हराम का खाना / श्याम बिहारी श्यामल
Gadya Kosh से
चमरू की नवोढ़ा पतोहू गोइठे की टोकरी माथे पर लिए सामनेवाली सड़क से जा रही थी। रघु बाबू छत पर पत्नीक के साथ खड़े बतिया रहे थे। उसे देखकर उन्होंने अपनी पत्नीी से कहा, “.....देखो, मैंने कहा था न कि इन छोटे लोगों की बहुओं को कोई क्या देखने जाए! वह तो खुद दो–चार दिनों में गोइठा चुनने, पानी भरने निकलेगी ही....!”
यह बात चमरू की पतोहू ने सुन ली। बात उसे लग गई। बोली, “....हां, बाबूजी, हम लोग हराम का तो खाते नहीं हैं कि महावर लगाकर घर में बैठी रहूं। काम करने पर ही तो पेट भरेगा!” चमरू की पतोहू ने रघु बाबू को सुनाकर कहा और पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ गई। रघु बाबू ठिसियाते–से उसे जाते देखते रह गए।