हल और कलम की जुगलबंदी / जयप्रकाश चौकसे

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हल और कलम की जुगलबंदी
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2021

किसान अपने हल से खेत में इबारत लिखता है। हल चलाते समय उसका पसीना भी जमीन पर गिरता है। कभी-कभी चंद आंसू भी गिरते हैं। पसीना और आंसू कुछ समय बाद ऊग आते हैं। कुछ आंसू तितली बन जाते हैं कुछ सितारे बन जाते हैं। खेत की कुंडली में गुरु चंद्र की युति होने पर खेत से कविता जन्म लेती है। कुंडली में ग्रहों के योग या उनके अभाव के बावजूद भी अनाज ऊग जाता है। अनाज के हर दाने पर किसान के हस्ताक्षर होते हैं। किसान पढ़े-लिखे नहीं होते परंतु उनके हस्ताक्षर दस्तावेज़ पर दर्ज होते हैं। खेत उसकी विरासत है, फसल उसकी वसीयत है, कैसे दख़लअंदाज़ी सियासत कर सकती है?

सृजनशील लोग कलम से कागज पर लिखते हैं। कुछ दस्तावेज़ स्याही के बदले खून से लिखे जाते हैं। दूसरी ओर इन्हीं किसानों के मत से जीते हुए लोग पवित्र सदनों में भेड़ों की तरह अपने अगुवा के वचनों पर मेज पर हथेलियां थपथपा कर अंधे कानून पास कर देते हैं। हल के भाग्य पर मुहर लग जाती है। सिंहासन के लिए शपथ बद्ध भीष्म खामोश रहते हैं, जिसके पश्चात स्वरूप वे तीरों की शय्या पर कई दिन लेटे रहे। अमेरिका में बड़े खेत हैं। सैकड़ों एकड़ के रेंच हैं, अतः वहां मशीनें धड़ल्ले से चलती हैं। कभी-कभी अमेरिका में इतनी अधिक फसल होती है कि बाजार में मूल्य घट सकता है। अमेरिका इस फसल को समुद्र में फेंक देता है ताकि बाजार के मूल्य बने रहंे। लाभ लोभ उनका ईमान है। अमेरिका की नकल भारत में नहीं की जानी चाहिए। भारत में माता-पिता की मृत्यु हो जाने पर उत्तराधिकारियों के बीच खेत बंट जाते हैं। यह सिलसिला दशकों तक चलता है। कुछ किसानों के पास उनके माथे की चौड़ाई तक जमीन ही उनके अधिकार में रह जाती है। अन्याय व असमानता को बनाए रखने के लिए हमने अपनी सुविधा से उसे भाग्य कह दिया। सारे कवियों के परदादा कबीर लिख गए प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई । राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई ॥ उड़ती हुई सी खबर आई है कि हड़ताल पर गए किसान दिल्ली की सीमा पर रोक दिए गए हैं। किसान उस स्थान पर एक गुरुद्वारे का निर्माण कर रहे हैं। गुरुद्वारे की स्थापना होते ही, अयोध्या से चलकर श्री राम वहां आ सकते हैं। श्रीराम तो पलक झपकने के पहले ही मीलों के फासले तय कर लेते हैं। अधिकतम की रक्षा के लिए ही सिख धर्म की स्थापना हुई थी। अन्याय का विरोध करना उनके खून में शामिल है। इरशाद कामिल ने क्या खूब लिखा, ‘मिट्टी में तेरा खून, खून में तेरे मिट्टी।’ अकीरा कुरोसावा की सर्वकालीन फिल्म ‘सेवन समुराई’ में गांव रूपी सभ्यता पर असभ्य डाकू हमला करते हैं। गांव वाले अपनी रक्षा के लिए सामुराई को आमंत्रित करते हैं। समुराई डाकुओं का सफाया कर देते हैं। इस लड़ाई के दरमियान एक किसान कन्या और समुराई के बीच प्रेम हो जाता है। अन्याय के समाप्त होने पर समुराई लौटने लगते हैं। प्रेम करने वाला समुराई प्रेमिका को अपने साथ चलने के लिए कहता है। ठीक इसी समय वर्षा होने लगती है। फसल बोने का समय है। किसान कन्या अपने प्रेमी समुराई का हाथ झटक कर अपने खेत की ओर दौड़ती है। उसे फसल बोने का काम प्रेम से अधिक महत्वपूर्ण लगता है। किसान का पहला प्यार बोना और अन्न उपजाना है इसलिए किसान के खून में मिट्टी और मिट्टी में खून शामिल होता है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश से भी ट्रैक्टर रवाना हो चुके हैं। कुछ ही दिनों में ये ट्रैक्टर दिल्ली की सरहद पर पंजाब के किसानों के समर्थन में पहुंच रहे हैं। व्यवस्था ने प्रयास किया कि पंजाब के किसान एक छोटे द्वीप की तरह तन्हा हो जाएं परंतु पागल लहरों ने कब किसकी सुनी है। समय की दीवार पर लिखी इबारत व्यवस्था पढ़ नहीं पा रही।