोॅ लोगो सें कहै छै। एकटा कनियान देखोॅ। गनोरबा रोॅ फेरू शादी करबै-माय नें बेटा केॅ सही रास्ता सूझावेॅ लागलै आबेॅ आपनो खाय में कटौती करोॅ, खाय-पियै में कटमटो होय छौ तहिसें कनियान भागी जाय छौ।
हमरो पैर तेॅ कब्र में लटकलोॅ छौं। आबेॅ माय नें समझाय-बुझाय छै, खाना में कटौती करें सब बेड़ा पार लागी जैतोॅ नै तेॅ यही रंगतो से नैया डूबते-उतरते रहितो, आरोॅ जीवन बेकार होय जैतोॅ।
यहा सोच फिकरो सें एकरो माय एक दिन टन बोली गेलै।