हरियाली और पानीः पर्यावरण की पाठशाला / कविता भट्ट

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हरियाली और पानी(बालकथा): श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु‘, प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत,,नेहरू भवन,5 इन्डस्ट्रियल एरिया, फेज़-2,वसन्त कुंज ,नई दिल्ली-110070, पृष्ठ: 20(आवरण सहित),मूल्य: 35 रुपये,छठी आवृत्ति :2022

आज पर्यावरण-प्रदूषण तथा पीने के लिए पानी की अनुपलब्धता ज्वलंत समस्याएँ है। अनेक विद्वानों के शोध बताते हैं कि आने वाले समय में मनुष्य पीने योग्य पानी के लिए तरस जाएगा। अनेक भविष्यवक्ताओं ने माना है कि ‘स्वच्छ जल का उपलब्ध न होना‘ इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी होगी। यह बात हमें स्वीकार करते हुए जल-संरक्षण तथा पर्यावरण की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए प्रयास करना ही चाहिए। इस बात को अधिक से अधिक प्रचारित-प्रसारित करते हुए अपनाने की आवश्यकता है। बच्चों का मस्तिष्क बहुत कोमल है; उस पर जो कुछ भी लिखा जाता है; वह हमेशा के लिए अंकित हो जाता है। अतः पर्यावरण से सम्बन्धित इन तथ्यों को भी बच्चों को समझाना नितांत आवश्यक है। यदि हमें भविष्य को सुरक्षित करना हो, तो बच्चों को सकारात्मक विचारों से युक्त पुस्तकें और विचार ही सुसंस्कारित कर सकते हैं।

कुछ समय पूर्व रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु‘ द्वारा लिखित ‘हरियाली और पानी‘ नामक पुस्तक पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। पढ़कर मन प्रसन्न हुआ। एक मनीषी की भाँति हिमांशु जी बच्चों को पर्यावरण एवं जल-संरक्षण का संदेश देने में सफल हुए हैं। चूँकि यह पुस्तक बच्चों के लिए उपर्युक्त विषय का एक उत्कृष्ट लेखा-जोखा है। पुस्तक में चित्रों और संवाद के माध्यम से पर्यावरण तथा जल के संरक्षण को बहुत ही रोचक, सरल एवं प्रवाहपूर्ण ढंग से समझाया गया है। हरियाली और पानी एक दूसरे के सहजीवी हैं; यदि पानी न हो ,तो हरे-भरे पेड़-पौधों की कल्पना भी नहीं की जा सकती और यदि हरे-भरे पेड़-पौधे बादलों को आकर्षित न करें तो वर्षा नहीं होगी; इस प्रकार हरियाली के अभाव में धरती पर पानी की संभावना ही नहीं बनती।

आज जिस विषय पर बड़े-बड़े वैश्विक सम्मेलन किए जा रहे हैं; किन्तु तब भी इन सम्मेलनों का कोई प्रभाव नहीं। ये सम्मेलन केवल आडम्बर के समान ही लगते हैं और वास्तविक धरातल पर इन सम्मेलनों द्वारा यह नहीं समझाया जा पा रहा कि पर्यावरण संरक्षण कितना महत्त्वपूर्ण है और वास्तव में कैसे किया जा सकता है। हिमांशु जी ने अपनी पुस्तक के माध्यम से बिना किसी लाग-लपेट और ताम-झाम के पर्यावरण एवं जल-संरक्षण का महत्त्व बिल्कुल सरलता एवं सहजता के साथ समझाने में सफलता प्राप्त की है।

यह पुस्तक संग्रहणीय होने के साथ ही अधिक से अधिक संख्या में प्रचारित एवं प्रसारित की जानी चाहिए; ताकि जो आज के बच्चे हैं उनके मन में यह बात बिठाकर कल का भविष्य सुरक्षित किया जा सके। विशेषकर महानगरीय जीवन-शैली जी रहे बच्चे ,जो पेड़-पौधे-पशु-पक्षी के बारे में कुछ भी नहीं जानते ; उन्हें यह पुस्तक अवश्य पढ़वाई जानी चाहिए, ताकि वे अपने जीवन के लिए आवश्यक हरियाली एवं पानी का महत्त्व समझ सकें एवं तदनुसार अपने रहन-सहन में इन तथ्यों का व्यावहारिक समावेश कर सकें। यह पुस्तक 'पर्यावरण की प्राथमिक पाठशाला' है; प्राथमिक शिक्षा के अभाव में आगे की शिक्षा सम्भव नहीं होती; अतः इसे ग्रहण करना चाहिए। हिन्दी में इस पुस्तक की छठी आवृत्ति है। मैंने 5 वर्ष पहले जो प्रसारण की कामना की थी, उसके अनुरूप अब तक इस पुस्तक की हिन्दी और अन्य भाषाओं में लगभग दो लाख प्रतियाँ' प्रकाशित हो चुकी हैं। झारखण्ड की 'हो', 'असुरी' भाषा के साथ-साथ, बोडो, कोरवा, गढ़वाली, कोंकाणी, उड़िया, पंजाबी और गुजराती में भी अनुवाद हो चुका है। राजस्थान, और हरियाणा सरकार ने इस पुस्तक को 'समग्र शिक्षा अभियान' का हिस्सा बनाया है। गुजराती में भी यह सर्व शिक्षा अभियान का हिस्सा बन चुकी है। महोदय को साधुवाद एवं हार्दिक शुभकामनाएँ कि भविष्य में भी वे इसी प्रकार के अतिविशिष्ट एवं प्रासंगिक लेखन कार्य द्वारा मार्गदर्शन कर सकें।