हवा में उड़ता जाए अदृश्य दुपट्‌टा / जयप्रकाश चौकसे

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हवा में उड़ता जाए अदृश्य दुपट्‌टा
प्रकाशन तिथि :01 नवम्बर 2017


न्यूयॉर्क में रहने वाले वैज्ञानिक सैफ सिद्‌दी ने ऐसा दुपट्‌टा ईजाद किया है, जिसे पहनने वाले का चेहरा नहीं दिखेगा गोयाकि वह 'मि. इंडिया' की तरह अदृश्य रहेगा। अदृश्य होने पर राम गोपाल वर्मा ने भी तुषार कपूर अभिनीत 'गायब' बनाई थी, जिसमें उपेक्षित युवा गायब होकर अपनी पसंद की कन्या का प्रेम पाना चाहता है। इन सब फिल्मों की गंगोत्री है छठे दशक में बनी फिल्म 'मि. एक्स'। वैज्ञानिक का कथन है कि इस दुपट्‌टे को पहनकर महिलाएं अपनी निजता की रक्षा कर सकेंगी। आजकल स्कूटर पर सवार महिलाएं अपना चेहरा ढंक लेती हैं। वे स्वयं को प्रदूषण से बचाने के लिए ऐसा करती हैं। इस स्कार्फ का उपयोग फिल्म के सितारे भी कर सकते हैं। इसे धारण करके वे बाजार में घूम सकते हैं और भीड़ उन्हें पहचान नहीं पाएगी। प्रशंसकों की संख्या से सितारे का बाजार भाव तय होता है परंतु उसे भीड़ से बचकर सामान्य व्यक्ति की तरह जीने की इच्छा होती है। यह कितनी अजीब बात है कि जो जनसमूह आपको सितारा हैसियत दिलाता है, उसी के बीच आप चंद घंटे भी नहीं गुजार सकते। अवाम की पसंद पर आधारित व्यवसाय किस कदर अवाम से ही कटा रहता है।

अदृश्य रहने की इच्छा बड़ी बलवती होती है। आप जानना चाहते हैं कि आप की गैर-मौजूदगी में आपके अपने आपके बारे में क्या सोचते हैं। गैर-हाजिर मित्र का मखौल उड़ाना आम शगल है। साफगोई को प्राय: सहन नहीं किया जाता है। एलिया कज़ान के उपन्यास 'द अरेंजमेंट' का नायक कार दुर्घटना में घायल होकर अस्पताल में बेहोश पड़ा है। होश में आते ही वह दो डॉक्टरों को बात करते सुनता है कि मष्तिष्क पर लगी इस तरह की चोट से कभी-कभी व्यक्ति की याददाश्त चली जाती है। होश में आने के बाद वह अपनी याददाश्त चले जाने का स्वांग करता है। अब उसे ज्ञात होता है कि उसकी पत्नी का एक प्रेमी है और उसकी अपनी सचिव तथा प्रेमिका भी मात्र अपनी नौकरी की खातिर उसे सहन करती है। इस स्वांग से उसे ज्ञात होता है कि वह रिश्ते ढो रहा था और उसे बड़ी कठिनाई से लोग सहन करते हैं। उसका पूरा जीवन ही अकारथ गया है। अदृश्य हो जाने पर भी इसी तरह का अनुभव हो सकता है। हम सारा जीवन केवल मुगालते ही पालते रहते हैं।

