हमारे पास केवल रक्तरंजित कुरुक्षेत्र है / जयप्रकाश चौकसे

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हमारे पास केवल रक्तरंजित कुरुक्षेत्र है
प्रकाशन तिथि :04 जून 2017


कुछ वर्ष पूर्व आमिर खान महाभारत प्रेरित फिल्म बनाने की बात कर चुके हैं। 'बाहुबली' के रचयिता एसएस राजामौली भी महाभारत बनाने की बात कर रहे हैं। सच तो यह है कि उनकी 'बाहुबली' भी एक पौराणिक फिल्म ही लगती है। गणतंत्र अवधारणा के खिलाफ यह फिल्म तर्कहीनता का उत्सव है, जिसमें राजा-रानी और एक दुष्ट महामंत्री है। महाभारत एक घने जंगल की तरह है, जिसमें जितने भीतर जाएं उतना ज्ञान मिलता है। वेदव्यास ने इसमें तमाम मानवीय रिश्तों का ताना-बाना बुना है और वर्तमान की समस्याओं का विवरण भी प्रतीकात्मक ढंग से इस महाकाव्य में वर्णित है। इसकी अनेक व्याख्याएं प्रकाशित हुई हैं और अभी भी गुंजाइश हैं। मराठी और बंगाली भाषा में सबसे अधिक काम हुआ है। इस महान ग्रंथ के विषय में एक भ्रामक बात यह फैलाई गई कि जिस घर में इसकी प्रति होती है, उस परिवार में आपसी द्वंद्व प्रारंभ हो जाता है। भाइयों के बीच द्वंद्व तो घर-घर की कहानी है और सदियों से हो रहा है। दरअसल, किताब का विरोध ज्ञान का ही विरोध है। पुणे में महान ग्रंथों के वाचनालय को आग लगा दी गई। कुरीतियों के खिलाफ उठाई गई आवाजों को दबा दिया गया है। आजकल असली एजेंडा सरकारी प्रश्रय प्राप्त हुड़दंगी लोग ही अमल में लाते हैं। नेता अपना दामन साफ-सुथरा ही रखते हैं बल्कि एक ही दिन में कई बार वस्त्र भी बदलते हैं। यह वस्त्रों के प्रति मोह भीतर की वस्त्रहीनता को ही उजागर कर रहा है।

महाभारत के कई महान प्रसंग गौण रह गए हैं, उनके बारे में अधिक संवाद नहीं हुआ है। मसलन द्रोणाचार्य अपने 105 छात्रों के साथ प्रशिक्षण के लिए वन में गए और वहां उनसे परिश्रम कराकर आश्रम रचा। यह उनकी शिक्षा का पहला पाठ था और शिक्षा पूरी होने पर उन्होंने आश्रम को नष्ट करने का आदेश दिया। दुर्योधन ने इनकार कर दिया परंतु पांडवों ने आज्ञा मानी। द्रोणाचार्य ने स्पष्ट किया कि संपत्ति का मोह विनाश का कारण बनता है।

गौरतलब है कि वेदव्यास ने कथा कही है परंतु उसे लिपिबद्ध श्रीगणेश ने किया है। वेदव्यास की शर्त थी कि श्रीगणेश हर श्लोक का अर्थ समझने के बाद ही उसे लिपिबद्ध करें। इसके पहले श्रीगणेश ने शर्त रखी थी कि धाराप्रवाह नहीं बोलने पर वे लिखना बंद कर देंगे। इस महाकाव्य में अर्थ की अनेक परतंे हैं और परद दर परत गहरा अर्थ उजागर होता है। ग्रंथ के आखिरी भाग में यह रेखांकित किया गया है कि जब मनुष्य तर्क को तिलांजलि देता है तब युद्ध होते हैं। वर्तमान में भावनाएं भड़काई जा रही हैं और तर्क का लोप हो रहा है। इस तरह युद्ध के लिए जमीन तैयार की जा रही है। जब अनेक देश आणविक बम से सुसज्जित हैं तब युद्ध मनुष्य को ही समाप्त कर देगा। सत्ता में बने रहने के लिए उस जमीन को ही खतरे में डाल रहे हैं, जिस पर हम खड़े हैं। गुजश्ता सभ्यताएं ज्ञान की कमी के कारण समाप्त हुई हैं और मौजूदा सभ्यता उसकी अधिकता के कारण समाप्त हो सकती है। आज बम बनाने की विधा कई लोगों को ज्ञात है, उन्हें भी जिन्हें गिल्ली-डंडा ठीक से खेलना नहीं आता।

एक संदेह यह है कि तर्कहीनता का उत्सव मनाने वाली 'बाहुबली' के रचयिता महाभारत का एक विध्वंसक रूप गढ़ देंगे और हर क्षेत्र में तबाही हो जाएगी। मानवतावादी दृष्टिकोण वाले लोगों को ही महाभारत बनाने का प्रयास करना चाहिए। फ्रांस में नदी के तट पर एक बार महाभारत का मंचन किया गया था। हमारे अधिकतर लोप होते हुए ग्रंथों का संरक्षण जर्मनी की मैक्समुलर संस्था ने किया था। यह भी अजीब-सी बात है कि पूर्व के महान ग्रंथों का संरक्षण पश्चिम के लोग करते रहे हैं। हमें तो आपस में लड़ने से ही फुर्सत नहीं मिलती। महाभारत मात्र युद्ध गाथा नहीं है, वह रिश्तों को समझने के माध्यम से स्वयं को जानने का ग्रंथ है। खून की नदियों का नहीं, विलाप करती महिलाओं के आंसुओं की गाथा है। उसके मानवीय करुणा के पक्ष को अनदेखा करते ही वह अपनी सार्थकता खो देती है। एसएस राजामौली उसके साथ ऐसा ही कुछ कर सकते हैं।

महाभारत प्रेरित फिल्म बनाने में सबसे बड़ा संकट यह होगा कि ऊंचे कद के गौरवर्ण वाले तेजस्वी कलाकार, वह भी इतनी विशाल संख्या में, कहां से उपलब्ध होंगे। क्या सारे कलाकार विदेशी होंगे? यह कितनी खेदजनक बात है कि हमारे अपने देश में हमारी जमीन से उपजे पात्रों को अभिनीत करने वाले लोग ही नहीं हैं। हम सदियों से विविध बौनापन ही रच रहे हैं। हारे पास कलाकार नहीं, पूंजी नहीं और सबसे घातक बात, वह मानवीय करुणा का दृष्टिकोण ही नहीं है, जो इस तरह के महाकाव्य को फिल्माने के लिए आवश्यक है। हमारे पास सिर्फ दर्शक हैं, सिर्फ तमाशबीन है और इस महान ताकत का दोहन करने की क्षमता भी नहीं है। केवल रक्तिरंजित कुरुक्षेत्र होने से महाभारत की रचना नहीं की जा सकती।