हमारु पाड़ / नरेन्द्र कठैत
दूर-दूर तक फैल्यूं हमारु यू पाड़, फकत उंदार-उकाळ, धार-खाळ नी। गारा-माटै ढैया य उंची-निसी डांडी-कांठी-धरपट्यूं कु नौ बि पाड़ नी। सच बात त या च कि पाड़ अज्यूं तक कैन पछ्याणि हि नी। जरा पाड़ै तिरपां नजर हेरादि! देखा! यका पैथर हैंकू, हैंका पैथर हैंकू अर वेका पैथर क्वी हैंकू, क्वी छांटु दिखेणू क्वी नजीक। पर इनू क्वी पाड़ छयिं नी जैकी काख वळा पाड़ दगड़ा अपड़ि कांध नी लगायिं। यका पाड़ पर हैंका पाड़ै य मजबूत कांध साख्यूं बिटि इनि च लगीं। यिं बात तैं बि सर्रा दुन्या जणदि कि पाड़ पर एक न कत्ति दौं भारि बिपत्ति पड़ि। पर तौं बिपत्यूं मा बि पाड़ कबि टुटी नी, झुकी नी। पाड़ आज बि अजड़ च। कै पर क्वी बोझ नी। लोग ब्वल्दन पाड़ मा इमानदारि, बफादारि कूटी-कूटी च भ्वरिं। सूणी तैं हमतैं बि भौत खुसी होंदि। पर पाड़न यि बातौ कबि ढ़िंढोरु नि पीटी। सच बात त या च कि ऐंच-तौळ, ओड़-छोड़ तक पाड़ अर पाड़ा बीच छुटा-बड़ो क्वी भेद-भौ छयिं नी। वो कुमौं-यो गढ़वाळ, वा धार- या खाल अर गौं-दौंपड़ौं का नौ त हमारा अपड़ि सुभितौ रख्यां छन भयि! ब्वनो मतलब यो च कि यका पाड़ अर हैंका पाड़ा बीच जब इनू बकळो पिरेम-भौ रयि तब हि त पाडै़ घाट्यूं मा यि गाड-गदन्नी अर पबित्र नदी छन बौगणी।
या बि क्वी झूठी बात नी कि धरती मा इनि क्वी चीज छयिं नी, जैं तैं पाड़ मा खूब हैलास-फैलासैे जगा नि मिलीं। आम, पिपळ, कुळैं, पयां, माळू, दुबलू, अलमोडू, कंडाळी सि लेकि हर छुटि-बड़ि डाळि-बोट्यूं कि क्य सुद्दि छन यख अपड़ि हथ-खुटी फैलायिं। पर पाड़ समझुणू तैं पाडै़ उकाळ नपुणू जरूरी मणेगी! बिगर पाड़ै उकाळ नप्यां, पाड़ाऽ माटै मजबूती अर पाड़ाऽ ढूंगौं कि पकड़ौ अणदाज कै तैं कबि नी लगी। पाड़ै उकाळ नापी मैसूस होंदू कि पाड़ै ज्वा बि ढुंगी-डाळि-बोटी मुसीबत मा हमारि पकड़ मा औंदि वा बि हमतैं सारु देणै पूरी हिकमत रख्दि। यि कारण च कि पाड़ मा बड़ो डांग बि वे हि भौ सि पुज्येगी जै भौ सि गंगछाला प्वड़िं लुटम्य ळी ढुंगी।
पाड़ जथगा हरु च उथगी खरु बि। पाड़न कबि क्वी तिरै नी, क्वी धिक्ये नी, क्वी लंघै नी, क्वी लत्ये नी, क्वी भगै नी। पाड़ै छाया-माया मा हमुन बि गोया लगै, हिटुण सीखी। ‘कु छयां? कखा छयां? बैठा छ्वया- मंगरयूं कु ठण्डु पाणी प्यावा! अरे बैठा त सही! चा उमळन मा क्य देर लगदि।’ औण-जाण वळों तैं हमुन इथगा जरूर पूछी। हमारु यु पिरेम-भौ अर पाड़ौ द्यो रै कि पाड़ मा क्वी कबि भूख-तीसन म्वरि नी। जब पाड़ मा यि संस्कार रैनी तब हि त हमतैं बि द्यब्तौं कि या संस्कृति मिली।
