हमला / सुशांत सुप्रिय

Gadya Kosh से
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बाईसवीं सदी में एक दिन देश में ग़ज़ब हो गया। सुबह लोग सो कर उठे तो देखा कि चारो ओर तितलियाँ ही तितलियाँ हैं। गाँवों, क़स्बों, शहरों, महानगरों में जिधर देखो उधर तितलियाँ ही तितलियाँ थीं। घरों में तितलियाँ थीं। बाज़ारों में तितलियाँ थीं। खेतों में तितलियाँ थीं। आँगनों में तितलियाँ थीं। गलियों-मोहल्लों में, सड़कों-चौराहों पर करोड़ों-अरबों की संख्या में तितलियाँ ही तितलियाँ थीं। दफ़्तरों में तितलियाँ थीं। मंत्रालयों में तितलियाँ थीं। अदालतों में तितलियाँ थीं। अस्पतालों में तितलियाँ थीं। तितलियाँ इतनी तादाद में थीं कि लोग कम हो गए, तितलियाँ ज़्यादा हो गईं। सामान्य जन-जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया। लगता था जैसे तितलियों ने देश पर हमला बोल दिया हो।

दिल्ली में संसद का सत्र चल रहा था। तितलियाँ भारी संख्या में लोकसभा और राज्यसभा में घुस आईं। दर्शक-दीर्घा में तितलियाँ ही तितलियाँ मँडराने लगीं अध्यक्ष और सभापति के आसनों के चारों ओर तितलियाँ ही तितलियाँ फड़फड़ाने लगीं। आख़िर दोनों सदनों की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित करनी पड़ी। राज्यों में भी इसी कारण से विधानसभाओं और विधान-परिषदों की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई। सुरक्षा एजेंसियाँ चौकन्नी हो गईं। कहीं यह किसी पड़ोसी देश की साज़िश तो नहीं थी? तितलियों की इस घुसपैठ के पीछे कहीं कोई विदेशी हाथ तो नहीं था?

पूरे देश में कोहराम मचा हुआ था। सड़कों पर यातायात ठप्प था। स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए थे। दफ़्तरों और मंत्रालयों में कोई काम-काज नहीं हो रहा था। अदालतों की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित करनी पड़ी। अस्पतालों में कई मरीज़ों की मौत हो गई क्योंकि आपातकालीन सेवा-कक्षों में भारी संख्या में तितलियों की घुसपैठ की वजह से नर्सें और डॉक्टर मरीज़ों पर ध्यान नहीं दे सके।

ऑपरेशन-थियेटर में तितलियाँ मौजूद थीं जिस के कारण सभी ऑपरेशन स्थगित करने पड़े।

तितलियाँ इतनी भारी संख्या में चारो ओर मँडरा रही थीं कि उन्होंने सूरज की रोशनी को ढँक लिया। दोपहर में अँधेरा छा गया। रेडियो व टी. वी. का प्रसारण बाधित हो गया। टेलीफ़ोन सेवाएँ ठप्प हो गईं।

सभी अवाक् थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक यह क्या हो गया है। सरकार सकते में थी। प्रशासन लाचार दिख रहा था।

शुरू-शुरू में बच्चों के मज़े लग गए। वे तितलियों से खेलते हुए पाए गए। पर जब स्थिति की गम्भीरता का अहसास लोगों को हुआ तो सब के होश उड़ गए।

ऐसा नहीं है कि लोगों ने इस समस्या से निपटने के लिए कुछ नहीं किया।

बेगॉन-स्प्रे से ले कर सभी प्रकार के कीट-नाशकों का इस्तेमाल तितलियों की फ़ौज पर किया गया पर सब बेकार। तितलियों पर इनका कोई असर नहीं हुआ।

पुलिस-वालों ने भी अपने तरीक़ों से स्थिति को नियंत्रण में करने की कोशिश की। देश में कई जगह पर पुलिस ने तितलियों पर आँसू-गैस के गोले छोड़े। कुछ जगहों पर बुद्धिमान सिपाहियों ने तितलियों पर लाठी-चार्ज किया। और कई जगहों पर तितलियों पर फ़ायरिंग भी की गई। पर कोई नतीजा नहीं निकला। तितलियों की तादाद इतनी ज़्यादा थीं कि गोलियाँ कम पड़ गईं।

रेल, विमान तथा सड़क-यातायात पर तितलियों की मौजूदगी का बहुत बुरा असर पड़ा। जगह-जगह दुर्घटनाएँ हुईं जिनमें कई लोग मारे गए।

