हम आशा का ऐसा दीया मांगते हैं / जयप्रकाश चौकसे

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हम आशा का ऐसा दीया मांगते हैं
प्रकाशन तिथि : 05 नवम्बर 2021


जब श्रीराम दुष्ट शक्तियों का अंत करके अयोध्या लौटे, तब वहां के लोगों ने दीप जलाकर पूरे नगर को जगमगा दिया। उसी शुभ अवसर से दीपावली का उत्सव हर वर्ष मनाया जाने लगा। दिवाली पर पटाखे चलाने का रिवाज तो बाद में शुरू हुआ। गौरतलब है कि वर्तमान में तो क्रिकेट की जीत पर भी पटाखे चलाए जाते हैं और बारात में भी पटाखों के धमाके जरूरी हो गए हैं। बहरहाल, दीपावली पर नई फिल्में भी प्रदर्शित होती हैं। अन्य त्योहारों पर भी फिल्में प्रदर्शित होती हैं क्योंकि त्योहारों के समय दर्शक भारी संख्या में फिल्में देखने आते हैं।

फिल्मों में प्रस्तुत किया गया है कि विविध मौकों पर चलाए जाने वाले पटाखों की आवाज में रिवॉल्वर की गोली की आवाज दब जाती है। फिल्म ‘ग्रैंड स्लैम’ में हीरों की चोरी उसी रात की जाती है, जिस रात यूरोप में भी पटाखे चलाए जाने का रिवाज है। ‘ग्रैंड स्लैम’ में प्रस्तुत किया गया है कि चोरी किए गए हीरे घूम फिर कर वापस अपने स्थान पर ही लौट आते हैं और वर्षों तक बनाई योजना एक छोटी सी भूल से ठप्प हो जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि अपराधी खुद ही कोई सुराग छोड़ जाता है।

गोया कि खुशियों के साथ-साथ प्रदूषण रोकना भी हमारा कर्तव्य है क्योंकि जलवायु परिवर्तन गजब ढा रहा है। अभी केवल 1 डिग्री तापमान वृद्धि ने लोगों को बेहाल कर दिया है, तो आगे जाने क्या होगा। वृक्षारोपण इस समस्या से लड़ने का एकमात्र रास्ता है।

दीपावली उत्सव पर बजाए जाने वाले गीत भी बनाए गए हैं। गीत-संगीत के बिना कोई उत्सव पूरा नहीं होता। कहा जाता है कि बादशाह अकबर के दरबार के रत्न तानसेन अपने गायन से दीए जला देने की ताकत रखते थे। ‘बूट पॉलिश’ फिल्म का गीत है, किसी शाम एक पल ही जले ऐसा दीया मांगते हैं, हम आशा का ऐसा दीया मांगते हैं, तुम्हारे हैं तुमसे दुआ मांगते हैं। एक अन्य गीत की पंक्ति है, ‘कहे शाम से जलता दीया बावरी तूने यह क्या किया।’

बहरहाल, हमारा बारहमासी उत्सव चुनाव हो गया है। नारेबाजी ने एक बेसुरापन सभी जगह फैला दिया है। लेकिन दूसरी ओर यह माना जाता है कि रागों द्वारा भी रोगों का उपचार किया जाता है। पौधों के सामने संगीत बजाने से उनमें फूल जल्दी खिल जाते हैं। कहते हैं कि मनुष्य की कुंडली में भी उसके प्रिय राग का उल्लेख किया जाता है।

एक सच्ची घटना है कि ‘मदर इंडिया’ के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार महबूब खान लंदन गए थे। वहां वे बीमार पड़ गए और उनका इलाज अस्पताल में जारी था। रोग से मुक्त होने को थे कि उनकी नींद गायब हो गई। डॉक्टर ने उन्हें नींद की गोली दी परंतु उन्हें नींद नहीं आई। डॉक्टर का मत था कि वे चैन से सो सकें तो शीघ्र ही पूरी तरह सेहतमंद होंगे। जाने कैसे अनिद्रा के शिकार महबूब खान ने लता मंगेशकर से फोन पर निवेदन किया कि लताजी उन्हें फिल्म ‘चोरी चोरी’ में उन्हीं का गाया हुआ गीत ‘रसिक बलमा, काहे नेहा लगाए’ सुनाएं। गीत सुनने के बाद उन्हें नींद आ गई। कुछ ही दिनों में वे चंगे होकर भारत लौटे। जाने कब कैसे कोई गीत हमारे अवचेतन में गहरे पैठ जाता है। बहरहाल, महामारी के ढाई वर्ष तक कोई उत्सव मनाया नहीं गया परंतु इस वर्ष दीपावली धूमधाम से मनाई जाएगी।

धनतेरस की रौनक बाजार में इस बात का संकेत दे चुकी है। दीपावली में बही-खाते पर शुभ -लाभ और लाभ- शुभ लिखा जाता है। लाभ वही शुभ फलदयी होता है, जो सीधे ईमानदारी से कमाया जाता है। ज्ञातव्य है कि दीये की रोशनी आंख को चुभती नहीं है। इलेक्ट्रिक बल्ब की रोशनी तीव्र होती है।

‘1942 ए लव स्टोरी’ फिल्म में जावेद अख्तर का लिखा गीत ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, मानो मंदिर में हो कोई जलता दीया।’ यह संभव है कि पानी के भीतरी स्तर से एक जलता हुआ दीया ऊपरी सतह पर आ जाए।