हम जासूसी नहीं करेंगे / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
उन्होंने ध्यान से देखा कि दादाजी ने डस्ट बीन का कचरा एक अखवारके ऊपर पलट रखा है और उस कचरे में से कुछ सामान बीन-बीन कर वे एक स्टील की प्लेट में रखते जा रहे हैं। डस्ट बीन वहीं बगल में लुड़की पड़ी है। हेमा ने धीरे से पूछा कि दादाजी ये क्या कर रहे हैं।
"ये शायद कचरे में से आलपीन बीन रहे हैं। रोहन धीरे से बोला।" स्टील की प्लेट में आलपीन गिरने से हल्की-सी खन्न कि आवाज़ आ रही थी। फिर बच्चों ने देखा कि दादाजी पुरानी कापियों के फटे पन्ने भी उठाकर उनकी तह ठीक कर के एक के ऊपर रखते जा रहे हैं। हेमा ने दा......... दादाजी को टोकना चाहा किंतु रोहन ने फिर उसे रोक दिया। "" आज हम छुपकर देखेंगे कि आख़िर दादाजी इन आलपीनों और पुराने पेजों का क्या करने वाले हैं। " रोहन ने देखा कि दादाजी डस्टबीन के उस कचरे में से स्टेपलर पिन के बचे हुये टुकड़े भी प्लेट में रख रहॆ है।
grandदोनों बच्चे धीरेसे कमरे के भीतर आ गये जैसे उन्होंने कुछ भी नहीं देखा हो। उन्होंने ठान लिया था कि आज दादाजी की जासूसी करके ही रहेंगे। भोजन के बाद दादाजी अपने कमरे में चले गये और पुरानी कापियों के फटे पुराने पन्नों को कैंची से काटकर सुडौल आकार देकर चौकोर बनाने में जुट गये। बच्चों ने बाहर की खिड़की में अपना अड्डा बना लिया था, जहाँ से दादाजी साफ़ दिखाई दॆ रहे थे। रोहन और हेमा इधर उधर की बातें करते रहे, कभी स्कूल की कभी अपने-अपने टीचर की ताकि दादाजी को आभास न हॊ सके कि उन पर नज़र रखी जा रही है। एक घंटे के भीतर उन्होंने कागजों की छोटी-छोटी आठ दस कापियाँ बना लीं थीं और स्टेपलर से पेक कर दिया था। कहीं-कहीं आल्पीनों का भी उपयोग कर लिया था। दोनों बच्चे उत्सुक थे कि देखें दादाजी उन कापियों का क्या करते हैं। फटे पुराने कागज़ तो डस्ट बीन से निकालकर नगर पालिका कि कचरा गाड़ी में डालने के लिये होते हैं, फिर दादाजी ये कौन-सा तमाशा कर रहे हैं। आज बच्चों की नज़र सिर्फ़ ददाजी पर थी। वे दूसरे सभी काम वह कर तो रहे थे पर ध्यान रह-रह कर दादाजी की तरफ़ जा रहा था।
शाम को दादाजी घूमने के लिये निकले। बच्चों ने देख लिया था कि दादाजी ने वह छोटी-छोटी कापियाँ एक छोटे से थैले में रख ली हैं और कुछ चाक एवं पेंसिलों के टुकड़े भी। शायद यह भी सब डस्ट बीन के कचरे से ही बटोरे हैं। चलते-चलते दादाजी सीधे ही बस्ती से लगी झोपड़ पट्टियों की तरफ़ मुड़ गये और एक झोपड़ी के सामने रुक गये। पहले से ही वहाँ उपस्थित चार पांच बच्चों ने उन्हें घेर लिया। दादाजी आ गये, दादाजी आ गये, कहते हुये उन्होंनें अपने हाथ ऊपर कर दिये जैसे उनको पता हो कि दादाजी आज कुछ सामान बाँटेंगे। दादाजी ने अपने थैले से कापियाँ निकालीं और उन बच्चों को बांटने लगे और चाक और पेसिलों के टुकड़े भी बच्चों को वितरित करने लगे।
'दादाजी हमें भी, दादाजी हमें भी' बच्चे हाथ बढ़ा-बढ़ा कर चाक और पेंसिलें ले रहे थे। दादाजी हंसतॆ हुये सामान बांटक्रर प्रसन्न हो रहे थे। अचानक रोहन और हेमा जो उनका चुपके-चुपके पीछा कर रहे थे उनके सामने प्रकट हो गये। हेमा ज़ोर से चिल्लाई दादाजी, रोहन भी ज़ोर से चिल्लाया'दादाजी आप यहाँ क्या कर रहे हैं।' दोनों को अचानक सामने पाकर दादाजी हतप्रभ् रह गये। फिर ठहाका मारकर हँसने लगे। "हाँ तो तुम लोग दादाजी का पीछा कर रहे थे।" उन्होंने हंसते हँसते रोहन का कान पकड़ लिया। "दादाजी हम लोग जानना चाहते थे कि आप कचरे में से क्या एकत्रित करते हैं और आज आपकी पोल खुल गई।" दादाजी आप फटे पुराने कागज़ क्यों इकट्ठे करते हैं, यह कचरा तो बाहर फेकना चाहिये। " हेमा ने कहा।
" नहीं बेटी दुनियाँ में प्रत्येक चीज की क़ीमत होती है। जो सामान हम बेकार समझ कर फेक देते हैं वह दुनियाँ के सैकड़ों हज़ारों बच्चों के काम आ सकता है। ऐसे कितने बच्चे हैं जो थोड़ा-सा भी समान बाज़ार से नहीं खरीद सकते। कहते हैं बूँद बूंद से सागर भर जाता है। ऐसे ही फेके जाने वाले तथा कथित फालतू सामान से न जाने इतने बच्चोंका भविष्य बन सकता है। एक-एक ईंट जोड़कर मकान बनता है,
तिनके तिनके से रस्सी बन जाती है, वह बड़े-बड़े वज़नी सामान को उठा लेती है वैसे ही ये छोटे-छोटे वेस्टेज देश दुनिया कि बड़ी आबादी के काम आ सकते हैं। रोहन तुमने जो कापियाँ गुस्से में फाड़ दी थीं, उनको काम लायक बनाकर मैंने इन बच्चों में बांट दिया। देखो कितने खुश हैं ये बच्चे। स्टेपलर पिन के टुकड़े चाक पेंसिलें तुम लोग रोज़ फेकते हो, देखो आज किसी के काम आ रहीं हैं।
रोहन बोला "सारी दादाजी हम लोग छोटे हैं, ये सब नहीं जानते हमको माफ़ कर दो दादाजी। आगे से ऐसी गलती नहीं करेगे।"
"और हमारी जासूसी" जोर से हंसते हुये दादाजी ने पूछा।
"नहीं करेंगे नहीं करेंगे, हम जासूसी नहीं करेंगे"
दोनों बच्चों ने एक दूसरे के हाथ में हाथ फँसाकर और हाथ ऊपर करते हुये नारा लगाया और दादाजी से लिपट गये।