हर दिन है अनमोल / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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“अरे चूंचूं ! उठो। देखो। सूरज सिर पर चढ़ आया है। साल भर ऐसे ही सोते रहोगे तो इम्तिहान में क्या खाक पास होओगे। चलो उठो।”

“क्या दादा जी! सोने दो न। आज तो वैसे भी संडे है।”

“अच्छा बच्चू। संडे हो या मंडे। दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए कि हमें कभी पछताना न पड़े। चलो उठो। नहीं तो मैं तुम्हारे सिर पर एक बाल्टी पानी डाल दूंगा।” पानी का नाम सुनते ही चूंचूं चूहा एक झटके में उठ गया। चूंचूं आंख मलता हुआ मुंहहाथ धोकर दादा जी के सामने खड़ा था।

“अब चलो। थोड़ा घूमकर आते हैं। ताजी हवा खाओगे तो दिमाग भी तरो-ताजा हो जाएगा। तब तक तुम्हारे लिए तुम्हारी मम्मी गरमा-गरम नाश्ता बना देगी।” चूंचूं के दादा जी ने चूंचूं से कहा। चूंचूं को न चाहते हुए भी दादाजी के साथ घूमने जाना पड़ा। टहलते हुए वे दोनों एक पार्क पर जाकर बैठ गए।

“अच्छा चूंचूं। तुम अभी से परीक्षा की तैयारी क्यों नहीं करते?” चूंचूं के दादा जी ने पूछा।

“दादा जी। परीक्षा तो दो महीने बाद होगी। अभी से क्या तैयारी करनी।” चूंचूं ने खीजते हुए कहा।

चूंचूं के दादा जी मुस्कराते हुए बोले-”चूंचूं। जरा एक काम करना। सामने वो गुलाब का फूल है न। जरा उसकी चार पंखुड़िया तोड़कर ला सकते हो।”

चूंचूं चूहा बोला-”क्या दादा जी। आप भी न। ये भी कोई मुश्किल काम है। ये लो। मैं ये गया और ये आया।” चूंचूं दौड़कर गया और गुलाब के एक फूल से पंखुड़िया तोड़ कर ले आया।

“ये लो दादाजी। आपने चार पंखुड़ियां मंगाई थी न। मैं आठ ले आया।” चूंचूं चूहा अपनी पूंछ हिलाते हुए बोला।

“शाबास। अब एक काम और करो। इन पंखुड़ियों को फिर से उसी फूल में वैसे ही लगा दो, जैसे यह कभी तोड़ी ही नहीं गई हो।” दादाजी ने वे पंखुड़िया वापिस करते हुए चूंचूं चूहे से कहा।

चूंचूं ने कहा-”लेकिन दादा जी। ये पंखुड़िया फूल से अलग होकर अब दोबारा उससे जोड़ी नहीं जा सकती।”

दादाजी ने तपाक से जवाब दिया-”बिल्कुल ठीक। ठीक उसी प्रकार आज का संडे दोबारा वापिस नहीं आ सकता। उसी प्रकार एकएक दिन बीतता चला जाता है। सप्ताह,महीना और फिर दूसरा महीना। फिर पूरा एक साल। यदि तुम हर रोज पढ़ाई पर ध्यान दोगे। अपना सबक रोजा़ना समझ कर पढ़ते रहोगे, तो तुम्हें इम्तिहान के दिन कोई परेशानी नहीं होगी। समझे कुछ।”

चूंचूं चूहा सिर हिलाता हुआ बोला-”समझ गया दादाजी। आपने सही कहा। अब मैं रोज सुबह जल्दी उठूंगा। रोज पढ़ाई करुंगा। अब घर चलें? नाश्ता बन गया होगा न। “

दादा जी ने चूंचूं को गले से लगा लिया।