यिं बात तैं बि सर्रा दुन्या जणदि कि हमारि उत्तराखण्डी भाशौं का खून मा पाड़ रच्यूं - बस्यूं च। यूं भाशौं कि पकड़ अर सामर्थ साख्यूं बिटि पाड़ जन मजबूत च। पाड़ै यूं ‘बाण्यूं’ अर पाड़ा ‘पाण्यूं’ त क्वी तोड़ छयिं नी। दुन्ये क्वी इनि जगा छयिं नी जख पाड़ै हाम अर पाड़ौ पाणी नी पौंछि। पाड़ा ‘पाणी’ अर पाड़ै ‘बाणी’ मा कथगा मिठास च यिं बात तैं कालिदास बि मैसूस कर ग्येनि अर बेद ब्यास बि।
धरती मा बसंत दगड़ा फुल्वी दगड़ि सबि जगा मिल्दि। पर ‘फ्यूलड़ि त्वे देखी कि औंदू यु मन मा तेरो मेरो साथ छयो पैला जनम मा’ फूल दगड़ा पूर्वजन्मै इनि कल्पना पाड़ छोड़ी कक्खि नि मिल्दि। छ क्वी जड़ि-बूटी ज्वा पाड़ मा नी। समोदर मंथन मा बल ‘अमरित’ मिली पर पराण बचौणू तैं ‘संजीवनी’ बि इक्खि पाड़ मा त मिली। पाड़ौ तैं देवभूमि क्य सुद्दि ब्वल्ये गि। धर्म, दर्षन, कला, संस्कृति हमुन पाड़ बिटि सिख्नी। इलै पाड़ हमारु गारजन च अर पंच-परमेसुर बि।
ब्वनू-बचल्योणौ काम सौंगु च। पर लेख्णो काम पाड़ मा सदानि मुस्कल रै। किलैकि कलम छै त कागज नि रै। कागज पर भौ ऐनी त छपौणै समस्या खड़ी ह्वे। पर हमारा पुरखौंन् हिम्मत नि हारी। तौं बिचारा कलमकारुन कौणी-कंडाळी खैकि उत्तराखण्डी भाशौं मा लेखी बि च अर अगनै हमारु बाटू बि सुताळी! तौं कलमकारुं का वे त्याग अर वीं तपस्याऽ ऐथर बि हम गौ-बंध छयां!
यिं बात तैं सूणी आज बि हमारि गात झझरै जांदि कि हमारा पुरखौंन अपड़ि भूख-तीस दबै कि चौरासी कर चुकैनी। फिर्बि न सि घबड़ै छन न तौंन अपड़ि जगा-जमीन छोड़ि। पर हमारि एक द्वी पीढ़ी बिटि इनि क्या हवा लगी कि जु एक बार तौळ रड़ि वेन दुबारा उब औंणो सांसू नि भ्वरि। हर कैकि इखारि धुन पकड़ीं- ‘पाड़ खाली ह्वेगि!’ ‘पाड़ खाली ह्वेगि!’ द बता! अरे पाड़ क्य तुमुन इथगा कमजोर सम्झ यालि? तुमतैं ये पाड़ मा क्य नि मिली? स्वाद भूल ग्यां त द्वार खुल्यां छन! तुम अवा त सहि!
एक बात हौर, आज गढ़वळि अर कुमौंनी का दगड़ा-दगड़ा उत्तराखण्डै सब्बि भाशौं का ऐथर अपड़ा मूल सब्दू तैं बचौंणै बिकट समस्या खड़ी हुयिं च। सि सब्द ब्वन-बचल्योण मा इस्तमाल नि ह्वला त तौंकि हरचणै डौर च। हैंकि तिरपां हम हिंदी अर अंगरेज्या सब्दू तैं अपड़ि भाशौं मा ठूसी-ठूसी तैं अपड़ि भाशौं का मूल तैं बिगड़णै कोसिस मा लग्यां छां। इना बग्त पर एक द्वार यिं उमीद पर्बि खोल सक्दां कि अगर हम हिंदी अर अंगरेजी भाशाऽ सब्द्वी जगा गढ़वळि, कुमौंनी, जौनसरि, रंवाल्टी भाशा का सब्द्ू तैं आपस मा ब्वन-बचल्योण अर लेख्णै कोसिस कराँ त सबि उत्तराखण्डी भाशौं मा मेल जोल बढ़लू अर हमारु पाड़ पैली सि बि जादा मजबूत ह्वलू। यिं उमीद पर हमारि बि आस बंधी! आसा च य उमीद पूरी ह्वलि! सादर!