हवा की मुश्किल / मोहम्मद अरशद ख़ान
हवा चलते-चलते थक गई थी। उसका मन हो रहा था कहीं बैठकर आराम कर ले।
शाम का समय था। काम से फुरसत पाकर लोग आराम कर रहे थे। एक बालकनी में नन्हा बच्चा झूले में सोया हुआ था। उसकी माँ बगल में बैठी आराम से चाय पी रही थी। ऑफिस से लौटा एक अफसर अपने लॉन में आराम कुर्सी पर पैर फैलाए बैठा था। मज़दूर हाथ-मुँह धुलकर अपनी थकान उतार रहा था।
‘‘एक मैं ही हूँ, जो कभी आराम नहीं करती,’’ हवा ने सोचा।
वह पेड़ों के एक झुरमुट की ओर बढ चल़ी। वहाँ सन्नाटा था और थोड़ी देर चैन से बैठा जा सकता था। पर उसका झोंका लगते ही पेड़ इधर-उधर झुक गए। हवा उनके बीच से लुढ़ककर उस पार जा गिरी।
‘‘उफ...यह तो बड़ी मुसीबत है,’’ हवा ने सोचा।
इस बार वह एक बगीचे की ओर गई। पतझर का मौसम था। बगीचे की ज़मीन सूखे पत्तों से ढँकी हुई थी। हवा ख़ुश हो गई।
‘‘वाह, पत्तों के नरम-मुलायम गद्दे पर लेटना कितना मजेदार रहेगा।’’
हवा लपककर पत्तों की ओर बढ़ी। लेकिन यह क्या...? पास पहुँचते ही पत्ते उछल-कूदकर दूर भागने लगे।
हवा खीझ उठी। उसे लगा उसका समय भागदौड़ में ही निकल जाएगा।
पास ही एक बड़ी-सी झील थी। उसका गहरा नीला पानी चुपचाप सोया हुआ था।
‘‘अब यह पानी भागकर भला कहाँ जाएगा? कुछ देर यहीं लेटकर आराम कर लेती हूँ।’’
यह सोचकर हवा झील के पानी की ओर लपक चली। लेकिन पास पहुँचते ही झील का पानी हिलोरें मारने लगा। दो-चार थपेड़े ख़ाकर हवा को वहाँ से भी भागना पड़ा।
हवा उदास हो गई। वह सिर झुकाए चुपचाप एक ओर बढ़ने लगी। तभी उसने सड़क किनारे एक गुब्बारेवाले को खड़े देखा। हवा को एक उपाय सूझा। वह झटपट एक गुब्बारे में जा घुसी। उसे बड़ा मज़ा आया। अब यहाँ उसे परेशान करने वाला कोई नहीं था। तभी एक बच्चा आया और गुब्बारा खरीदकर चल दिया।
थोड़ी देर तक तो हवा को अच्छा लगा। पर जल्दी ही उसे घुटन महसूस होने लगी। वह बाहर कुछ देख भी नहीं पा रही थी। वह परेशान होने लगी।
उस दिन बच्चे का बर्थ डे था। उसने गुब्बारे को घर ले जाकर लटका दिया। वहाँ और भी बहुत से बच्चे आ गए। सब मिलकर हल्ला-गुल्ला करने लगे। वे गाने गा रहे थे और नाच भी रहे थे। पर अफसोस, हवा को कुछ भी नहीं दिख रहा था।
कुछ समय बाद बच्चे ने केक काटा। सब एक सुर में ‘हैप्पी बर्थ डे टू यू’ गाने लगे। तभी एक शरारती बच्चे ने गुब्बारे को ख़ूब कसकर दबा दिया। गुब्बारा फूटा--‘फटाक्...!’ तेज आवाज़ से हवा डर गई। पर अगले ही पल वह ख़ुश हो उठी, क्योंकि वह गुब्बारे की क़ैद से आज़ाद हो गई थी।
‘‘उफ...’’ हवा ने पसीना पोछते हुए कहा, ‘‘गुब्बारे में क़ैद होकर आराम करने से अच्छा है यूँ ही घूमती फिरूँ। घूमना-फिरना क्या कम मजेदार है?’’
और हवा सरसराती हुई आगे बढ़ चली।