हम और साधारण कैदी / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती
इस बार मैंने हजारीबाग जेल में एक बात और की। साधारण कैदियों के साथ आम तौर से सभी लोग लापरवाही का सलूक करते हैं। राजबंदी लोग इसके अपवाद नहीं होते। हाँ, कुछ लोग कभी-कभी उनकी ओर नजर जरूर फेरते हैं और दो-चार मीठी बातें कर लेते या कुछ खिला-पिला देते हैं। मगर जरूरत है कि उनकी ओर सबों के रुख में परिवर्तन हो। जेल अधिकारी उनके साथ मनुष्य का व्यवहार करें और खान-पान में उनके हकों को न मारें। मैंने हजारीबाग जेल में यही प्रश्न उठाया और खुशी है कि मुझे इसमें सफलता भी मिली। एतदर्थ मुझे जेल अधिकारियों से कभी लड़ना नहीं पड़ा। दरअसल जेल सुपरिंटेंडंट मेजरनाथ की ईमानदारी,दूरंदेशी और सज्जनता का ही फल था कि इस ओरध्यानदिलाते ही उनने बात मान ली। नतीजा यह हुआ कि जेल में कैदियों का डिसिप्लीन बना रहा। फिर भी उनका खान-पान बहुत कुछ सुधार गया। उनके साथ सलूक भी अच्छा होने लगा। यदि जेलों में कैदियों के राशन और वस्त्रादि में अधिकारी लोग चोरी न करें तो उन्हें बहुत कुछ आराम मिले। यही बात वहाँ हुई। फलत: वे कैदी बरसों मेरे रहते आराम से रहे जिससे आज भी मुझे याद करते रहते हैं, ऐसी खबरें मिला करती हैं।