आख़िर वैज्ञानिकों ने कुछ तितलियों को पकड़ कर ' एलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप ' के नीचे उनका निरीक्षण किया। उनके हैरानी की कोई सीमा नहीं रही जब उन्होंने पाया कि हर तितली के पंखों पर बारीक अक्षरों में कोई-न-कोई वादा या आश्वासन लिखा हुआ था। और तब जा कर यह गुत्थी सुलझी कि दरअसल ये तितलियाँ वे करोड़ों-अरबों वादे व आश्वासन थे जो देश की आज़ादी के बाद 1947 से अब तक नेताओं, अफ़सरों व अधिकारियों ने दिए थे पर जो पिछले सड़सठ सालों में पूरे नहीं किए गए थे। वे सभी झूठे वादे व आश्वासन तितलियाँ बन गए थे।

यह ख़बर पूरे देश में आग की तरह फैली। लोग चर्चा करने लगे कि एक दिन तो यह होना ही था। झूठे वादों और कोरे आश्वासनों के पाप का घड़ा कभी-न-कभी तो भरना ही था।

इतिहासकारों ने आनन-फ़ानन में एक आपात बैठक बुलाई जिसमें सरकार को याद-दिलाया गया कि सैकड़ों वर्ष पहले विश्व का प्रथम गणतंत्र वैशाली भी इसी प्रकोप के कारण नष्ट हो गया था। जिस गणतंत्र में नेता और अधिकारी केवल झूठे वादे करते हैं और कोरे आश्वासन देते हैं उस गणतंत्र का वही हाल होता है जो वैशाली गणतंत्र का हुआ था। भविष्यवेत्ताओं ने भी इतिहासकारों की इस बात का समर्थन किया।

यह सब सुनकर सरकार हरक़त में आ गई। एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। बैठक में वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और भविष्यवेत्ताओं की बात पर चर्चा हुई। पर एक तो कक्ष में चारो ओर तितलियाँ ही तितलियाँ मँडरा रही थीं, दूसरी ओर विपक्ष और सत्ताधारी पक्ष के सदस्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा दौर चला कि बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसे संकट के समय में भी विभिन्न दलों के बीच यह साबित करने की होड़ लगी हुई थी कि किस पार्टी ने ज़्यादा झूठे वादे किए थे, किसने कम।

अधूरे वादों का आलम यह था कि परिवारों में पति-पत्नी ने एक-दूसरे से और माँ-बाप ने बच्चों से कई झूठे वादे किए हुए थे। वे सभी अधूरे वादे और आश्वासन असंख्य तितलियाँ बन कर घरों में चारो ओर मँडरा रहे थे और घरवालों को सता रहे थे।

जो वादे 1960 के दशक से पहले किए गए थे वे 'ब्लैक-ऐंड-व्हाइट' तितलियों के रूप में चारो ओर फड़फड़ा रहे थे। सिनेमा में रंगीन युग आने के बाद किए गए वादे 'कलर्ड' तितलियों के रूप में चारो ओर मँडरा रहे थे।

इसी तरह पूरा दिन-निकल गया और इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकला। पर रात के बारह बजते ही सभी तितलियों का कायांतरण हो गया और वे टिड्डियाँ बनकर लोगों पर हमले करने लगीं। उनके निशाने पर विशेष करके मंत्री, राजनेता, और अधिकारी थे। वे घरों में घुस-घुस कर सोए हुए लोगों पर हमले करने लगीं। चारो ओर हाहाकार मच गया। स्थिति बद से बदतर होती चली गई।

आख़िर सुबह चार बजे कैबिनेट की एक आपातकालीन बैठक हुई। उसमें एक मंत्रियों के समूह का गठन किया गया। सरकार ने तय किया कि सभी अधूरे वादों और आश्वासनों को एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा किया जाएगा। और कोई चारा नहीं था। टिड्डियों का हमला जारी था।

सुबह पाँच बजे से ही यह काम शुरू हो गया। यह बेहद कठिन काम था। अधूरे वादों और आश्वासनों की तादाद करोड़ों-अरबों में थी। इतनी ही संख्या में टिड्डियाँ मौजूद थीं। जैसे ही कोई अधूरा वादा या आश्वासन पूरा होता, एक टिड्डी ग़ायब हो जाती।

पर करोड़ों-अरबों अधूरे वादों और आश्वासनों को पूरा करने में बरसों लग गए। तब जाकर देश से टिड्डियों का क़हर समाप्त हुआ और स्थिति सामान्य हो पाई।

इस ख़बर का असर पूरी दुनिया में हुआ। बाईसवीं सदी का इतिहास गवाह है कि दूसरे देशों के राजनेताओं और अधिकारियों ने भी इस डर से अपने-अपने देशों के तमाम अधूरे वादे और आश्वासन पूरे कर दिए कि कहीं उनके देश में भी ये टिड्डियाँ हमला न कर दें।