राम गोपाल वर्मा की 'गायब' में पुलिस ने नायिका को स्पष्ट निर्देश दिया था कि जब वह मिलने आए तो उस पर वह अपना दुपट्‌टा डाल दे ताकि पुलिस उसे गोली मार सके। एक खंडहर में मुलाकात होती है और गायब व्यक्ति कहता है कि वह अत्यंत साधारण प्रतिभाहीन भद्‌दा-सा दिखने वाला व्यक्ति होने के कारण अत्यंत उपेक्षित था और एक दिन आत्महत्या करने समुद्र तट पर गया तो उसे गायब हो सकने वाली वस्तु मिली। उसने गायब होकर स्वयं पर अन्याय करने वालों को खूब सताया परंतु अब वह गायब हो सकने के वरदान से मुक्ति चाहता है, क्योंकि अपने देखे जाने के बिना जीवन में कोई आनंद ही नहीं रह जाता। संदेश स्पष्ट है कि सामान्य नियम से ऊपर उठकर अतिविशिष्ट होना भी एक उबाऊ काम है। हर व्यक्ति प्रतिदिन ऊब महसूस करता है। जीवन की एकरसता से थक जाता है। यह संभव है कि भविष्य में कुछ लोग ऊबने के कारण मरने भी लगें। संदिग्ध अवस्था में मृत्यु पर पोस्टमार्टम होता है परंतु उसमें ऊब को नहीं खोजा जा सकता, क्योंकि वह भारहीन, शरीरहीन एवं निशब्द है।

इस नए अदृश्य होने में सहायक दुपट्‌टा इस्लाम के अनुयायी ने ईजाद किया है। अनेक स्थानों पर विविध समाज में स्त्रियों द्वारा सिर ढांकने की परम्परा है। परंतु परदा एवं बुर्का को इस्लाम की ओर ले जाया जाता है। क्या यह संभव है कि वैज्ञानिक सिद्‌दिकी साहब अपनी जमात की परदेदारी के कारण ही पारदर्शी दुपट्‌टे की खोज में जुट गए हों? इस दुपट्‌टे के इस्तेमाल से सड़कों पर हम शीशविहीन लोगों को आते जाते देखेंगे और जीवन रामसे फिल्म की तरह हो जाएगा। जब मुर्गा या मुर्गी का सिर काट दिया जाता है तब शरीर से खून निकलने की प्रक्रिया में मुर्गी चलायमान दिखती है। आजकल बहुत से नेता ऐसे ही चलायमान दिख रहे हैं, क्योंकि अपनी सोच तो उन्होंने अपने दल के नेता के पास गिरवी रख दी है। राजनीतिक अनुशासन के नाम पर विचारहीनता को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसी भी राजनीतिक दल की भीतरी कार्यवाही में अपने विचार व्यक्त करने की छूट नहीं है। सर्वत्र दादागिरी चल रही है।

खबर यह है कि दिलीप कुमार की याददाश्त जा चुकी है और उनकी बगम सायराबानो ही उनकी देखभाल कर रही हैं परंतु संभवत: वे उसे अपनी नर्स समझने लगे हों। लंबे संवादों को प्रभावशाली ढंग से अदा करने वाले व्यक्ति की स्मृति चली जाना अत्यंत त्रासद है। एक उपचार यह हो सकता है कि वैजयंतीमाला और वहीदा रहमान उनसे भेंट करने जाएं। वहीदा रहमान का निवास स्थान तो उनके घर के निकट है। सायरा बानो इस उपचार को स्वीकार नहीं करेंगी। एक डाह उम्र के हर दौर में कायम रहती है। दिलीप साहब को 'मुगले आजम' और 'मधुमति' बार-बार दिखाना चाहिए। परदे पर वे स्वयं को तो पहचान लेंगे। ज्ञातव्य है कि मधुबाला अपने जीवन के अंतिम महीनों में अपने घर पर बनाए छोटे छविगृह में 'मुगले आजम' बार-बार देखती थीं। अजीब बात यह है कि उनके बंगले का नाम 'अरेबियन नाइट्स' था। जाने क्या सोचकर यह नाम रख गया था। क्या वे स्वयं के जीवन को भी अरेबियन नाइट्स की तरह एक फंतासी मानती थीं? घोर यथार्थवाद भी आपको फंतासी से अलहदा नहीं कर सकता। बेतरतीब आने वाली यादें और असंभव फंतासी जीवन का एक हिस्सा है।