हवा पानी जैसा जरूरी है मनोरंजन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 04 जनवरी 2022
गौरतलब है कि हाल ही में प्रदर्शित हुई बहु सितारा फिल्म ‘83’ को देखने, सिनेमाघरों में उम्मीद से कम ही दर्शक पहुंचे। कारण, कोविड के भय से लोग भयभीत हैं। हर शहर कस्बे में मृत्यु हुई है। अस्पताल, डॉक्टर, नर्सों सभी ने सारे जोखिम देखते हुए भी जमकर संघर्ष किया है। यह बताना तो कठिन है कि विगत वर्षों में कितने नए अस्पताल और मेडिकल कॉलेज खुले? कितने नीम-हकीमों ने लाभ कमाया? लेकिन, टोटके बाजी हर दौर में चलती है।
स्वयं को व्यस्त दिखाना भी एक कला है। बहरहाल, फिल्म निर्माता अब फिल्मों को केवल ओ.टी.टी मंच पर ही दिखाना चाहते हैं। एस.एस. राजामौली की फिल्म ‘आर.आर.आर’ की लागत 600 करोड़ से अधिक है। महामारी के कारण आम आदमी सिनेमा घर जाने का जोखिम नहीं लेना चाहता। लेकिन सर्वविदित है कि फिल्म देखने का मजा केवल सिनेमा घर में ही आता है। दूसरी ओर शादी-ब्याह धूमधाम से संपन्न हो रहे हैं। क्या कोविड काल में सादगी से कोर्ट मैरिज नहीं हो सकतीं?
यूरोप और अमेरिका की सरकारों ने महामारी से लड़ने की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। लेकिन कहीं-कहीं, टोटके अभी भी जारी हैं। कुछ अज्ञात क्षेत्र अपना जादू हर दौर में कायम रखते हैं, क्योंकि तर्क के प्रति हमारा कोई रुझान नहीं है। इसलिए बंगाल के लेखक नीरद चौधरी इसे ‘कॉन्टिनेंट ऑफ सिरसे’ कहते हैं। एस.एस राजामौली की ‘बाहुबली’ में अजीब घटनाएं होती थीं परंतु वे यकीन के दायरे में रहती थीं। क्योंकि, राजामौली के सिनेमा में अविश्वसनीय ही पूजनीय है।
सत्यजीत रॉय की फिल्म ‘देवी’ में जमींदार के पुत्र का विवाह होता है। जमींदार को सपना आता है कि उनकी बहू के व्यक्तित्व में दैवीय शक्ति है। नतीजतन जमींदार के यहां बहू को देवी रूप में माना जाने लगता है, जबकि वह आम बहू जैसे जीना चाहती है। वह अपने पति का सानिध्य चाहती है। परिवार में सामान्य महिला की तरह घुलना-मिलना चाहती है। संभवत: दैवीय शक्ति होना आसान है परंतु आम आदमी का जीवन जीना कठिन है। कहानी में जमींदार के बड़े बेटे के छोटे पुत्र को नई दुल्हन और स्वयं जमींदार भी बहुत अधिक चाहते हैं। एक बार इस बच्चे को बुखार चढ़ जाता है। लेकिन, जमींदार डॉक्टर की जगह मासूम को देवी के चरणों में रखते हैं और उन्हें विश्वास है कि वह जल्द ही पूरी तरह ठीक हो जाएगा। यह अंधविश्वास जारी रहता है।
कुछ ही दिनों में मासूम बच्चे की मृत्यु हो जाती है। उस बहू की गोद में वह दम तोड़ देता है। इस हादसे से जमींदार का भ्रम टूट जाता है कि उसकी बहू कोई दैवीय शक्ति है परंतु उसे यह समझ आने तक एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है! बहरहाल, राजामौली की फिल्मों में एक जुदा संसार देखने को मिलता है, जो चार्ली चैपलिन, गुरुदत्त, राज कपूर आदि के सृजन से बिल्कुल मेल नहीं खाता। दूसरी ओर यह भी सत्य है कि कुरीतियों और अंधविश्वास ने मनुष्य को सबसे अधिक कष्ट दिया है और इस प्रकार की महामारी का कोई वैक्सीन भी नहीं है। विश्व साहित्य की श्रेष्ठ रचनाओं को पढ़ना और उनकी नई, तर्क सम्मत व्याख्या का प्रयास हमारे सामने एक मात्र रास्ता है।
जीवन के उज्ज्वल भविष्य में चारों ओर से प्रकाश आता है। ताजा हवा चलती रहती है, रात के अंधकार में इसी भवन के तल घर में रहने वाले अंधविश्वास इस महल पर कब्जा जमा लेते हैं और उनका तांडव प्रारंभ होता है। जिसने इस भवन को दिन के प्रकाश में देखा है, रात के अंधकार में भी वे अंधविश्वास को प्रवेश नहीं होने देते। उनके जीवन में जुगनू का प्रकाश, अंधकार की संपूर्ण विजय होने नहीं देता। आज गंभीर समस्या यह है कि दर्शक को सिनेमाघर में कैसे लाएं? हर शो के बाद पूरे परिसर को कीटाणुओं से मुक्त किया जाए? वैक्सीनेशन की गति बढ़ा दें? विगत लंबे इतिहास में कष्ट लगातार आए हैं परंतु मनोरंजन पर मनुष्य का स्वाभाविक अधिकार है। मनोरंजन भी हवा-पानी की तरह आवश्यक है।