हमारी फिल्मों और सामूहिक अवचेतन में तंत्र-मंत्र / जयप्रकाश चौकसे

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हमारी फिल्मों और सामूहिक अवचेतन में तंत्र-मंत्र
प्रकाशन तिथि : 22 अप्रैल 2019


वर्तमान की घटनाएं विगत की स्मृतियों को ताजा करती हैं और विगत के जामेजम में भविष्य की झलकियां दिखाई देती हैं। अंग्रेजों ने भारत में राज करते समय अपने गुप्तचर विभाग को निर्देश दिया कि वे साधुओं से संपर्क रखें, क्योंकि उनके पास महत्वपूर्ण सूचनाएं होती हैं। साधु प्रायः यात्राओं पर रहते हैं और पूरे देश के सामूहिक तापमान की जानकारी उनसे प्राप्त हो सकती हैं। इस तरह की गुप्त सूचनाएं शिमला के दफ्तर में सात खंडों में रखी गई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिमला के संग्रहालय में उन खंडों की खोज की गई परंतु अंग्रेजों ने भारत छोड़ते समय उन्हें नष्ट कर दिया था। भारतीय असंतोष का पुस्तकालय 1878 में विद्यमान था। यह भी कहा गया है कि अंग्रेजों को 1857 के संग्राम की पूर्व जानकारी भी इन यायावर साधुओं से प्राप्त हो गई थी। मंगल पांडे का समय के पूर्व ही विद्रोह कर देना भी इस प्रयास की असफलता का कारण हो सकता है। केतन मेहता की आमिर खान और रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म में घटनाओं का विशद वर्णन मिलता है।

इतिहासकार विपिन चंद्र ने इस विषय पर लिखा है। ज्ञातव्य है कि विलियम वेडरबर्न ने 1913 में एलन ऑक्टेवियन ह्यूम की कहानी में पहली बार साधुओं द्वारा प्राप्त गुप्त सूचनाओं के साथ खंड की बात लिखी थी। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम पर भारतीय जादू और तंत्र का गहरा प्रभाव रहा है। अगर कुछ भारतीय सोच-विचार में अंग्रेज हो गए तो कुछ अंग्रेज भी भारतीयता में ओतप्रोत हो गए। भारतीय सामूहिक अवचेतन में तंत्र-मंत्र हमेशा मौजूद रहे हैं। सांप के डंसने पर मंत्र द्वारा जहर के प्रभाव को समाप्त कर देने की गैर वैज्ञानिक बात इसलिए सत्य की तरह जम गई क्योंकि 90 फीसदी सांप जहरीले नहीं होते। हमारे फिल्मकार शशधर मुखर्जी ने तो यह भी स्थापित कर दिया कि सांप बीन की आवाज पर डोलते हैं, जबकि उनके कान ही नहीं होते हैं और सांप मांसाहारी होते हैं परंतु हम तो उन्हें नागपंचमी के दिन दूध भी पिलाने लगे। 'दूध का कर्ज' नामक फिल्म में अरुणा ईरानी अभिनीत पात्र एक सपोले को स्तनपान कराती है और वह हर संकट में उसकी सहायता करता है। शशधर मुखर्जी की फिल्म 'नागिन' के दशकों बाद हरमेश मल्होत्रा ने 'नगीना' नामक फिल्म में सर्प-मिथ को आगे बढ़ाया कि एक नागिन मानव रूप धारण करके विवाह करती है परंतु पति के प्रेम के कारण वह अपना सांपत्व छोड़कर मानवीय बने रहना चाहती है। शशधर मुखर्जी की फिल्म 'नागिन' में संगीत हेमंत कुमार ने रचा था परंतु उनके वादक कल्याण जी भाई ने विदेश से हरमोनियमनुमा क्लेवायलिन नामक यंत्र का आयात किया और बीन की ध्वनि उसी यंत्र द्वारा बनाई गई है। क्लेवायलिन जिस यात्रा का प्रारंभ था, आज उस यात्रा का शिखर है कम्प्यूटर जनित ध्वनियों का इस्तेमाल। टेक्नोलॉजी ने पारंपरिक वाद्य बजाने वालों की जमात को ही मार दिया। कथाकार मनोज रुपड़ा के 'साज-नासाजalt39 में इसका मार्मिक विवरण उपलब्ध है।

कुंदनशाह और अजीज मिर्जा के सीरियल 'नुक्कड़' में भी एक ऐसा ही वादक का चरित्र प्रस्तुत किया गया था। पृथ्वीराज कपूर, प्रदीप कुमार और गीता बाली अभिनीत फिल्म 'आनंद मठ' में साधुओं द्वारा शस्त्र उठाकर युद्ध करने का विवरण है परंतु यह युद्ध अंग्रेजों के खिलाफ नहीं होते हुए एक सुल्तान के खिलाफ लड़ा गया था। रमेश सिप्पी की 'शान' में एक साधु द्वारा जल पर चलने के तमाशे को प्रस्तुत किया गया है। भारत की सर्वश्रेष्ठ हास्य फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' के एक गीत में किशोर कुमार साधु के वेश में प्रेम निवेदन करते हैं। अनेक फिल्मों में प्रेमी अपनी रूठी हुई प्रेमिका को मनाने के लिए साधु का भेष धारण करते है। आईएस जौहर ने अपनी कुछ फिल्मों में साधु का वेश धारण करके खलनायक को बेवकूफ बनाया है।

महाभारत से श्राप और वरदान को हटा दें तो कथा बहुत छोटी सी रह जाती है। महान वेद व्यास ने श्राप और वरदान के माध्यम से कुछ आदर्श जीवन मूल्यों को रेखांकित किया है परंतु बड़े पाठक वर्ग ने श्राप और वरदान पर विश्वास करते हुए उनके माध्यम से दिए गए आदर्श जीवन मूल्य को अनदेखा कर दिया। वर्तमान चुनाव कुरुक्षेत्र में आदर्श जीवन मूल्यों की उपेक्षा दिखती है।